बात इसकी नहीं है कि किस पर दोष मढ़ें। दोष सब पर मढ़े जा चुके हैं। अब हम आपस में एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे हैं। कहीं चुप रहने और कहीं बोलने के आरोप लगा रहे हैं। हमने, आपने ऐसे कुओं की कितनी तस्वीर देखी होंगी। कभी किसी को खयाल आया कि इस तरह के कच्चे कुएं जानलेवा हो सकते हैं। नीचे उतरकर पानी भरना जान जोखिम में डालने जैसा है। कोई तो इंजीनियर होगा, कोई ऐसा अफसर होगा जो सोच सकता था कि कुएं को कैसे सुरक्षित बनाया जाए। समाज, सरपंच, पत्रकार, राजनेता किसी को नजर क्यों नहीं आता कि ऐसे कुएं जानलेवा हो सकते हैं। कोई पानी भरने के लिए पुलिया ही लगा देता। हम सब लोग नहीं रहे इसलिए नजर नहीं आता। हम दल के लोग हो गए हैं। ऐसे असुरक्षित कुएं प्रमाण हैं कि हम अब लोग नहीं रहे। जो लोग हैं वे डूब कर मर रहे हैं।
This Article is From May 14, 2016
यह जो सूखा है... डूबा देता है...
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मई 14, 2016 20:29 pm IST
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Published On मई 14, 2016 20:29 pm IST
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Last Updated On मई 14, 2016 20:29 pm IST
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लोग अब लोग नहीं रहे। लोग अब राजनीतिक दल के लोग होते जा रहे हैं। इस तस्वीर में चंद लोग नजर आ रहे हैं जो अभी तक लोग हैं। किसी दल के नहीं बने हैं। इसलिए इनके लिए कोई लोग नहीं हैं। कुएं के ऊपर बैठे कुछ लोगों को देर तक देखता रहा। जबकि नजर जानी चाहिए थी कुएं में तैरती दिख रही महिला पर। जिसकी पीठ ऊपर है और पेट पानी के भीतर। पानी भरने आई थी इस कुएं में। पांव फिसल गए और वह उसी पानी में डूब गई जिसके पास वह खुद को बचाने के लिए गई थी। पास बैठे लोग पानी के बारे में सोच रहे होंगे या औरत के बारे में?
बात इसकी नहीं है कि किस पर दोष मढ़ें। दोष सब पर मढ़े जा चुके हैं। अब हम आपस में एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे हैं। कहीं चुप रहने और कहीं बोलने के आरोप लगा रहे हैं। हमने, आपने ऐसे कुओं की कितनी तस्वीर देखी होंगी। कभी किसी को खयाल आया कि इस तरह के कच्चे कुएं जानलेवा हो सकते हैं। नीचे उतरकर पानी भरना जान जोखिम में डालने जैसा है। कोई तो इंजीनियर होगा, कोई ऐसा अफसर होगा जो सोच सकता था कि कुएं को कैसे सुरक्षित बनाया जाए। समाज, सरपंच, पत्रकार, राजनेता किसी को नजर क्यों नहीं आता कि ऐसे कुएं जानलेवा हो सकते हैं। कोई पानी भरने के लिए पुलिया ही लगा देता। हम सब लोग नहीं रहे इसलिए नजर नहीं आता। हम दल के लोग हो गए हैं। ऐसे असुरक्षित कुएं प्रमाण हैं कि हम अब लोग नहीं रहे। जो लोग हैं वे डूब कर मर रहे हैं।
बात इसकी नहीं है कि किस पर दोष मढ़ें। दोष सब पर मढ़े जा चुके हैं। अब हम आपस में एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे हैं। कहीं चुप रहने और कहीं बोलने के आरोप लगा रहे हैं। हमने, आपने ऐसे कुओं की कितनी तस्वीर देखी होंगी। कभी किसी को खयाल आया कि इस तरह के कच्चे कुएं जानलेवा हो सकते हैं। नीचे उतरकर पानी भरना जान जोखिम में डालने जैसा है। कोई तो इंजीनियर होगा, कोई ऐसा अफसर होगा जो सोच सकता था कि कुएं को कैसे सुरक्षित बनाया जाए। समाज, सरपंच, पत्रकार, राजनेता किसी को नजर क्यों नहीं आता कि ऐसे कुएं जानलेवा हो सकते हैं। कोई पानी भरने के लिए पुलिया ही लगा देता। हम सब लोग नहीं रहे इसलिए नजर नहीं आता। हम दल के लोग हो गए हैं। ऐसे असुरक्षित कुएं प्रमाण हैं कि हम अब लोग नहीं रहे। जो लोग हैं वे डूब कर मर रहे हैं।
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