दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में बीते शनिवार आए चुनाव परिणामों में कांग्रेस को प्रचंड जीत मिली. कांग्रेस पार्टी को साल 1989 के बाद 43 प्रतिशत से अधिक वोट मिला. वहीं बीजेपी को साल 2018 चुनाव के मुकाबले इस बार वोट शेयर में कोई बदलाव नहीं हुआ लेकिन सीटों के मामले में पार्टी को 41 सीटों का नुकसान हुआ.
एक तरफ बीजेपी की सीटें कम तो हुई लेकिन अगर शहरी सीटों को देखा जाए तो वहां बीजेपी को 2018 के मुकाबले ज्यादा सीटों का नुकसान नहीं हुआ है. जिन शहरी वोटर्स को भाजपा का वोट बैंक माना जाता है वह इस चुनाव में भी बीजेपी के साथ ही नजर आए. चाहें बात बेंगलुरु शहर की कुल सीटों की हो, जहां बीजेपी ने पिछले बार के मुकाबले इस बार 4 सीटें ज्यादा जीती हैं.
वहीं, कुल 52 शहरी सीटों में से बीजेपी को पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार एक सीट का नुकसान हुआ है. यानी कांग्रेस की इस प्रचंड जीत में भी भाजपा का कोर वोट बैंक उसके साथ रहा है.
वहीं, इसके उलट ग्रामीण सीटों पर भाजपा को काफी नुकसान हुआ है. ना सिर्फ भाजपा बल्कि जेडीएस को भी नुकसान हुआ है, जिसकी वजह से कुल 98 में से कांग्रेस 62 सीटों पर जीतने में कामयाब हुई. इन ग्रामीण सीटों को राज्य में सत्ता बनाने के लिए चाबी माना जाता है. जो पार्टी इन सीटों पर जीत दर्ज कर लेती है उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार बन जाती है.
चुनाव परिणामों के कुछ दिनों पहले एनडीटीवी और सीएसडीएस ने एक सर्वे भी किया था जिसमें बताया गया था कि ग्रामीण क्षेत्र में लोग सरकार से नाखुश हैं, वहीं शहरी क्षेत्र में लोग सरकार से खुश है. सर्वे की यह बात परिणामों में भी नजर आ रही है.
ग्रामीण और शहरी सीट को छोड़ दें तो, कांग्रेस पार्टी ने एसटी समुदाय के लिए आरक्षित कुल 15 सीटों में से 14 पर जीत दर्ज की. वहीं, बीजेपी इन सीटों पर अपना खाता भी नहीं खोल पाई. जबकि, पार्टी एसटी समुदाय को अपने ओर खींचने के लिए काफी मेहनत कर रही है. इतना ही नहीं एसटी समुदाय के लिए तीन प्रतिशत से सात प्रतिशत किए गए आरक्षण का भी कोई लाभ पार्टी को नहीं मिला.
इसी तरह दलित समुदाय के लिए कुल आरक्षित 36 सीट में से कांग्रेस ने 21 सीट पर जीत दर्ज की वहीं बीजेपी को 12 और जेडीएस को 3 सीटें मिली. बता दें कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दलित समुदाय से ही आते है.
25 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाली कुल 17 सीटों में से बीजेपी को 7 और कांग्रेस को 10 पर जीत दर्ज हुई.
अगर क्षेत्रवार इन चुनाव परिणामों को देखें तो सिर्फ बेंगलुरु क्षेत्र को छोड़कर जहां पार्टी को पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार पांच सीटें अधिक मिली. उसके अलावा हर क्षेत्र में बीजेपी को सीटों का नुकसान ही हुआ है.
दक्षिण क्षेत्र की 72 सीटों में से कांग्रेस ने इस बार 48 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं बीजेपी को मात्र 9 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. इस क्षेत्र में वोक्कालिगा बहुल और ग्रामीण सीटें ज्यादा है.
कित्तूर कर्नाटक का क्षेत्र जहां लिंगायत जनसंख्या ज्यादा है वहां बीजेपी को 2018 के मुकाबले इस बार 14 सीटों को नुकसान हुआ है. पार्टी ने कुल 48 सीटों में से 15 पर जीत दर्ज की. इसी क्षेत्र से बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सवादी आते है.
लिंगायत और वोक्कालिगा क्षेत्र में क्या रहा परिणाम?
कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय प्रमुख है. इसमें से भी लिंगायत समुदाय को बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है, वहीं वोक्कालिगा को जेडीएस का. हालांकि, 2023 के चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि इस बार दोनों ही समुदायों से कांग्रेस को अच्छा समर्थन मिला.
कांग्रेस ने लिंगायत बहुल वाली 78 सीटों में से 53 पर तो वहीं वोक्कालिगा बहुल वाली 44 में से 22 सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी को लिंगायत बहुल सीटों में से 20 सीटें मिली तो वहीं जेडीएस को वोक्कालिगा बहुल सीटों में 9 पर जीत नसीब हुई.
दोनों ही समुदाय द्वारा किस पार्टी के पक्ष में वोट किया गया इसको लेकर सीएसडीएस पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक, 56 प्रतिशत लिंगायत ने बीजेपी, 29 प्रतिशत ने कांग्रेस और 9 प्रतिशत ने जेडीएस को वोट किया. वहीं वोक्कालिगा ने 24 प्रतिशत बीजेपी, 49 प्रतिशत कांग्रेस और 17 प्रतिशत ने जेडीएस को किया है.
2023 चुनाव परिणाम (सीट)
5000 हजार से कम वाली 15 सीटें हारी बीजेपी
कर्नाटक चुनाव 2023 में कुल 42 ऐसी सीटें है जहां दो पार्टियों के बीच हार-जीत का अंतर 5000 हजार वोट से कम है. इन 42 में से बीजेपी को 17 सीटों पर जीत मिली वहीं 15 सीटों पर हार मिली. इसी तरह कांग्रेस ने 42 में से 22 पर जीत दर्ज की और जेडीएस ने 3 सीट. साल 2018 में 5000 हजार से कम अंतर वाली सीटों की संख्या 31 थी, जो इस बार बढ़कर 42 हो गई.
साल 2018 में जिन सीटों पर हार जीत का अंतर 5000 हजार से कम था उनमें से पांच सीटों पर साल 2023 में भी हार-जीत का अंतर पांच हजार से कम है.
कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत
कांग्रेस की लिए साल 2023 विधानसभा की जीत ऐतिहासिक है. साल 1989 के बाद वोट प्रतिशत और सीटों के लिहाज से यह सबसे बड़ी जीत है. हालांकि, इससे पहले 1999 और 2013 में भी कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार थी लेकिन उस जीत के समय राजनीतिक माहौल अलग था और इस बार अलग है.
साल 1999 चुनाव से पहले जनता दल टूट गया था. जिसके बाद जेडीएस और जेडीयू अलग-अलग पार्टी बन गई थी. इस बिखराव का सीधा फायदा कांग्रेस को मिला. क्योंकि उस समय तक बीजेपी की प्रदेश की राजनीति में उतना बड़ा कद नहीं था जितना आज है.
1999 चुनाव से पहले हुए बिखराव के बाद कांग्रेस ने 40 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 132 सीटों पर जीत दर्ज की. इसी तरह साल 2013 में जब कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी, उसका कारण था बीजेपी में दो फाड़ होना.
साल 2013 में बीएस येदियुरप्पा और बी श्रीरामुलु ने बीजेपी से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई और चुनाव लड़ा. वोटों के बिखराव के कारण कांग्रेस 36.3 प्रतिशत वोटों के साथ 122 सीट जीत गई. वहीं बीजेपी मात्र 40 सीटों पर सिमट गई.
34 साल बाद 2023 के चुनाव अहम इसलिए है क्यों कि इस बार ना तो किसी पार्टी का बिखराव हुआ और ना ही कोई अलग होकर चुनाव लड़ा. बावजूद इसके कांग्रेस 135 सीट जीतने में कामयाब हुई.
(अश्विन कुमार सिंह NDTV में इलेक्शन डेस्क पर संवाददाता हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.