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This Article is From Sep 30, 2020

बिहार में हर गठबंधन के पीछे भाजपा

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 30, 2020 18:10 pm IST
    • Published On सितंबर 30, 2020 18:10 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 30, 2020 18:10 pm IST

बिहार चुनाव के लिए राजनीति का शतरंज बिछ चुका है और सभी दलों ने अपना दांव खेलना शुरू कर दिया है. वैसे देखा जाए तो दो ही प्रमुख गठबंधन नजर आ रहे हैं एक बीजेपी-जदयू का एनडीए, जिसमें बीजेपी के साथ पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी है तो जेडीयू के साथ मांझी की हम पार्टी. दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाला महागठबंधन है, जिसमें कांग्रेस और वामदल हैं. मगर बिहार में गठबंधन की कहानी यहीं खत्म नहीं हो रही है. कुछ ऐसे गठबंधन भी मैदान में हैं जो दो बड़े गठबंधनों का खेल कई सीटों पर बिगाड़ सकते हैं.

सबसे बड़ी बात है ये गठबंधन आखिर बने क्यों हैं और इनसे किसको फायदा हो रहा है. साथ ही इनके पीछे है कौन.. सबसे पहले बात करते हैं उपेन्द्र कुशवाहा की आएलएसपी (RLSP) यानि राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच हुए गठबंधन की. माना जा रहा है कि कुशवाहा बीजेपी और राष्ट्रीय जनता दल दोनों से सीट समझौते के लिए बात कर रहे थे. बीजेपी से बात करने दिल्ली भी आए और यहां यह तय हुआ कि उनको बीएसपी के साथ जाना है. यदि राजनैतिक गॉसिप को माना जाए तो बीजेपी ने यह गठबंधन कराया है. जिसमें बीएसपी नेतृत्व की भी मूक सहमति रही.

जानकार यह भी कह रहे हैं कि यदि कुशवाहा का सीधे बीएसपी के साथ आमने-सामने समझौता होता तो यह खबर कभी क्यों नहीं आई कि उपेन्द्र कुशवाहा और बीएसपी प्रमुख मायावती की कोई मुलाकात हो रही है. कोई भी उनकी तस्वीर क्यों नहीं छपी.. मायावती जी को छोड़िए सतीश मिश्रा के साथ भी कुशवाहा की कोई तस्वीर कहीं नहीं छपी है. तो क्या यह गठबंधन बीजेपी नेतृत्व के इशारे पर किया गया है? क्या यह इसलिए किया गया है कि नीतिश कुमार को थोडा कमजोर किया जाए? यह कहने की वजह भी है नीतिश कुमार की जाति कुर्मी और कुशवाहा की जाति कोईरी को, बिहार में लव कुश कहा जाता है.

इनके दोनों जातियों के बीच शादियां भी होती है. दोनों जातियों में 2 फीसदी का अंतर है. बिहार में कुर्मी 5 फीसदी है तो कोईरी 7 फीसदी. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि बीएसपी के साथ कुशवाहा को इकट्ठा कर किसका नुकसान किया जा रहा है. बिहार में बीएसपी के पास करीब 3 फीसदी वोट है जो कुशवाहा के साथ मिलकर कई सीटों पर जेडीयू को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसको देखते हुए नीतिश कुमार ने भी एक चाल चल दी है. दलित वोटों को ध्यान में रखते हुए बिहार जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर दलित नेता अशोक चौधरी की नियुक्ति कर दी है.

बिहार में एक और मोर्चा है और वो भी वोट कटवा की ही भूमिका में है, यह मोर्चा है पप्पू यादव का. इसका नाम है प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन, जिसमें पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के अलावा चंद्रशेखर आजाद की बहुजन मुक्ति पार्टी (बीएमपी) के अलावा एसडीपीआई यानि सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया भी है. ये भी कुछ हिस्सों में यादव और दलित वोटों में सेंध लगा सकता है.

बिहार की एक और जाति आधारित पार्टी वीआईपी यानि विकाशसील इंसान पार्टी भी है जिसका अभी तक किसी से गठबंधन नहीं हुआ है. माना जा रहा है कि भाजपा इसे एक-दो सीट देकर अपने पाले में कर ले. मतलब साफ है, बिहार में इस बार एक-एक जाति के एक-एक वोट का महत्व है और असली खेल शुरू होगा चुनाव के बाद. बीजेपी को भी लग गया है कि नीतिश कुमार का यह अंतिम चुनाव है क्योंकि अगले साल वो 70 साल के हो जाएंगे और उनके बाद जेडीयू का क्या भविष्य होगा पता नहीं इसलिए बीजेपी अभी से तैयारियां करनी शुरू कर दी है. रणनीति है कि जेडीयू और बीजेपी करीब-करीब बराबर की सीटें लड़ें और बीजेपी को लगता है कि उनका प्रर्दशन जेडीयू से अच्छा होगा. भले ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहें मगर सरकार पर उनकी पकड़ ज्यादा रहेगी. फिर आगे की आगे देखेंगे. यानि बिहार में पिक्चर अभी बाकी है दोस्तों...

(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं.)

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