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This Article is From Nov 25, 2016

सरकार जी, एक बेहतर कल चाहते हैं हम!

Manprit
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 25, 2016 17:44 pm IST
    • Published On नवंबर 25, 2016 16:54 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 25, 2016 17:44 pm IST
नोटबंदी की हर दिन बदलती ख़बरों में आज यह जान पड़ रहा है कि जीवन में अगर बिन बताए खलबली आ जाए तो तकलीफ़ तो होती है. रोज़ के बदलाव करते वक़्त सरकार को कैसा लगता होगा? यह एहसास हो रहा होगा कि कुछ ग़लत हुआ है? या फिर ठीक तरीक़े से लागू नहीं कर पाए. सरकार जी, आपने जिस तरह कई लोगों की नींद उड़ा दी है, उससे क्या आपको भी नींद न आने की बीमारी का ट्रायल मिल रहा है?

आपको चुनते समय बहुत लोग 'अच्छे दिनों' के गुणगान कर रहे थे मैं ख़ुद पहली क़तार में खड़ी हर बहस को करारा जवाब देती थी. पर सरकार जी धीरे-धीरे डर बैठ रहा है, आज जब सदैव चुप रहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अपनी धीमी पर दर्द की आवाज़ में बोला तो ख़ूब वाहवाही आने लगी. देखते ही देखते इंटरनेट आप दोनों (मनमोहन सिंह और पीएम नरेंद्र मोदी) की वायरल हुई तस्वीरों से भरने लगा. और शाम तक बदलाव की एक नई सूची आने लगी.

डर की वह लौ जो हर शाम मैं बुझा देती हूं, मुझे बार-बार अपना उजाला दिखा यह कह रही है कि देश को कुछ हो रहा है, कुछ बदलाव लाने होगें, नेता भगाने होंगें.

क्यों हर इंसान डर के नीचे दबा जा रहा है? क्यों आप लोग बेहतर कल का दावा कर कुछ और ही ले आते हैं. क्या कोई ऐसा नेता आएगा जो हमें वह घड़ी दिखाएगा जिसमें न सिर्फ़ काले धन पर मन की कालिख को दूर भगा हमें लहलहाते खेत, साफ़ पानी, प्रदूषण रहित हवा, बच्चों के बेहतर भविष्य की योजना, सबको समान अधिकार ( माफ़ कीजिएगा मेरी लिस्ट थोड़ी लंबी है) दिला पाएगा?

एक लेख में पढ़ा था कि हम धरतीवासी एक रेस में भागते जा रहे हैं. साफ़ स्वस्थ खाने को छोड़ फ़ास्ट फ़ूड को महत्व देते हैं. कपड़ों की ज़रूरत न होते हुए भी लाइन में घंटों लगकर ढेर लगाते हैं. दफ़्तर में डिप्रेशन के माहौल की सीढ़ी पर चढ़ते जाते हैं क्योंकि सिस्टम से न लड़ हम रेस में भागते रहकर पहले आने की जल्दी में एक बेहतर कल न बनाकर आज की ख़ुशी भी ख़त्म कर रहे हैं. अब बताइए, हमारी इतनी कमियों का फ़ायदा कोई कैसे न उठा पाएगा?

नेताजी तो बैठे ही हैं न हमें हमारे बेहतर कल से अलग कराने. न तो हमारे पास विकल्प है और न हम उन्हें खोज रहे हैं.सरकारें आ रही हैं और जा रही हैं पर कुछ बदलाव नहीं ला रहीं हैं. वह तो बस अमीर को अमीर और गरीब को लाइन में लगवा रहीं है.

बेहतर कल की चर्चा तो दूर की बात, कोई नोटबंदी की बात नहीं कर रहा. फ़ैसला ले लिया,अब मानो! वाला रवैया थोड़ा-थोड़ा समझ आ रहा है। डर अब जा रहा है और बदलाव लाने का बटन अपने आप ऑन हो रहा है. क़दम उठा बस एक ही बात कहते हैं हम की एक बेहतर कल चाहते हैं हम!

(मनप्रीत NDTV इंडिया में चैनल प्रोड्यूसर हैं)

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