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रूस और यूक्रेन ही नहीं, अमेरिका को भी भारत पर ही विश्वास

Harish Chandra Burnwal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 28, 2024 17:52 pm IST
    • Published On अगस्त 28, 2024 17:52 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 28, 2024 17:52 pm IST

कोविड महामारी के दौर में ही, फरवरी, 2022 में, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हो गया. महामारी ने विश्व में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को पूरी तरह तहस-नहस कर ही रखा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने उस आपूर्ति-व्यवस्था को और अधिक चोट पहुंचाई. परिणाम यह हुआ कि दुनिया के तमाम देशों में तेल और अनाज की आपूर्ति कम हो गई, महंगाई बढ़ने लगी और दुनिया में छोटे-छोटे देश ही नहीं, अमेरिका जैसे विकसित देश भी महंगाई की चपेट में आ गए. लेकिन इन सबके बीच भारत एकमात्र देश था, जिसने महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के दौर में भी महंगाई को काबू में रखा और देश की 140 करोड़ जनता के लिए तेल से लेकर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को अबाध बनाए रखा.

भारत की इस उपलब्धि के पीछे देश की वह तटस्थ विदेश नीति है, जिसके चलते उसने न सिर्फ़ कोविड महामारी में, बल्कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी हर देश से समान रूप से नज़दीकी और दोस्ती बनाए रखी. भारत ने जहां रूस से बड़े पैमाने पर तेल आयात किया, वहीं यूक्रेन से खाद, खाने के तेल और तमाम तरह की औद्योगिक मशीनरी लेता रहा. भारत की इस तटस्थ विदेश नीति ने विश्व में जो विश्वास पैदा किया, वही आज भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति का आधार है, जिसे रूस और यूक्रेन के साथ-साथ अमेरिका भी स्वीकार करता है. इसलिए युद्ध के 870 दिनों के बाद, अमेरिका, रूस और यूक्रेन शांति की तलाश में भारत को ही मध्यस्थ के रूप में देखना चाहते हैं.

ज़ेलेंस्की का अनुरोध

23 अगस्त को सात घंटे की यात्रा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब यूक्रेन पहुंचे, तो उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की से दो टूक कहा कि वह रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से आमने-सामने बैठकर वार्ता करें. साथ में यह आश्वासन भी दिया कि एक मित्र के रूप में व्यक्तिगत रूप से शांति वार्ता के लिए जो भी संभव मदद है, वह करने के लिए तैयार हैं. वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की भली-भांति जानते हैं कि 15 से 16 जून तक स्विट्ज़रलैंड के बर्गेनस्टॉक में चली पहली शांति वार्ता इसलिए सफल नहीं हो सकी थी, क्योंकि उसमें राष्ट्रपति पुतिन ने हिस्सा लेने से मना कर दिया था, जबकि ज़ेलेंस्की इस शांति वार्ता के लिए स्विट्ज़रलैंड के साथ पिछले एक साल से काम कर रहे थे. राष्ट्रपति पुतिन की भी बर्गेनस्टॉक शांति वार्ता में शामिल होने की यही शर्त थी कि उनके हित की बात पर चर्चा करने का माहौल हो.

हकीकत यह थी कि इस शांति वार्ता में शामिल 92 देशों में से 80 देश सिर्फ़ यूक्रेन के ही पक्षकार बनकर सामने आ रहे थे. ये देश यूक्रेन द्वारा दिए गए शांति फ़ॉर्मूले के ज़रिये ही चर्चा का माहौल बनाने में लगे थे. ज़ाहिर है, भारत ने इस शांति वार्ता में हस्ताक्षर नहीं किया और बर्गेनस्टॉक की शांति वार्ता असफल हो गई. अब यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की इस युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए चाहते हैं कि राष्ट्रपति पुतिन भी अगली शांति वार्ता में अवश्य शामिल हों. लेकिन ज़ेलेंस्की जानते हैं कि राष्ट्रपति पुतिन को शांति वार्ता में शामिल करने का काम सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाला भारत ही कर सकता है, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा के दौरान राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने उनके सामने यह अनुरोध किया कि अगली शांति वार्ता भारत में आयोजित की जाए. ज़ेलेंस्की के इस प्रस्ताव का सीधा मतलब है कि राष्ट्रपति पुतिन शांति वार्ता में शामिल हों और रूस को इसमें लाने की ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री मोदी निभाएं.

पुतिन को मोदी पर भरोसा

प्रधानमंत्री मोदी 23 अगस्त को यूक्रेन यात्रा से करीब डेढ़ महीने पहले 9 जुलाई को रूस यात्रा पर भी गए थे. अपने तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी की यह पहली द्विपक्षीय यात्रा थी. इस यात्रा के दौरान राष्ट्रपति पुतिन ने अपने आलीशान घर नोवो-ओगारियोवो में प्रधानमंत्री मोदी से कई घंटे अनौपचारिक तरीके से अकेले में बातचीत की. सूत्रों के अनुसार, इस दौरान सभी मुद्दों पर बातचीत हुई. इसी यात्रा में राष्ट्रपति पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को रूस के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल' से भी सम्मानित किया. राष्ट्रपति पुतिन व्यक्तिगत रूप से भी प्रधानमंत्री मोदी का बहुत सम्मान करते हैं. राष्ट्रपति पुतिन अक्सर मीडिया के सामने प्रधानमंत्री मोदी की अनुपस्थिति में उनकी तारीफ करते रहते हैं. दिसंबर, 2023 में एक कार्यक्रम में सवालों का जवाब देते हुए राष्ट्रपति पुतिन ने कहा, "मैं बाहर से सिर्फ़ यह देखता हूं कि क्या हो रहा है... मैं सच कहूं तो भारतीय लोगों के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा पर मोदी के सख्त रुख से कभी-कभी आश्चर्यचकित भी होता हूं..."

इससे पहले 4 अक्टूबर, 2023 को भी एक कार्यक्रम में पुतिन ने कहा था, "नरेंद्र मोदी बहुत बुद्धिमान व्यक्ति हैं... उनके नेतृत्व में भारत विकास के मामले में काफी प्रगति कर रहा है... उनके इस एजेंडे पर काम करना भारत और रूस दोनों के हित से पूरी तरह मेल खाता है..." राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी के बीच जो व्यक्तिगत संबंध हैं, उनका ही नतीजा है कि भारत, पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के दबाव के बावजूद रूस से कच्चे तेल का आयात कर रहा है. हाल ही में प्रकाशित रिपोर्टें बताती हैं कि इस साल जुलाई माह में भारत रूस से कच्चा तेल खरीदने वाला सबसे बड़ा देश था और इस मामले में भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है. अब तक चीन ही रूस से सबसे अधिक तेल खरीदता था. ये सभी घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि राष्ट्रपति पुतिन को प्रधानमंत्री मोदी के साहसी व्यक्तित्व और निष्पक्ष कर्तृत्व पर पूरा विश्वास है.

ज़ेलेंस्की और पुतिन का मोदी पर विश्वास ही शांति की राह

आज जब रूस और यूक्रेन शांति की नई और सम्मानजनक राह तलाश रहे हैं, तो स्विट्ज़रलैंड की चर्चा भी ज़रूरी है. स्विट्ज़रलैंड दुनिया का एकमात्र देश है, जो कई तरह के शांति प्रयासों में सफल भूमिका निभा चुका है. इसकी विदेश नीति पूरी तरह तटस्थ रही है, लेकिन बर्गेनस्टॉक में 15-16 जून को जो पहली शांति वार्ता का आयोजन हुआ, वह पूरी तरह विफल रही. ऐसे में स्विट्ज़रलैंड भी अब मानता है कि भारत के हस्तक्षेप के बिना रूस-यूक्रेन पर होने वाली कोई शांति वार्ता सफल नहीं हो सकती.

आज विश्व को एक ऐसे देश और एक ऐसे व्यक्तित्व की ज़रूरत महसूस हो रही है, जिस देश पर रूस के साथ-साथ यूक्रेन भी भरोसा कर सके कि उसके हितों के साथ कोई समझौता नहीं होगा. इन परिस्थितियों में सिर्फ़ भारत ही ऐसा देश है, जो इस भूमिका को निभा सकता है. इस विश्वास को कायम रखने के लिए ही 15-16 जून को हुई पहली शांति वार्ता में प्रधानमंत्री मोदी ने हिस्सा नहीं लिया था, क्योंकि रूस के राष्ट्रपति ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया था और भारत का स्पष्ट मत था कि रूस के शामिल हुए बिना कोई भी शांति वार्ता अधूरी और एकतरफा होगी, जिससे युद्ध खत्म होने की संभावना बिल्कुल नगण्य होगी.

यह सब जानते हुए भी भारत ने इस शांति वार्ता में शामिल होने के लिए विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी पवन कपूर, सचिव (वेस्ट) को भेजा था, लेकिन भारत ने शांति वार्ता के बाद जारी ज्वाइंट स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि भारत का मानना है कि रूस की अनुपस्थिति में जारी इस ज्वाइंट स्टेटमेंट का कोई औचित्य नहीं है. अब जब दूसरी शांति वार्ता इसी साल नवंबर में होनी है, तब यह प्रयास सभी देश कर रहे हैं कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन इसमें अवश्य शामिल हों, जिससे इस युद्ध को रोकने का रोडमैप जल्द से जल्द तैयार हो सके.

अमेरिका के लिए भी मोदी शांति दूत

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि जब तक इस शांति प्रक्रिया को अमेरिका का समर्थन नहीं मिलता, तब तक यह सफल नहीं हो सकती, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा के दो दिन बाद ही अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर बातचीत की और कहा कि अमेरिका इस शांति प्रक्रिया में भारत के प्रयासों का पूरी तरह समर्थन करता है, इससे यह और स्पष्ट हो रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति पुतिन, फिर राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की और अब राष्ट्रपति बाइडेन को एक-एक कर एक सूत्र में पिरो रहे हैं, ताकि नवंबर में होने वाली शांति वार्ता सफल हो सके. अमेरिकी राष्ट्रपति का भारत के लिए यह समर्थन उस समय आया है, जब वह पिछले कई दिन से छुट्टियां मनाने के लिए अमेरिका के डेलावेयर के रेहोबोथ बीच में अपने परिवार के साथ हैं. खास बात यह है कि वह इस समय सरकारी या कूटनीतिक काम लगभग नहीं के बराबर कर रहे हैं और अमेरिका इस समय नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में व्यस्त है.

शांति वार्ता भारत ही करा सकता है

रूस-यूक्रेन युद्ध में अब वह स्थिति आ चुकी है, जब रूस और यूक्रेन, दोनों ही युद्ध को अपनी-अपनी शर्तों पर खत्म करना चाहते हैं. वे जान चुके हैं कि युद्ध के मैदान से वे जो हासिल करना चाहते थे, वह हासिल नहीं कर सकते. दूसरी तरफ, दुनिया के ग्लोबल साउथ देशों के साथ-साथ यूरोप और अमेरिका भी चाहते हैं कि युद्ध जल्द से जल्द खत्म हो, लेकिन जिन शर्तों पर युद्ध खत्म होगा, उन शर्तों पर बातचीत के लिए राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को आमने-सामने बैठना बहुत ज़रूरी है. वहीं, रूस, यूक्रेन और अमेरिका अच्छी तरह समझ चुके हैं कि बातचीत के लिए सभी पक्षों को एक साथ बैठाने का काम इस समय दुनिया में सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ही कर सकता है.

हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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