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मलबे में दबी जिंदगियां और भयानक मंजर... मसूरी में सो रहा है धराली का सबसे बड़ा गुनहगार?

Dharali Cloud Burst : धराली में आई प्रलय के बाद से ये कहा जा रहा है कि अगर वहां देवदार के पेड़ों की कटाई ना होती तो धराली को ये दिन ना देखने पड़ते. आगे बढ़ने से पहले आपको बताते हैं कि आखिर देवदार की कटाई क्यों धराली के विनाश का कारण बन गए.

  • लगभग दो सौ साल पहले ब्रिटिश भगोड़े फ्रेडरिक विल्सन ने धराली के देवदार के पेड़ों की कटाई कर नुकसान पहुंचाया.
  • विल्सन ने टिहरी के राजा से लकड़ी कटाई का ठेका लेकर हर्षिल, धराली, मुखबा समेत आसपास में देवदार काटे.
  • देवदार के पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई से धराली का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा और क्षेत्र विनाश की ओर बढ़ा.
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Uttarkashi Cloud Burst : कौन है धराली का सबसे बड़ा गुनहगार... सवाल जितना जरूरी है, जवाब उतना ही गंभीर.. धराली का ये गुनहगार उसी मुखबा गांव से धराली की तबाही देखता रहा और हंसता रहा, जिस मुखबा गांव से लोगों ने अपने मोबाइल फोन में तबाही की तस्वीरों को कैद किया. धराली में देवदार को काटने के लिए सुबह से देर रात तक आरियां चलती रहीं और ये गुनहगार अपने बंगले के आगे बैठकर अमीर बनने के सपने देखता रहा. धराली को उसके मौजूदा हाल तक पहुंचाने वाले इस सबसे बड़े दोषी की कहानी सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे. हम आपको आज की वो तस्वीरें भी दिखाएंगे, जो धराली की पीड़ा और धराली के प्रति संवेदना की कहानी कहती हैं...लेकिन पहले धराली का सबसे बड़ा गुहनहगार और वो आखिर है कहां है? 

Dharali Cloud Burst : धराली का सबसे बड़ा खलनायक कौन?

जिस धराली की तबाही की तस्वीर इतनी भयानक है. उसका कोई तो गुनहगार होगा. उसका कोई तो चेहरा होगा. उसका कोई तो नाम होगा. आरियां चल रही हैं और यहां आरियां कौन चला रहा है, किसपर चला रहा है. ये कहानी है फ्रेडरिक विल्सन की...आखिर हम विल्सन को धराली का सबसे बड़ा खलनायक क्यों कह रहे हैं? करीब 200 साल पहले विल्सन की कहानियां गूंजती थीं. उन कहानियों में लालच थी, दौलत कमाने की भूख थी और कुल मिलाकर पहाड़ को खोखला बना देने की एक भयानक सोच भी थी. विल्सन को हर्षिल के राजा, पहाड़ी विल्सन या शिकारी विल्सन के नाम से भी जाना जाता था और तो और विल्सन ने अपने नाम का सिक्का भी चलवाया. रुडयार्ड किपलिंग की कहानी "the man who would be king" उसी विल्सन की कहानी पर आधारित थी.

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कब्रिस्तान में तब्दील हो चुके धराली के इसी इलाके में विल्सन आया था.सतब यहां देवदार के ऊंचे ऊंचे पेड़ थे. विल्सन ब्रिटिश आर्मी का भगोड़ा था. उसे छुपने के लिए ये जगह सही लगी. लेकिन जो देवदार इस धरती के लिए वरदान थे, उन्हीं देवदार के पेड़ों पर विल्सन की लालची नजर पड़ गई. राजगोपाल सिंह वर्मा की किताब 'फिरंगी राजा' में जिक्र है कि विल्सन मुखबा में अपने बंगले के आगे बैठकर धराली की बर्बादी करवाता था.

किताब में लिखा है, 'विल्सन ने धराली के देवदार के वृक्षों पर अपनी निगाह जमाई. उत्तरकाशी के धरासू में तो पेड़ों का कटान चल ही रहा था. धराली में भी देवदार के पेड़ों की कटाई भोर सवेरे से शुरू थी. धराली में दिन छिपने तक पैनी आरियां चलने की आवाजें आती थीं. ये आवाजें पर्वतों का सीना चीर कर लोगों के दिल दहलाती रहती थीं. ये जगहें विल्सन के बंगले मुखबा से अधिक दूर नहीं थीं. वो पहाड़ी पर स्थित अपने घर के बारामदे से बैठकर प्रसन्नता महसूस करता था.

देवदार की कटाई क्यों धराली के विनाश का कारण?

आपको याद होगा धराली में आई प्रलय के बाद से ये कहा जा रहा है कि अगर वहां देवदार के पेड़ों की कटाई ना होती तो धराली को ये दिन ना देखने पड़ते. आगे बढ़ने से पहले आपको बताते हैं कि आखिर देवदार की कटाई क्यों धराली के विनाश का कारण बन गए.

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2 लाख से ज्यादा देवदार काटे गए

18वीं सदी का तीसरा दशक वो दौर था, जब भारत में रेलवे की शुरुआत के लिए तैयारियां चल रही थी. विल्सन को रेलवे ट्रैक पर इस्तेमाल होने वाली लकड़ी की पटरियों में संभावना दिखी. उसने टिहरी के राजा सुदर्शन शाह से लकड़ी की कटाई के अधिकार लिए. इसके बाद विल्सन रुका नहीं. उसने लकड़ी की मांग को पूरा करने के लिए देवदार के जंगलों को काट दिया. कहा जाता है कि विल्सन ने हर्षिल, धराली, मुखबा और गंगोत्री के इलाके में 600 एकड़ के एरिया में 2 लाख से ज्यादा देवदार काटे.

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समय के साथ विल्सन की लालच तो बढ़ रही थी. लेकिन उसके लालच में धराली और आसपास के शानदार जंगल भी नष्ट होने लगे. कुदरती संतुलन तहस-नहस हो गया. आज भी इलाके के लोग विल्सन को एक शापित इंसान के रूप में याद करते हैं. वो जिंदा तो है लेकिन देवदार के हत्यारे के रूप में, जिस पहाड़ पर देवदार की पूजा एक देवता के रूप में होती है. वहां उसने देवदार का संहार किया.

जब पंडित ने कहा आप देवदार मत काटिए

फिरंगी राजा किताब में इस बात का जिक्र है कि विल्सन ने किसी की बात नहीं मानी. धराली और मुखबा के इलाके में एक मंदिर के पंडित ने विल्सन को बहुत समझाया. पंडित ने कहा आप देवदार मत काटिए. लेकिन विल्सन ने साफ कहा कि मेरे पास तो लकड़ी की कटाई का ठेका है. विल्सन ने कहा कि मैं पूरी तरह कानून सम्मत काम कर रहा हूं. उसने ये धौंस भी दिखाई कि ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम कर रहा है और ये भी कहा कि सारा काम टिहरी के राजा की स्वीकृति से कर रहा है. विल्सन ने ये कहकर पंडित की बात को हवा में उड़ा दिया कि इसमें देवदार का प्रकोप कहां है?

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विल्सन ने 1857 देवदार की कटाई करके अकूत संपत्ति कमाई. उसे फिरंगी राजा का तमगा मिल गया. टिहरी गढ़वाल, खासकर हर्षिल और आसपास के इलाकों में उसके किस्से आम हो गए. उसने एक बुजुर्ग के घर में शरण ली. बाद में उसकी बेटी से शादी कर ली. और पत्नी के निधन के बाद उसी की रिश्तेदार गुलाबो से विवाह कर लिया.

कहते हैं कि पहाड़ी रास्ते पर एक भी गलत कदम पड़ा नहीं कि आप खाई में गिर गए. फ्रेडरिक विल्सन के साथ भी वहीं हुआ. उसके चरित्र पर भी सवाल उठे. उसने वन्यजीवों के शिकार और व्यापार के गलत धंधे में भी हाथ डाल दिया और आखिर में जीवन की ढलान पर पहुंचकर धराली और हर्षिल को छोड़ मसूरी चला गया. विडंबना देखिए कि मसूरी में उसे एक देवदार के नीचे ही दफनाया भी गया.

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