विज्ञापन

स्मृति शेष : जब एक किशोर क्रांतिकारी हाथ में गीता लिए फांसी के फंदे पर झूल गया

अंग्रेज सरकार उनकी निडरता और वीरता से इस कदर आतंकित थी कि उनकी कम उम्र के बावजूद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी. यह साहसी किशोर हाथ में गीता लेकर ख़ुशी-ख़ुशी फांसी चढ़ गया.

स्मृति शेष : जब एक किशोर क्रांतिकारी हाथ में गीता लिए फांसी के फंदे पर झूल गया
  • खुदीराम बोस ने मात्र अठारह वर्ष की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया था.
  • मुजफ्फरपुर बम कांड में खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी ने जिला जज डगलस किंग्सफोर्ड को निशाना बनाया था.
  • बम हमले में किंग्सफोर्ड सुरक्षित बच गया लेकिन दो ब्रिटिश महिलाएं मारी गईं और क्रांतिकारी फरार हो गए थे.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्ली:

11 अगस्त 1908.. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह दिन, जब मात्र 18 वर्ष की उम्र में एक युवा क्रांतिकारी ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगाया और इतिहास में अमर हो गया. वह वीर थे खुदीराम बोस, जिनका बलिदान आज भी देशभक्ति की मिसाल बना हुआ है.

अंग्रेज सरकार उनकी निडरता और वीरता से इस कदर आतंकित थी कि उनकी कम उम्र के बावजूद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी. यह साहसी किशोर हाथ में गीता लेकर ख़ुशी-ख़ुशी फांसी चढ़ गया.

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था. बचपन से ही उनके भीतर देश के लिए कुछ कर गुजरने की ललक थी. स्कूल के दिनों में ही उन्होंने स्वदेशी आंदोलन और क्रांतिकारी विचारधारा को अपनाया. उस समय बंगाल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनाक्रोश चरम पर था, और 1905 का बंगाल विभाजन इस आग में घी का काम कर गया.

खुदीराम ने ‘युगांतर' जैसे क्रांतिकारी संगठनों से जुड़कर अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया. उनका सबसे चर्चित कार्य था मुजफ्फरपुर बम कांड, जिसमें उन्होंने अपने साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर जिला जज डगलस किंग्सफोर्ड को निशाना बनाया. किंग्सफोर्ड क्रांतिकारियों को कठोर सजा देने के लिए कुख्यात था.

हालांकि, बम हमले में किंग्सफोर्ड बच गया और दो ब्रिटिश महिलाएं मारी गईं. इसके बाद खुदीराम और प्रफुल्ल फरार हो गए. प्रफुल्ल ने गिरफ्तारी से बचने के लिए आत्महत्या कर ली, जबकि खुदीराम को वैनी रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया गया.

मुकदमे के दौरान खुदीराम ने अद्भुत साहस और देशभक्ति का परिचय दिया. उन्होंने अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि वह देश की आजादी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई. फांसी के समय उनके मुख से निकला “वंदे मातरम” आज भी देशवासियों के दिलों में गूंजता है.

उनकी शहादत ने न केवल बंगाल, बल्कि पूरे भारत में स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी. भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे महान क्रांतिकारी खुदीराम के बलिदान से प्रेरित हुए.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com