ऐसा कम ही होता है जब मंत्री मुलाकात के लिये तुरंत तैयार हो जाएं. लेकिन पर्यावरण मंत्री अनिल दवे की सबसे अच्छी बात यही थी कि वह किसी से भी बात करने को तैयार रहते थे. अनिल दवे अब नहीं हैं. बुधवार देर रात उन्हें सांस की तकलीफ के बाद एम्स ले जाया गया जहां उनका निधन हो गया.
बुधवार को जीएम सरसों का विरोध कर रहे इन कार्यकर्ताओं के मंत्री से मिलते वक्त मैं भी उनके कमरे तक पहुंच गया. जब उनके स्टाफ ने मुझे भीतर जाने से मना किया तो मैंने जबरन दरवाजा खोलकर मंत्री जी से इस मीटिंग की कुछ तस्वीरें लेने की इजाजत चाही. उन्होंने मुंह से कुछ नहीं कहा बस अपने जाने पहचाने अंदाज में हां की मुद्रा में सिर हिला दिया. ये तस्वीर और वीडियो अनिल दवे की वही आखिरी तस्वीरें हैं जो मैंने अपने मोबाइल से रिकॉर्ड की.
60 साल के अनिल दवे को पिछले साल जब पर्यावरण मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया तो मंत्रालय विवादों में था. सरकार ने विकास परियोजनाओं के नाम पर कई नियमों को ढीला कर पर्यावरण के जानकारों और कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया था. दवे के कई कठिन फैसले लेने की चुनौती थी. दुर्भाग्य से उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा लेकिन इस दौर में उन्होंने विवादित केन-बेतवा नदी प्रोजेक्ट के लिये वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस दी. उनके वक्त में कैम्पा बिल भी पास हुआ. कैम्पा बिल खनन, विकास परियोजनाओं और शहरीकरण के लिये काटे गये जंगलों के मुआवजे के लिये बना बिल है.
अपना पदभार संभालते समय दवे ने जो बातें अपने स्टाफ से कहीं वो बड़ी दिलचस्प थीं. उन्होंने कहा, 'मेरा कोई परिवार नहीं है. मुझे किसी को डिनर पर नहीं ले जाना होता शाम को. मेरा काम ही मेरा जीवन है. मैं ऑफिस में देर तक रुकुंगा लेकिन आप लोग घबराइये नहीं. मैं जानता हूं आप सबके परिवार हैं. आप वक्त पर आइये और काम खत्म कर वक्त पर घर जा सकते हैं.'
बुधवार को दवे पूरे दिन काम कर रहे थे. उन्होंने प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की और शाम को अपने स्टाफ से भी बात की. आज उन्हें कोयम्बटूर जाना था और गोवा को एक सम्मेलन में हिस्सा लेने गोवा.
मंत्री के तौर पर दवे के सामने एक चुनौती पर्यावरण के मामले में संघ (आरएसएस) के नज़रिये का खयाल रखने की भी थी. जीएम सरसों को लेकर संघ भी खुश नहीं है और इसे किसानों के हित के खिलाफ बताता है. दवे ने जब बुधवार को सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ बैठक पूरी की तो मैंने उनसे सवाल किया, “सर क्या जीएम सरसों को देंगे क्लीयरेंस?” एक इत्मीनान भरी मुस्कान के साथ दवे ने कहा था, “कोई जल्दी नहीं है. ये लोग (सामाजिक कार्यकर्ता) यूं ही परेशान हो रहे हैं. सोच समझ कर ही फैसला होगा.”
दवे अब नहीं हैं लेकिन फैसला सोच समझ कर करने वाले मंत्री को ये मंत्रालय सौंपना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
हृदयेश जोशी NDTV इंडिया में सीनियर एडिटर हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.