17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने विस्तार से एक खाका पेश किया कि भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए पहले और बाद में पुलिस क्या क्या करेगी. वैसे तो पुलिस के पास पहले से भी पर्याप्त कानूनी अधिकार हैं लेकिन क्या ऐसा हो रहा है. हमारे सहयोगी सौरव शुक्ला और अश्विनी मेहरा ने भीड़ की हिंसा के कुछ आरोपियों से बात की है. पुलिस की किताब में उनकी भूमिका कुछ और है मगर वे खुफिया कैमरे पर अपनी भूमिका कुछ और बताते हैं. मारने की बात भी स्वीकार करते हैं और उनकी बात में से वो ज़हर और नफ़रत भी झलकती है जो उनके दिमाग़ में भर दिया गया है. NDTV 24X7 के श्रीनिवासन जैन की टीम अपने कार्यक्रम ट्रूथ वर्सेज हाइप के लिए सौरव और अश्विनी मेहरा काम कर रहे थे तब उन्हें पता चला कि सीधे मुख्य आरोपियों से मिलने के क्या जोखिम हो सकते हैं. फिर भी वे गए एक रिसर्चर बनकर. इनकी बातें इतनी भड़काऊ हैं कि कई बार सोचना पड़ा कि वो हिस्सा आप को दिखाएं या नहीं. इनकी सोच में ज़हर फैल चुका है. सत्ता के साथ और झूठी शान पर इतना भरोसा हो चला है कि वे आराम से बता रहे हैं कि कैसे मारा. कितना मारा. सौरव और अश्विनी की कहानी आप देखिए. इन दोनों ने हापुड़ और अलवर की घटना के दो आरोपियों से बात की है. इनकी बातचीत को अगर एक सैंपल के तौर पर भी लिया जाए तो भी एक सजग समाज को चिन्ता करनी चाहिए कि इन बातों से कहीं उसके अपने घर में कोई हत्यारा या दंगाई तो तैयार नहीं हो रहा है. यह बात मैं एक व्यापक संदर्भ में कह रहा हूं. यह बात भी स्पष्ट करना ज़रूरी है कि ये अभी आरोपी हैं और इन पर दोष साबित नहीं हुआ है. मगर सवाल उठता है कि क्या पुलिस की जांच सही है या फिर पुलिस अदालत के सामने सभी तथ्यों को रख रही है. ये वो आरोपी हैं जो घटना में शामिल होने की बात कर रहे हैं. बता रहे हैं कि कैसे उनका स्वागत हीरो की तरह हुआ. ज़हर कौन भर रहा है, कैसे भरा जा रहा है इसे समझे बिना सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को समझ लेने से काम नहीं चलेगा.
ऐसी घटनाओं की अनगिनत निंदा हो चुकी है मगर दिल्ली के आस पास ही इसका असर नहीं है. शुक्रवार रात हरियाणा के पलवल में एक संदिग्ध पशु चोर की गांव के लोगों ने ही पीट पीट कर हत्या कर दी. बताया गया कि वह शख्स भैंस चुराने आया था तभी लोगों की नींद खुल गई. बाकायदा उसे पकड़ा गया और बांध कर पीटा जाने लगा. वक्त रहते लोग उसे पुलिस के हवाले कर सकते थे मगर उन्होंने खुद ही सज़ा तय कर दी. पुलिस ने बताया कि मृतक के बाएं हाथ और गले पर कट के निशान हैं. जांच अधिकारी ने बताया कि पूछताछ में पता चला है कि गांव के श्रद्धाराम नाम के एक शख़्स के बेटे बीर, प्रकाश और रामकिशन ने भैंसों को चुराने आए चोर की पिटाई की जिससे उसकी मौत हो गई. हालांकि अभी तक मृतक के शव की पहचान नहीं हो पाई है. पुलिस गैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज कर शव की पहचान करने में जुटी है.
अब आते हैं सौरव और अश्विनी मेहरा की रिपोर्ट पर. इसी साल 18 जून को उत्तर प्रदेश के हापुड़ में एक शख्स पर भीड़ के हमले का मोबाइल वीडियो वायरल हो गया. वीडियो में 45 साल के एक मीट कारोबारी क़ासिम क़ुरैशी को बुरी तरह पीटा गया, जिससे बाद में उसकी मौत हो गई. भीड़ ने 65 साल के समीउद्दीन को भी मारा, इस दौरान कई बार उसकी दाढ़ी खींची और गाय को मारने का आरोप लगाते हुए गालियां भी दीं. इस मामले में पुलिस ने नौ लोगों को गिरफ़्तार किया. उन पर दंगा करने, हत्या की कोशिश और हत्या के आरोप लगाए गए. इतने गंभीर आरोपों के बावजूद इन नौ आरोपियों में से चार ज़मानत पर बाहर हैं. इस मामले में पुलिस की जांच में NDTV को कई खामियां नज़र आईं. सबसे बड़ी ये कि पुलिस FIR में इसे road rage का मामला बताया गया जबकि वीडियो सबूत कुछ और कह रहे हैं. आरोपी और पीड़ित दोनों ही पक्षों का कहना है कि ये हमला गाय मारने को लेकर हुआ. मुख्य आरोपियों में से एक को तो इस मामले में अपनी भूमिका पर कोई पछतावा नहीं है.
राकेश सिसोदिया को कानून का कोई डर नहीं है. क्या इसलिए डर नहीं है कि जो लोग उसे जेल से निकालकर हीरो की तरह घर ले गए, उनकी पहुंच सरकार के भीतर है? एक मिनट के लिए वह आरोपी न भी होता तो भी क्या इस तरह की बातों को सुनकर आपको चिन्ता नहीं होनी चाहिए कि कोई सड़क पर यह बात गर्व से कह रहा है कि एक नहीं हज़ारों को मार देगा. यह सोच कहां से आती है. क्या हमारे नेता इस सोच को अलग-अलग स्तर पर मान्यता दे रहे हैं. हापुड़ मामले में 4 लोग गिरफ्तार हुए थे. 18 दिनों बाद ही युधिष्ठिर सिसोदिया ज़मानत पर बाहर भी आ गया. वह मुख्य अभियुक्त है इस मामले में. पुलिस ने इसे मोटरसाइकिल को लेकर झगड़ा बताया था. पुलिस केस में इसे रोड रेज बताया गया है जबकि केस डायरी में लिखा है कि गौ हत्या को लेकर मामला भड़का था. बेल ऑर्डर में इस अंतर्विरोध का भी ज़िक्र है. पुलिस कहती है कि उसके पास सैमुद्दीन का बयान है मगर उसने कोई बयान ही नहीं दिया है. truth vs hype की मरियम ने ये सब पता लगाया था जिसे कुछ दिन पहले हमने भी दिखाया था. कासिम के परिवार वालों ने कहा कि कासिम बकरी का बिजनेस करता था, गाय का नहीं. मरियम ने मुख्य आरोपी से बात की तो वह साफ-साफ कह रहा है कि गौ मांस को लेकर ही झगड़ा हुआ था. यानी सौरव की रिपोर्ट और मरियम की पहले की रिपोर्ट से साफ है कि आरोपी अपनी भूमिका को लेकर पुलिस से ज्यादा स्पष्ट हैं.
VIDEO: क्या भीड़ की हिंसा के आरोपियों पर हुई नरमी?
मरियम ने तब भी हापुड़ के पुलिस अधिकारियों से बात करने का प्रयास किया मगर किसी ने बात नहीं की. अब एक और आरोपी राकेश सिसोदिया को आपने कहते सुना कि वह इस मामले में किस तरह से शामिल था. सौरव और अश्विनी ने अपनी इस स्टोरी पर काफी मेहनत की. खुद को जोखिम में डाला. हापुड़ के बाद वे अलवर पहुंच गए. पहलू ख़ान की मौत के मामले में एक आरोपी से बात करने. आरोपी खुफिया कैमरे पर साफ-साफ बोल रहा है कि उसने किस तरह से मारा, किस तरह से पहले पहलू खान की गाड़ी रोकी. 2017 में 6 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई थी लेकिन पुलिस जांच में ये पता चला था कि ये लोग वारदात के दौरान मौजूद नहीं थे. ये सभी अभी ज़मानत पर बाहर हैं. बाद में वीडियो फ़ुटेज को देखते हुए 9 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की गई, लेकिन इनके ख़िलाफ़ अभी आरोप तय नहीं हुए हैं, इस बीच सभी को हाइकोर्ट से ज़मानत मिल गई है.
This Article is From Aug 06, 2018
Exclusive: अलवर, हापुड़ की भीड़ की हिंसा पर NDTV की पड़ताल
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:अगस्त 06, 2018 22:49 pm IST
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Published On अगस्त 06, 2018 21:49 pm IST
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Last Updated On अगस्त 06, 2018 22:49 pm IST
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