लेकिन इन सबके बावजूद मेरी मुलाक़ात हुई और मैं प्रेरित हुआ. सादा टी-शर्ट और लंबी हाफ़-पैंट जिसे बरमूडा या थ्री फ़ोर्थ जैसा कुछ कहते हैं, पहने हुए मैग्नस से मिलकर ऐसा ही लगा. मैंने बातचीत शुरू करने के लिए उनका पूरा नाम पूछा तो उन्होंने बताया मैग्नस पीटरसन. तो मैंने पूछा - जैसे, केविन पीटरसन? जिसपर मैग्नस थोड़ी दुविधा में पड़ गए, फिर मुझे लगा कि ग़लत देश के आदमी से क्रिकेटर के बारे में पूछ लिया. दरअसल मैग्नस पीटरसन स्वीडन के हैं और वो स्वीडन के ही सफ़र पर हैं, जिस रास्ते में उनसे मुलाक़ात हुई.
यह सफ़र है ऑस्ट्रेलिया से स्वीडन का और मैग्नस निकले हैं सड़क के रास्ते. अपनी ट्रायंफ़ टाइगर एक्सप्लोरर बाइक लेकर. मैग्नस एक कंसल्टेंसी ग्रुप में काम करने वाले शख़्स हैं. छह महीने की छुट्टी ली है. इस छुट्टी को उन्होंने दुनिया घूमने के लिए इस्तेमाल करने की सोची है. लगभग 25 हज़ार किलोमीटर का सफ़र तय करके, 20 देशों से गुज़र कर वो स्वीडन पहुंचेंगे. मैग्नस ने बताया कि पहले तो इस कार्यक्रम के बारे में सुनकर उनकी मां बहुत परेशान हुईं, पर सभी उनकी राइड को फॉलो कर रहे हैं. अब भारत तक आकर उनका आधे से ज़्यादा सफ़र पूरा हो चुका है. अब कुछ हज़ार किलोमीटर और बचे हैं. अब दिल्ली से अमृतसर होते हुए वो पाकिस्तान जाएंगे, ईरान जाएंगे, तुर्की जाएंगे. फिर यूरोप के देशों को जल्दी जल्दी कूदते फांदते स्वीडन पहुंचेंगे.
हमारी पहली चिंता हुई कि वीज़ा हो गया? तो उन्होंने बताया कि हां, पाकिस्तान और ईरान का वीज़ा हो गया है. ऐसा नहीं कि मैग्नस जैसे राइडर से मैं पहले नहीं मिला था. पहले भी कई विदेशी राइडरों से मैं मिला हूँ जो तीन से छह महीने की छुट्टी लेकर राइड करने के लिए भारत आए थे. ऐसे राइडरों से भी मिला हूं जो दुनिया घूमने के लिए निकले हुए थे. पर उन सबकी तैयारी इतने भव्य स्तर पर होती थी जो आम लोगों के लिए दूर की कौड़ी लगती थी. पर अब भारत में मोटरसाइकिलिंग का कल्चर बदल चुका है और मैग्नस जैसे राइडर को अकेले ऑस्ट्रेलिया से स्वीडन जाते देख लोगों की प्रतिक्रिया लगी कि लेह लद्दाख़ तो अब बहुत जा चुके ऐसे ही किसी राइड पर निकलना चाहिए. और वैसी ही कहानियां सुनाएं जैसे मैग्नस के पास हैं. जैसे ऑस्ट्रेलिया, जहां पर मैग्नस ने लगभग चार हज़ार किलोमीटर की यात्रा की है. और जगह ऐसी कि चार-चार घंटे मोटरसाइकिल भगा लो पर एक इंसान नज़र नहीं आता. ख़ाली कुछ गाय या कंगारू दिख जाते थे.
हालांकि उन्होंने मौसम के लिए प्लान तो किया था पर तिमोर-म्यांमार वाले रास्ते में बारिश से रूबरू होना पड़ा. मैग्नस ने बताया कि ऐसी लंबी राइड प्लान करने के लिए एक बात जो सबसे ज़रूरी है वो है एक्स्ट्रा समय. जितना भी प्लान कीजिए, कुछ जगहें ऐसी ज़रूर होती हैं जहां आप ज़्यादा वक़्त गुज़ारना चाहते हैं, जगह को अच्छे से देखना चाहते हैं. इसके लिए हमेशा वक़्त रखना चाहिए. ये बात उन्होंने और ज़्यादा महसूस की जब वो भारत आए. जिसके बारे में उनकी छवि दिल्ली जैसी थी. लोगों से भरा हुआ, चहल पहल भरा देश. पर मणिपुर में उनकी धारणा बदल गई जब ठंडे और पहाड़ी रास्तों से वो गुज़रे. और जैसे जैसे आगे बढ़े धारणा बदलती गई.
सोशल मीडिया की वर्चुअल फ़्रेंड लिस्ट से रीयल वर्ल्ड में दोस्ती बनाना बहुत आसान नहीं होता पर मैग्नस के लिए नहीं. लोगों से होटेल का रास्ता पूछा तो लोगों ने घर में ठहरा दिया. टायर बदलने के लिए मेकैनिक का पता पूछा तो पूरा गांव टायर बदलने में उनकी मदद के लिए जुट गया. और सोचिए ये सब दोस्ती तब जब मैग्नस और लोगों की भाषा भी अलग अलग थी. वहीं उनके पुराने मित्र भी सोशल मीडिया के ज़रिए उनसे जुड़े हुए हैं, उनकी पूरी राइड को फ़ॉलो कर रहे हैं, इंस्टाग्राम पर अपनी यात्रा के हर अहम पड़ाव को वो पोस्ट कर रहे हैं. पर ऐसे सफ़र की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है कहानियां. पूरी ज़िंदगी सुनाने के लिए ढेर सारी कहानियां कमाई हैं मैग्नस पीटरसन फ़्रौम स्वीडन ने.
(क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...)
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