जनता महंगाई से त्रस्त, सरकार प्रचार में मस्त

प्रधानमंत्री जब जीएसटी की संख्या को अगस्त के अमृत महोत्सव में शामिल करते हैं तब पेट्रोल डीज़ल के टैक्स को छोड़ देते हैं

जनता महंगाई से त्रस्त, सरकार प्रचार में मस्त

सत्रह दिनों से पेट्रोल और डीज़ल के दाम नहीं बढ़े हैं. राहत की इतनी बड़ी ख़बर हेडलाइन नहीं बन सकी है क्योंकि 17 दिन पहले जो दाम दे रहे थे आप वही दे रहे हैं. दिल्ली के लोग 101 रुपये लीटर पेट्रोल भराने को लेकर आदी हो चुके हैं. दूसरी जगहों के लोगों को भी 110 रुपये लीटर खरीदने का अच्छा ख़ासा अभ्यास हो चुका होगा. इतनी कमाई आपकी बढ़ी नहीं है जितना महंगाई बढ़ गई है लेकिन आप अथक परिश्रम कर रहे हैं और टैक्स दे रहे हैं. अपने खर्चे और इच्छाओं को मार कर महंगा पेट्रोल डीज़ल और रसोई गैस खरीद रहे हैं ताकि सरकार के पास टैक्स जाए. लेकिन प्रधानमंत्री जब जीएसटी की संख्या को अगस्त के अमृत महोत्सव में शामिल करते हैं तब पेट्रोल डीज़ल के टैक्स को छोड़ देते हैं. सोमवार को वे अंग्रेज़ी में ट्वीट करते हैं जिसका हम हिन्दी में अनुवाद करते हैं कि भारत अगस्त में प्रवेश कर रहा है, अमृत महोत्सव की शुरुआत हो रही है. हमने कई चीज़ों को होते देखा है जो हर भारतीयों के लिए आनंददायक हैं. रिकार्ड टीकाकरण हो रहा है. जीएसटी के आंकड़े अधिक आए है जो ठोस आर्थिक गतिविधियों के संकेत दे रहे हैं. पीवी सिंधु ने मेडल जीता है. हमने पुरुष और महिला हॉकी टीम का ऐतिहासिक प्रयास देखा है. मैं आशावादी हूं कि 130 करोड़ भारतीय भारत को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए परिश्रम करते रहेंगे. अमृत महोत्सव मनाते रहेंगे. 

अच्छा होता सरकार अमृत महोत्सव में पेट्रोल डीज़ल से आ रहे टैक्स को भी शामिल करती. बताती कि जनता से हमें यह अमृत की सप्लाई लगातार मिल रही है. जितना चाहते हैं उतनी मिल रही है. जुलाई महीने में वित्त राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने संसद में बताया है कि पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क की वसूली में 88 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच 3 लाख 35 हज़ार करोड़ की वसूली हुई है. ठीक एक साल पहले 1 लाख 78 हज़ार करोड़ की वसूली हुई थी. 

एक साल में पेट्रोल डीज़ल से सरकार को 88 प्रतिशत ज्यादा टैक्स मिलता है लेकिन प्रधानमंत्री अगस्त के अमृत महोत्सव में केवल जीएसटी के नंबर को शामिल करते हैं कि 1 लाख 16 हज़ार करोड़ से अधिक की वसूली हुई है. अब भी देर नहीं हुई है प्रधानमंत्री पेट्रोल और डीज़ल के बढ़े हुए दाम को लेकर साल भर चलने वाले एक्साइज महोत्सव की शुरुआत कर सकते हैं. इस जीएसटी में आपकी महंगाई का हिस्सा भी शामिल है. राज्य सभा में केंद्रीय खाद्य व उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने कहा है कि जुलाई महीने में खाद्य तेलों के दामों में औसत वृद्धि 52 प्रतिशत तक की हुई है. मूंगफली के तेल में जुलाई महीने में 19.24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. सरसों तेल के दाम में जुलाई के महीने में 39 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है. वनस्पति तेल के दाम में जुलाई में 46 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है. 

पेट्रोल डीज़ल जीएसटी में नहीं है लेकिन खाद्य तेल जीएसटी में है. तो आपने जुलाई महीने में सोया तेल, सनफ्लावर, सरसों तेल, मूंगफली तेल के अधिक दाम देकर जीएसटी में योगदान किया है जिसके कारण अगस्त में अमृत महोत्सव की शुरूआत हुई है. जेब आपकी खाली हुई और महोत्सव सरकार मना रही है. यही नहीं सेंटर फार मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी के अनुसार जुलाई महीने में 32 लाख ऐसे लोगों की नौकरी चली गई जो सैलरी पर काम करते थे. ऐसे लोग अगस्त में शुरू हुआ अमृत महोत्सव कैसे मनाएं, ये आप ट्वीटर पर प्रधानमंत्री से पूछ सकते हैं. वैसे गुजरात मॉडल का कितना प्रचार हुआ. सात करोड़ गुजरातियों के स्वाभिमान की दशकों राजनीति चली और उस विकास के मॉडल का परिणाम खुद प्रधानमंत्री बता रहे हैं. जिस राज्य को आम तौर पर अमीर और सुखी समझा जाता है वहां की आधी से अधिक आबादी यानी साढ़े तीन करोड़ जनता मुफ्त राशन पर गुज़ारा कर रही है. 3.5 करोड़ लोग कैसे अमृत महोत्सव मनाएंगे, इसका जवाब गुजरात के पास है. 

दिवाली तक यह अनाज गरीब कल्याण योजना के तहत दिया जा रहा है. तो क्या गुजरात में साढ़े तीन करोड़ लोग ग़रीब हैं? यह वो सच्चाई है जिसे कुछ लोग शुरू से जानते थे अब खुद प्रधानमंत्री बता रहे हैं. महंगाई हेडलाइन नहीं है तो क्या हुआ, जानलेवा ज़रूर है. विपक्ष को प्रदर्शन न करने और प्रदर्शन करने पर प्रदर्शन न करने की नसीहत देने वाले बड़े लोग आम जनता की इस तकलीफ से अनजान हैं कि वह खाद्य तेलों के बढ़े हुए दाम किस मुश्किल से चुका रही है. 

विपक्ष के 14 दलों के सांसद आज नाश्ते पर राहुल गांधी से मिले. इस बैठक में महंगाई से लेकर पेगासस पर सरकार से पूछने की रणनीति पर बात हुई. इस बैठक के बहाने यह सवाल उठ रहा था कि 2024 के लिए विपक्षी एकता की कोशिश हो रही है. इसका जवाब राहुल गांधी ने अपने ट्वीट से दिया कि एक मात्र प्राथमिकता- हमारा देश, हमारे देशवासी. इसके बाद एक और ट्वीट में राहुल ने कहा कि न हमारे चेहरे ज़रूरी हैं और न हमारे नाम. बस ये ना हमारे चेहरे ज़रूरी हैं, ना हमारे नाम. बस ये ज़रूरी है कि हम जन प्रतिनिधि हैं- हर एक चेहरे में देश की जनता के करोड़ों चेहरे हैं जो महंगाई से परेशान हैं. यही हैं अच्छे दिन? और इसके बाद 25 सांसद साइकिल चलाकर संसद गए. इसमें विपक्ष के भी सांसद थे. पेट्रोल और रसोई गैस के बढ़े हुए दामों के विरोध में पोस्टर लगाकर सांसदों का यह दल संसद गया. राहुल गांधी ने वापसी कार से नहीं की बल्कि जिस साइकिल से गए थे उसी से बाहर गए.

महंगाई हेडलाइन से गायब हो चुकी है लेकिन विपक्ष के मुद्दों की प्राथमिकता की सूची में बनी हुई है. विपक्ष दिखाना चाहता है कि सड़क पर महंगाई को लेकर सक्रिय है लेकिन सदन में पहले पेगासस पर चर्चा चाहता है. इस प्रक्रिया में एक बदलाव आता दिख रहा है. पिछले कई साल से विपक्ष की मौजूदगी को खारिज करने का चलन बढ़ा है. विपक्ष हमेशा कमज़ोर दिखा है और ED के एक छापे से दल बदल शुरू हो जाता था. सरकार के प्रवक्ता भी कहने लगे थे कि विपक्ष है कहां लेकिन इस सत्र में प्रधानमंत्री की बातों में विपक्ष दिखने लगा. 

मंगलवार को हुई बीजेपी संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है. इसके पहले भी प्रधानमंत्री विपक्ष के इस हस्तक्षेप पर टिप्पणी कर चुके हैं. आज उन्होंने कहा कि संसद का न चलने देना संसद, संविधान का अपमान है. विपक्ष का कहना है कि सरकार संसद नहीं चलने देना चाहती है, पेगासस जासूसी कांड पर चर्चा नहीं चाहती है. आज भी संसद के दोनों सदनों को स्थगित करना पड़ा. सरकार को यह बात बुरी लग गई कि जल्दी जल्दी में कानून पास किए जाने की तुलना डेरेक ओ ब्रायन ने पापड़ी चाट से कर दी. इस रूपक के इस्तेमाल के खिलाफ वह सांसद के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही है. 

पेगासस जासूसी कांड हेडलाइन से भले उतर गया है लेकिन ख़बरों से ग़ायब नहीं हुआ है. उसका कारण है कि फ्रांस में तीन लोगों के फोन में जासूसी साफ्टवेयर होने की पुष्टि हो चुकी है. इसके बाद ब्रिटेन से ख़बर आई है कि वहां के एक वकील के फोन में यह साफ्टवेयर पाया गया है. पांच पत्रकारों के बाद आज भारत में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है कि अदालत इस पर संज्ञान ले और SIT से जांच कराए. याचिका में केंद्र सरकार को निगरानी के लिए स्पायवेयर तैनात करने के लिए विदेशी कंपनियों के साथ किए गए अनुबंधों का विवरण देने के लिए कहा गया है. गुरुवार को इस मामले में सुनवाई होगी. एक सांसद और प्रधानमंत्री के बीच संवाद के कई स्तर होते होंगे लेकिन सार्वजनिक रुप से जब एक सांसद प्रधानमंत्री से संवाद करता है तो किस तरह की भाषा और लहजे का इस्तेमाल करता है, कभी कभी इस पर भी ध्यान देना चाहिए. पता चलता है कि प्रधानमंत्री के आस-पास किस तरह की राजनीतिक संस्कृति बन रही है. हर दौर में समर्थकों, नेताओं और सांसदों ने अपने नेता और प्रधानमंत्री की खुशामद में मील के पत्थर गाड़े हैं लेकिन हम बात इस दौर की कर रहे हैं. हम भूल जाते हैं कि तब से लेकर अब तक खुशामद के ऐसे प्रकरण ही आगे चल कर राजनीति की मुख्यधारा बन जाते हैं जहां किसी को लगता है कि नेतृत्व से संवाद का यही विनम्र तरीका है.

19 जुलाई को जब प्रधानमंत्री मोदी ने मानसून सत्र से पहले संसद के बाहर अपना संबोधन किया तब बीजेपी के कुछ नेता तस्वीरें साझा कर उनकी सादगी की प्रशंसा करने लगे. पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ट्वीट करते हैं कि “सादगी की मिसाल! संसद परिसर में खुद हाथ में छाता लिए हुए पीएम श्री @narendramodi जी की यह तस्वीर 'सादा जीवन उच्च विचार' के सिद्धांत को चरितार्थ करती है. @PMOindia #MonsoonSession” कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट किया कि “सादा जीवन उच्च विचार' के सिद्धांत को चरितार्थ करते देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री @PMOIndia”

सादगी की मिसाल देने वाले यह नेता भूल गए कि 2014 में प्रधानमंत्री के रंगीन कुर्तों को लेकर फैशन की मिसाल दी जाने लगी थी. 2015 में बराक ओबामा के साथ एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने जो सूट पहना था उसकी धारियां उनके नाम से बनी थी. विवाद हुआ कि सूट लाखों का है और आरोप लगा कि सूट बूट सरकार है. बाद में इसे सवा चार करोड़ में नीलाम कर दिया और वो पैसा नमामी गंगे फंड में दे दिया गया. प्रधानमंत्री से जुड़े कार्यक्रमों को ईवेंट का रूप दिया गया और उनके आयोजन में हुए खर्चे ने नए नए रिकार्ड बनाए. उनके आस-पास की राजनीति का संबंध कहीं से सादगी से नहीं रहा है लेकिन एक तस्वीर के सहारे सादगी की मिसाल की कहानी गढ़ी गई. आलीशान राजनीतिक जीवनशैली में सादगी की मिसाल चुनने की जो नज़र चाहिए वो वाकई काबिले तारीफ है. गनीमत है कि कुछ नेताओं ने सादगी की मिसाल दी. बाकी अपनी अपनी सादगी तक ही सीमित रहे.

इसका ज़िक्र आज इसलिए किया क्योंकि बीजेपी के सांसद मनोज तिवारी ने इस प्रक्रिया में एक नया मील का पत्थर बनाया है. हर्षवर्धन, कैलाश विजयवर्गीय के बाद मनोज तिवारी का ट्वीट एक कड़ी बनाता है जिसे सिर्फ खुशामद की राजनीतिक परिभाषा तक सीमित रखना सही नहीं होगा. हुआ यूं कि आज सुबह 8 बजकर 48 मिनट पर प्रधानमंत्री ने अंग्रेज़ी में ट्वीट किया है कि हार और जीत जीवन का हिस्सा है. टोक्यो में हमारी पुरुष हॉकी टीम ने अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन किया और यही महत्व रखता है. अगले मैच के लिए टीम को शुभकामनाएं दे रहा हूं. भारत अपने खिलाड़ियों पर गर्व करता है. 

प्रधानमंत्री का यह ट्वीट कहीं से भी अतिरेक का शिकार नहीं है. ऐसे मौकों पर जितना कहा जाना चाहिए उतना ही कहा गया है. लेकिन सद्भवाना से भरे इस ट्वीट के जवाब में उनकी पार्टी के सांसद मनोज तिवारी 9 बजकर 14 मिनट पर एक ट्वीट करते हैं. उसकी भाषा देखिए लेकिन अपने आंसुओं को संभाल लीजिए. मनोज तिवारी ने लिखा कि “आपने पूरा मैच देखा..ये भी ख़ास है भारत के खेल के भविष्य के लिए..आप मैच के दौरान कई भावनाओं से गुज़रे होंगे. कभी ख़ुशी की हुंकार भी निकली होंगी कभी ढाढस रखने के क्रम में आंख छलक भी आई होगी. आपने मैच के 1 सेकेंड बाद खिलाड़ियों के लिए ये sms कर दिया..ये भी इशारा है बेहतर भारत का.”

इस ट्वीट में कहने को कुछ भी नहीं है लेकिन देखा जाए तो बहुत कुछ है.क्या वाकई प्रधानमंत्री के लिए मैच देखना और एक सेकेंड बाद एसएमएस करना बेहतर भारत का इशारा करता है? आप एक बार फिर से इस ट्वीट की भाषा पढ़िए. पूरा मैच देखना भी एक अलग से विशेषण हो गया है. यही नहीं मैच देखने के एक एक सेकेंड बाद एस एस एम एस भेजना भी बड़ी बात है. लेकिन सिर्फ पूरा मैच देखने से ही भारत में खेल का भविष्य संवर जाता तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती थी. 

2018 में खेलो इंडिया का लांच कितना आलीशान था. इस आयोजन पर कितना खर्च हुआ होगा ताकि देश भर में संदेश जाए कि सरकार खेलों को लेकर गंभीर हो गई है. चाहती है कि स्कूल से ही खेल जीवन का हिस्सा बने. इस आयोजन में मौजूद लोगों को लगा होगा कि सरकार खेलों पर खूब खर्च करेगी और बढ़ावा देगी लेकिन इस अभियान की रफ्तार भी चुपके से धीमी कर दी गई. इसकी वेबसाइट पर एक शपथ पत्र भी बनाया गया है जिसे देखने पर पता चलता है कि साढ़े सोलह लाख भारतीयों ने ही शपथ ली है. जो कि काफी कम है. भाजपा सांसद मनोज तिवारी प्रधानमंत्री से पूछ सकते हैं कि मार्च 2021 में राज्य सभा की स्थायी समिति की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा है कि खेलो इंडिया के तहत 100 नेशनल स्पोर्ट्स अकेडमी बननी थी. 43 ही बनी है. इसके तहत 1000 छोटी छोटी खेल अकादमी भी बनाई जानी थी लेकिन 106 ही बनी हैं. इसमें से भी 60 ऐसे केंद्र हैं जो पहले से बने हुए थे जिनका केवल स्वरूप बदला गया. मार्च में स्थायी समिति की रिपोर्ट है लेकिन अगस्त में खेल मंत्री लिखित जवाब में कहते हैं कि 360 केंद्रों को अधिसूचित किया गया है. अधिसूचित और बन कर तैयार होने में अंतर स्पष्ट नहीं किया गया है. स्थायी समिति ने नोट किया है कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में भारतीय खेल प्राधिकरण के 23 सेंटर फॉर एक्सेलेंस काफी नहीं हैं. इसी संदर्भ में समिति लिखती है कि खेल प्राधिकरण के केंद्रों को ओडिशा मॉडल के अनुसार बेहतर करने की ज़रूरत है. ओडिशा मॉ़डल की तारीफ राज्य सभा की स्थायी समिति में हो चुकी है. देश को बाद में पता चला है. हाकी राष्ट्रीय खेल है लेकिन उसका प्रायोजक एक राज्य सरकार कर रही है. लेकिन जब खेलो इंडिया अभियान चालू  हुआ तो लगा कि सरकार तेज़ी से कुछ करने जा रही है लेकिन हेडलाइन बदलते ही प्राथमिकताएं बदल जाती हैं और रफ्तार सुस्त हो जाती है. 

लेकिन आप खेल और खेलो इंडिया के बजट का हाल देखें तो पता चलेगा कि जितनी गंभीरता अभियान के आयोजन को लेकर है उतनी बजट के बंटवारे को लेकर नहीं है. राज्य सभा की स्थायी समिति ने मार्च 2021 की अपनी 325वीं रिपोर्ट में कहा है खेलो इंडिया पर 1400 करोड़ खर्च करने का अनुमान बताया गया था लेकिन 2021-22 में इसके लिए 657 करोड़ ही दिया गया जो 53 प्रतिशत कम है. समिति का मानना है जब बजट संशोधित हो तभी इसका पैसा बढ़ाया जाए ताकि खेलों के ढांचे के विकास के काम पर प्रतिकूल असर न पड़े. 

इसके अलावा 2020-21 के बजट में खेलो इंडिया के लिए दी गई राशि एक साल में 63 फीसदी कम हो जाती है. यह राशि पूरे देश में खेल से जुड़े अभियान को लेकर पर्याप्त तो नहीं लगती है. बजट के ऐलान के समय जो वादा किया जाता है वो असल में आते आते काफी कम हो जाती है. किसी साल खेल के बजट में 11 प्रतिशत की कमी आई है तो किसी साल 16 प्रतिशत, तो किसी साल 36 प्रतिशत. दो हफ्ते से इस देश में मैच देखने और शुभकामनाएं देने पर चर्चा हो रही है सब उसी गंगा में हाथ धो रहे हैं और बहते जा रहे हैं लेकिन खेल को लेकर केंद्र के बजट और प्राथमिकता का क्या हाल है इस पर भी बात होनी चाहिए.पता चल रहा है कि वातावरण बनाने पर कितना ज़ोर दिया जा रहा है. 

मनोज तिवारी और अनुराग ठाकुर के बयान एक हो जाते हैं जिससे पता चलता है कि ईवेंट और प्रचार कितना ज़रूरी हो चुका है. बुनियादी ढांचे का विकास वातावरण के निर्माण से पीछे हो जा रहा है. वातावरण बना रहे हैं इसलिए ओलिंपिक गए सभी खिलाड़ियों के दल को 15 अगस्त के दिन लाल किले में आमंत्रित किया गया है. बताया गया है कि प्रधानमंत्री सभी से मिलेंगे. प्रधानमंत्री का खिलाड़ियों से बात करना, उनसे मिलना और पूरा मैच देखना अगर खेलों के विकास के लिए ज़रूरी है तो बजट और ज़मीन पर बुनियादी ढांचों के विकास में तेज़ी भी ज़रूरी है. National Sports Development Fund का बजट भी कम हुआ है जो पहले से ही कम था. 2019-20 में 77 करोड़ बजट था. 2020-21 में इसके बजट में 35 प्रतिशत की कटोती हो गई. 50 करोड़ हो गया. 2020-21 में जब बजट संशोधित हुआ तो 7 करोड़ पर आ गया. 86 प्रतिशत कम हो गया. 2021-22 में इसका बजट 25 करोड़ किया गया है. 

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राज्यसभा स्टेंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि “50 करोड़ से 7 करोड़ इसलिए करना पड़ा क्योंकि कारपोरेट सोशल रेस्पांसिब्लिटी के तहत 50 करोड़ की रकम नहीं आई. कोल इंडिया ने पैसे नहीं दिए. इतने बड़े देश में National Sports Development Fund के लिए CSR से पैसा नही आया तो 50 करोड़ का इतंज़ाम नहीं हो सका और बजट 50 करोड़ से घटा कर 7 करोड़ कर दिया गया. इससे अधिक तो पदक जीतने के लिए शुभकामनाओं के विज्ञापन पर खर्च हो जाते होंगे ताकि वातावरण बना रहे. यही आपको समझना है राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, खेल को लेकर निवेश बहुत बड़ा नहीं है लेकिन शुभकामनाओं पर नेता काफी समय खर्च करते हैं और पैसा भी. हर जीत पर ट्वीट करेंगे और हर हार पर हौसला बढ़ाएंगे ताकि आपको लगे कि खेल इनकी प्राथमिकता में सबसे ऊपर है. खेलों में निवेश से अच्छा है मैच देखकर प्रचार में निवेश करना.