कोलकाता से इतनी जल्दी बुरी खबर आने की उम्मीद नहीं थी क्योंकि बीएम बिड़ला अस्पताल में वह शख़्स भर्ती हुआ था जो अपनी जिंदगी में कमबैक मैन के नाम पर मशहूर रहा। लेकिन दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड का मुखिया जिंदगी की जंग हार गया।
जगमोहन डालमिया अपने चाहने वालों में भले जग्गू दा के नाम से मशहूर रहे हों लेकिन उन्हें भारतीय क्रिकेट का मैकियावेली और मास्टर ऑफ रियलपॉलिटिक के नाम से जाना जाता रहा। ये निकनेम भारतीय क्रिकेट बोर्ड में उनकी हैसियत को बताता है।
दरअसल आज भारत क्रिकेट की दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है और विश्व क्रिकेट में भारत का दबदबा मजबूत दिख रहा है तो इसमें डालमिया का बड़ा योगदान रहा। कोलकाता के इस मारवाड़ी कारोबारी ने एनकेपी साल्वे के सपने को आईएस बिंद्रा के साथ मिलकर वहां तक पहुंचा दिया जहां से क्रिकेट की दुनिया को भारत अपने अंदाज में हांकने लगा।
ये सब एन श्रीनिवासन के दबदबे से कोई साढ़े तीन दशक से पहले की बात है। भारत ने 1983 का वर्ल्ड कप जीत कर दुनिया को चौंकाया था और तत्कालीन बोर्ड अध्यक्ष साल्वे ने इस जीत के जश्न में 1987 के वर्ल्ड कप की मेजबानी का दावा ठोक दिया।
उस वक्त जगमोहन डालमिया कोषाध्यक्ष बने ही थे। ये वो दौर था जब ग्लोबलाइजेशन का दौर शुरू नहीं हुआ था। 24 घंटे के सेटेलाइट चैनल नहीं थे और भारत में क्रिकेट की बुनियादी सुविधाएं भी गिनती के केंद्रों पर मौजूद थीं लेकिन डालमिया के वित्तीय प्रबंधन के कौशल ने 1987 के वर्ल्ड कप को यादगार बना दिया।
इसके बाद डालमिया ने मुड़कर नहीं देखा। 1996 में वे एकबार फिर भारतीय उपमहाद्वीप में वर्ल्ड कप का कामयाब आयोजन कराने में कामयाब रहे। उनकी गिनती दुनिया के सबसे ताकतवर बॉस के रूप में होने लगी थी। बीबीसी नें उन्हें साल के छह बड़े खेल अधिकारियों में शामिल किया था। 1997 में वे आईसीसी के प्रेसीडेंट बने और तीन साल तक इस पद पर रहे।
इस कामयाबी के दौरान जग्गू दा अपने दोस्तों से बहुत आगे निकल आए थे तो विरोधी भी बढ़ने लगे। शरद पवार के दबदबे का दौर आया तो जगमोहन डालमिया को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। लेकिन वित्तीय अनियमितता के आरोप सही नहीं पाए गए और डालमिया बीसीसीआई में 2010 में अपनी वापसी करने में कामयाब रहे।
और एन श्रीनिवासन के कार्यकाल में जब भारतीय क्रिकेट अपने सबसे संकट के दौर में आया तो सर्वसम्मति जगमोहन डालमिया के नाम पर ही बनी। 10 साल बाद डालमिया उसी बीसीसीआई के मुखिया बन गए जहां से उन्हें जाना पड़ा था। हालांकि उन्हें श्रीनिवासन के प्रति नरमी दिखानी पड़ रही थी क्योंकि बीसीसीआई में उनकी वापसी में श्रीनिवासन की अहम भूमिका थी।
लेकिन डालमिया दोस्ती के साथ अपने पद की जिम्मेदारियां भी निभा रहे थे। और संयोग देखिए बीसीसीआई के सबसे अहम एजीएम से पहले उनके सामने धर्मसंकट ती स्थिति भी नहीं बनीं। जगमोहन डालमिया की पहचान क्रिकेट की दुनिया में तेज तर्रार बॉस की थी लेकिन वे सबको साथ लेकर चलने की कला में पारंगत थे। लिहाजा भारतीय क्रिकेट प्रशासन में उनकी कमी खलेगी।
This Article is From Sep 21, 2015
प्रदीप कुमार का ब्लॉग : जिंदगी की जंग में कमबैक नहीं कर पाए डालमिया
Reported by Pradeep Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 21, 2015 01:11 am IST
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Published On सितंबर 21, 2015 01:01 am IST
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Last Updated On सितंबर 21, 2015 01:11 am IST
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