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This Article is From Mar 15, 2015

मालदीव में चीन के बढ़ते कदम रोकने का भारत के पास एक और मौका

Kadambini Sharma, Saad Bin Omer
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  • Updated:
    मार्च 15, 2015 19:01 pm IST
    • Published On मार्च 15, 2015 18:53 pm IST
    • Last Updated On मार्च 15, 2015 19:01 pm IST

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को 13 साल कैद की सज़ा सुनाई गई है। आतंक विरोधी कानूनों के तहत उन्हें यह सज़ा दी गई है। राजधानी माले में इस फैसले को लेकर तनाव है। नशीद के समर्थक लागातार विरोध कर रहे हैं। पूरे विश्व में नशीद की गिरफ्तारी और उन्हें जेल भेजने की निंदा हो रही है। भारत  ने भी मालदीव में पनपी इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई है और विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हालात पर लगातार नज़र रखे हुए है। वहां के हालात देखते हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंद महासागर डिप्लोमेसी यात्रा में मालदीव शामिल नहीं किया गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ये ऐसी स्थिति है जहां सिर्फ चिंता जताकर, दूर रहकर या दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल ना देने की बात भारत के अपने हित के लिए सही कदम है?

इसका जवाब मालदीव और भारत के इतिहास में भी मिलता है और उसके सामरिक महत्व में भी। 1988 में मालदीव में तख्ता पलट की कोशिश हुई थी और उस वक्त के राष्ट्रपति अब्दुल गयूम ने कई देशों से सैन्य मदद की गुज़ारिश की। भारत ने तुरंत फैसला लिया था और ऑपरेशन कैक्टस के तहत वहां पर शांति स्थापित की थी। मालदीव में भी चीन का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। साल 2012 में चीन ने मालदीव में पहली बार अपनी एम्बेसी खोली और मालदीव को कम ब्याज पर कर्ज दिए। वहीं इस दौरान जीएमआर प्रोजेक्ट के कारण भारत से मालदीव के संबंध में काफी तनाव में आ गए और अब चीन मालदीव के एक एयपरोर्ट को अपग्रेड कर रहा है।

आईटी कम्यूनिकेशन के क्षेत्र में भी भारत की चिंताओं के बावजूद चीन ने मालदीव में पहला कदम रख दिया है। 2013 में रॉ की एक रिपोर्ट ने भी यही रिपोर्ट दी थी कि चीन लागातार हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है और वह अब साफ दिख रहा है।

ना सिर्फ चीन की समस्या, बल्कि इस छोटे से देश में एक इस्लामिक आतंकवादी गुट है, जिसके तार पाकिस्तान के लश्कर ए तैयबा से जुड़े हैं। देश में लागातार कट्टरवाद भी बढ़ता नज़र आ रहा है। हालांकि अब तक मालदीव में सिर्फ एक आतंकवादी हमला हुआ है- 2007 का सुल्तान पार्क बम धमाका, लेकिन आतंकवाद से जूझ रहे भारत के लिए इस पर नज़र रखना बेहद ज़रूरी है।

इन सभी तथ्यों के बावजूद 2012 में नशीद की सत्ता गई और 2013 में जब गिरफ्तारी से बचने के लिए नशीद ने भारतीय हाई कमीशन में शरण ली, भारत ने स्थिति को अपने पक्ष में करने के बजाय सिर्फ मूक दर्शक बने रहना बेहतर समझा। नशीद की सरकार भारत के बेहद करीब मानी जाती थी, लेकिन भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। हालांकि अब भारत में नई और बहुमत की सरकार है। नरेंद्र मोदी का पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर करने पर ज़ोर है। ऐसे में भारत के पास एक और मौका है मालदीव पर अपना प्रभाव मज़बूत करने का और इस इलाके में सबसे अहम नेतृत्व के तौर पर उभरने का, जिसे इस बार ज़ाया नहीं करना चाहिए।

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