प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 70 वर्ष के हो गए. वे देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिनका जन्म भारत की स्वतंत्रता के बाद हुआ. इस तरह से स्वतंत्र भारत और उनकी जीवन यात्रा लगभग साथ-साथ चली है. यह संयोग ही है कि दो साल बाद भारत 72 वर्ष के प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में स्वतंत्रता के 75 वर्ष मनाएगा. वे इस पद पर आसीन होने वाले ऐसा नेता भी हैं जो चुनी हुई सरकार के प्रमुख के पद पर सर्वाधिक समय रहे हैं. वे इस पद पर सर्वाधिक समय रहने वाले पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं. साथ ही, प्रधानमंत्री पद पर सबसे अधिक समय तक आसीन रहने वाले चौथे नेता भी. वे ऐसे नेता हैं जिन्होंने लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री पद पर वापसी की और वह भी पहले की तुलना में अधिक सीटों के साथ. वे 2001 से लगातार निर्वाचित सरकार के प्रमुख के तौर पर काम कर रहे हैं.
उन्होंने आज तक एक भी चुनाव नहीं हारा
यह भारतीय लोकतंत्र में एक अभूतपूर्व उपलब्धि है. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनावी राजनीति में हार-जीत को एक बड़ी कसौटी माना जाता है. लेकिन नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों को केवल चुनावी हार-जीत के तराजू पर तौलना उनके साथ अन्याय होगा. उनका वृहद व्यक्तित्व, जीजीविषा, विषम परिस्थितियों से जूझ कर पार पाना और एक सफल जन नेता के रूप में लंबा सफर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा. इस बात की बहुत चर्चा हो चुकी है कि कैसे कठिनाइयों में उनका बचपन बीता. फर्श से अर्श तक की उनकी यात्रा के तकरीबन हर पहलू पर बात हो चुकी है. कुछ ऐसी बातें हैं जो उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग बनाती हैं.
साफ छवि
वे 2001 में पहली बार सीधे मुख्यमंत्री बने. तब से लगातार निर्वाचित सरकार के प्रमुख रहे हैं. उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा. गुजरात दंगों में कोताही बरतने का आरोप जरूर लगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट की नियुक्त की गई एसआईटी की जांच में वे निर्दोष साबित हुए. जिस भारतीय राजनीति में पंच से लेकर प्रधानमंत्री तक कोई भ्रष्टाचार के आरोपों से अछूता नहीं रहा, वहां यह एक अनूठी बात है. उन्होंने अपने परिवार को राजनीति से दूर रखा है. कोई उनके नाम का दुरुपयोग नहीं कर सका. मंत्रियों से लेकर चपरासी तक, सब पर उनकी कड़ी नजरें रहती हैं. उनका अपना कोई निजी स्वार्थ नहीं. उन्हें किसी को सेट नहीं करना है. उन्हें यह चिंता नहीं है कि संतानों को राजनीतिक विरासत सौंपनी है. राजनीति के इस खोट से वे अछूते हैं. यही कारण है कि उन्होंने बिना किसी स्वार्थ या लाभ के लालच के बिना सार्वजनिक जीवन में अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह बखूबी किया है और काजल की इस कोठरी में उनके उजले कपड़ों पर कालिख नहीं लगी. ऐसा नहीं है कि उन पर कीचड़ उछालने की कोशिश नहीं हुई हो. लेकिन हर बार वे बेदाग साबित हुए. उन्होंने अपना सारा वेतन दान कर दिया. जब वे प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभालने के लिए दिल्ली आ रहे थे तब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मिला सारा वेतन और भत्ते बच्चियों की शिक्षा के लिए दे दिया. दिल्ली में कोरोना से लड़ाई के लिए बनाए गए पीएम केयर्स फंड में पहला आर्थिक योगदान उन्हीं ने किया.
कठोर परिश्रम
नरेंद्र मोदी को करीब से जानने वाले उनके कड़े अनुशासन व कठोर परिश्रम की चर्चा करना नहीं भूलते. वह चाहे उनकी दिनचर्या हो, खानपान या फिर सरकारी कामकाज, पीएम मोदी बेहद सख्ती के साथ हर छोटी-छोटी बात का पालन करते हैं. बैठकों में डायरी-पेन लेकर बैठना और नोट्स लेना उनकी आदत है. देर रात तक काम करना और सुबह जल्दी उठ कर योग इत्यादि करना उनकी जीवन शैली का हिस्सा है. यह कड़े अनुशासन का ही परिणाम है कि वे बिना थके या बीमार पड़े लगातार काम करते आ रहे हैं. विदेश यात्राओं के दौरान वे विमानों में ही सोकर एक दिन की बचत कर लेते हैं. नवरात्रि के दौरान केवल कठोर व्रत रखते हैं. योग से उनका लगाव इस कदर है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिला कर भारत की सॉफ्ट पॉवर का विस्तार किया.
जनता से सीधा संवाद
बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित यह देख कर हैरान हैं कि कोरोना के इस संकटकाल में जब दुनिया भर में राष्ट्रप्रमुखों की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट हुई है, पीएम मोदी की लोकप्रियता और बढ़ गई. यह भी तब जबकि अर्थव्यवस्था बदहाल है. लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं. कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इसका प्रमुख कारण यह है कि वे जनता से सीधा संवाद करते हैं. वे जनता को यह विश्वास दिलाने में सफल हैं कि वे जो भी निर्णय कर रहे हैं, उनकी भलाई के लिए ही कर रहे हैं. चाहे नोटबंदी हो या फिर कोरोना के समय तालाबंदी. दोनों समय पीएम मोदी ने जनता को ये भरोसा दिलाया कि चाहे इससे उन्हें परेशानी हो रही हो लेकिन ये दोनों ही फैसले उनके हित में किए गए. नोटबंदी के बाद उन्होंने यह कह कर भी जनता का विश्वास जीता कि वे बुरी नीयत से कोई फैसला नहीं करेंगे.
नया वोट बैंक
भारतीय जनता पार्टी की छवि उत्तर भारतीय राजनीतिक दल की बनाई गई थी जिसे मुख्य रूप से केवल ऊंची जाति के हिंदुओं का समर्थन हासिल था. राम मंदिर आंदोलन ने बीजेपी को इस छवि से निजात दिलाने में मदद की. लेकिन इसके बावजूद बीजेपी का सबसे अच्छा प्रदर्शन 182 सीटों तक ही सीमित रहा. नरेंद्र मोदी ने इसे हमेशा के लिए बदल दिया. उनके नेतृत्व में बीजेपी को ऐसे वर्गों का समर्थन प्राप्त हुआ जो गरीब श्रेणी में आते हैं. यह वह तबका है जो परंपरागत रूप से कांग्रेस व अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का समर्थन करता आया था. लेकिन नरेंद्र मोदी ने इस वर्ग को मजबूती से भाजपा के साथ खड़ा कर दिया. पिछले छह वर्षों में केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं ने इस वर्ग में भाजपा का समर्थन और अधिक मजबूत कर दिया. इनके अलावा युवा मतदाताओं में भी उन्होंने जबर्दस्त पैठ बनाई. मध्य वर्ग ने भी अपने सपनों को उनके नेतृत्व के हवाले कर दिया. दृढ़ इच्छा शक्ति और कड़े फैसले लेने की उनकी क्षमता ने महिला मतदाताओं को बेहद प्रभावित किया. यही कारण है कि भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में 2014 की तुलना में अधिक वोट और सीटें हासिल कीं. जाति और धर्म के दांव-पेंचों से उलझी भारतीय राजनीति में नरेंद्र मोदी ने एक अलग स्थान हासिल कर लिया.
वैश्विक नेता
मोदी के आलोचक उनकी विदेश यात्राओं पर सवाल खड़ा करते आए हैं. लेकिन पिछले छह वर्षों में मोदी ने विश्व मंच पर अपनी और भारत की एक अलग ही पहचान बनाई है. इसका असर भारत के लिए बढ़ती अंतरराष्ट्रीय शुभेच्छा पर दिखता है जब पाकिस्तान और चीन तमाम प्रयासों के बावजूद संयुक्त राष्ट्र में भारत का वर्चस्व कम नहीं कर पाए. कई वैश्विक नेताओं से उनके व्यक्तिगत मधुर संबंध हैं. चीन से तनाव का मुद्दा हो या फिर पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भारत का साथ देती दिखती है. जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के मुद्दे को तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान और चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तूल नहीं दे सके हैं. भारत में बढ़ता विदेशी निवेश भी भारत की बदली छवि का परिचायक है.
आलोचना
नरेंद्र मोदी जब से सक्रिय राजनीति में आए हैं, वे आलोचनाओं और निंदा से अछूते नहीं रहे. उनके राजनीतिक विरोधी समय-समय पर उन्हें अलग-अलग मुद्दों पर घेरते रहे हैं. मुख्यमंत्री बनते ही गुजरात दंगों को लेकर उन्हें कठघरे में खड़ा किया तो प्रधानमंत्री बनने के बाद आलोचना, आरोपों और निंदा में ज्यादा तेजी आ गई. कभी उन पर रफाल सौदे में गड़बड़ी का आरोप लगाया गया तो कभी इतना ताकतवर प्रधानमंत्री बनने को लेकर निंदा की गई कि जिसने सारे अधिकार अपने पास ही रख लिए. अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, नोटबंदी जैसे मुद्दों पर उनके राजनीतिक विरोधी हमेशा उन्हें आड़े हाथों लेते आए हैं. उनकी आलोचना इस बात पर भी होती है कि छह साल प्रधानमंत्री रहने के बावजूद उन्होंने लोकतंत्र के चौथे खंभे यानी मीडिया से सीधा संवाद क्यों नहीं किया यानी कोई प्रेस कांफ्रेंस क्यों नहीं की. पीएमओ को सर्वशक्तिमान बनाने पर आलोचना होती है और यह भी कि उनके मंत्रियों को अधिकार क्यों नहीं हैं. राज्यों में विपक्ष की सरकारों को अस्थिर करने और विपक्ष के नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप भी उनकी सरकार पर लगाया जाता है. यह भी कहा जाता है कि उनकी सरकार में अभिव्यक्ति की आजादी छीनी जा रही है. वे खुद कहते हैं कि आलोचना से कोई परेशानी नहीं है क्योंकि लोकतंत्र में आलोचना होनी चाहिए लेकिन हवाई आरोप नहीं लगाने चाहिए. वे ऐसे आरोपों पर जबर्दस्त पलटवार करने की क्षमता रखते हैं. जब रफाल पर राहुल गांधी ने ‘चौकीदार चोर है' का नारा उछाला तो उन्होंने ‘मैं भी चौकीदार' मुहिम चला कर इसकी हवा निकाल दी.
चुनौती
कोरोना महामारी एक ऐसी अभूतपूर्व चुनौती लेकर आई है जिसका सामना इससे पहले किसी सरकार ने नहीं किया. एक तरफ लोगों की जान बचाने की चुनौती है तो दूसरी ओर उनकी रोजी-रोटी बचाने की. यह संकटकाल नरेंद्र मोदी के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन कर उभरा है जब लोग उम्मीद से उनकी ओर देख रहे हैं. एक ओर बदहाल अर्थव्यस्था को पटरी पर लाने की चुनौती है तो वहीं सीमा पर विस्तारवाद की नीति अपनाए चीन को भी उसकी जगह दिखाने की अपेक्षा उनसे की जा रही है. मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की बात की है जो एक बड़ा लक्ष्य है. 2022 सबको घर देने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य उनके नेतृत्व की कड़ी परीक्षा है. अब जबकि वे अपना 70वां जन्मदिन मना रहे हैं, जनता उन्हें शुभकामनाएं देते हुए यही उम्मीद करती है कि वे इन तमाम चुनौतियों से पार पाते हुए देश को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाएंगे.
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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