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चोर समझ कर लाठियों से पीटा, तलाशी ली तो मिलीं दो सूखी रोटियां और एक पुड़िया नमक

अनुराग द्वारी
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 07, 2025 17:09 pm IST
    • Published On अगस्त 07, 2025 16:45 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 07, 2025 17:09 pm IST
चोर समझ कर लाठियों से पीटा, तलाशी ली तो मिलीं दो सूखी रोटियां और एक पुड़िया नमक

मध्य प्रदेश के सतना का सरदार वल्लभ भाई पटेल जिला अस्पताल. भीड़ थी, हंगामा था, जमीन पर पड़ा एक युवक था, जो मार खा रहा था. किसी के हाथ में लाठी थी, किसी के भीतर शक.एक ग्रामीण युवक, जो अपने किसी बीमार परिजन को देखने आया था, अचानक दो युवकों की बर्बरता का शिकार बन गया. अस्पताल परिसर में ही, सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में, उसे पहले लात-घूंसों से पीटा गया, फिर लाठियों से पीट-पीटकर अधमरा कर दिया गया.

उसका कसूर? सिर्फ यह कि कुछ लोगों को उस पर चोरी का शक हुआ था.पुलिस नहीं बुलाई गई, ना कोई पूछताछ हुई, ना कोई सबूत देखा गया सिर्फ शक और हिंसा.

बेबस और सिसकती गरीबी

वह युवक अस्पताल की दीवार से टिककर बैठा रहा, खून से लथपथ, बेबस, सिसकता हुआ… और फिर जब किसी ने हिम्मत कर उसकी जेब टटोली, तो वहां से निकलीं सिर्फ दो सूखी रोटियां और नमक की एक छोटी पुड़िया.

यह दृश्य किसी कथा का अंत नहीं, आज की संवेदनहीन होती समाज व्यवस्था का आइना है. भीड़ के पास समय था पीटने का, गुस्सा था, लाठियां थीं, पर किसी के पास पलभर की भी इंसानियत नहीं थी, जो पूछ लेता,''भाई, तुम यहां क्यों आए हो?''

जो रोटियों और नमक से भरी जेब लिए अस्पताल पहुंचा, वह चोर कैसे हो सकता है?

जब एक गरीब की जेब में रोटी और नमक ही मिले और जवाब में उसे लाठी मिले तो यह घटना किसी अपराध की नहीं, एक पूरे समाज के पतन की गवाही है.

सरकार के आंकड़ों में गरीबी

मध्य प्रदेश में ऐसे दृश्य आज कोई अपवाद नहीं हैं. साल 2023 में नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश की 37 फीसदी आबादी गरीब है, यानी करीब ढाई करोड़ लोग आज भी जीवन के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. करीब एक करोड़ 29 लाख परिवारों को सरकार की ओर से मुफ्त राशन दिया जा रहा है, यह आंकड़े जितने बड़े हैं, उनकी छाया में छिपी हकीकत उतनी ही पीड़ादायक है.

साल 2023 में नीति आयोग की ही रिपोर्ट ने बताया था कि एक करोड़ 36 लाख लोग गरीबी के चक्र से बाहर निकले हैं. लेकिन यह सवाल भी उठना चाहिए, क्या गरीबी से बाहर निकलने की सरकारी परिभाषा, इंसानी गरिमा और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी भी देती है? या फिर रोटियों से भरी जेब वाले किसी ग्रामीण की जान को, शक के आधार पर कुचला जा सकता है?

मूकदर्शक बनता समाज

यह कहानी केवल उस युवक की नहीं है. यह हमारी सामूहिक चेतना की असफलता की कहानी है.भीड़ अब न्याय करती है.
पुलिस अब शिकायत का इंतज़ार करती है. और हम, सभ्य समाज के नागरिक अब सिर्फ मूकदर्शक होते जा रहे हैं. क्या हमने अपनी करुणा को खो दिया है? क्या अब किसी की गरीबी ही उसका अपराध है? 

गरीबी आंकड़ों से नहीं, घटनाओं से समझिए. संवेदनशीलता भाषणों से नहीं, व्यवहार से तय होती है.और इंसानियत वह उस वक्त जिंदा होती है जब आप किसी की जेब में रोटियां देखकर उसे चोर नहीं, भूखा समझते हैं.

अस्वीकरण: लेखक एनडीटीवी मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ टीवी चैनल के कार्यकारी संपादक हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी की सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. 

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