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This Article is From Aug 15, 2022

...तो क्या नीतीश कुमार पर चढ़ने लगा है तेजस्वी रंग? या 'चित भी मेरी और पट भी मेरी'

Pramod Praveen
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 15, 2022 13:42 pm IST
    • Published On अगस्त 15, 2022 13:14 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 15, 2022 13:42 pm IST

बिहार में न केवल राजनीतिक समीकरण बदला है, बल्कि सरकार के हिस्सेदार भी बदले हैं. ऐसे में लाजिमी है कि सरकार की प्राथमिकताएं भी बदल गई हों. इसकी बानगी आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर देखने को मिली, जब सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अपने स्टैंड से यू-टर्न लेते हुए ऐलान किया कि राज्य में 10 लाख लोगों को नौकरी देने समेत 20 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाएगा.

इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर उप मुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव का प्रभाव कहा जा सकता है क्योंकि 2020 के बिहार विधान सभा चुनावों के दौरान जब तेजस्वी ने पहली कैबिनेट मीटिंग में 10 लाख लोगों को नौकरी देने के अपने पहले वादे का ऐलान किया था, तब नीतीश कुमार ने तंज कसा था और पूछा था कि पैसा कहां से लाओगे?. नीतीश ने तब तेजस्वी के इस वादे को गुमराह करने वाला बताया था.

नीतीश कुमार ने 20 अक्टूबर 2020 को भागलपुर के परबत्ता की एक चुनावी जनसभा में तंज कसा था कि पैसा कहाँ से लाओगे.. जेल से या नक़ली नोट छापोगे? जॉब पर 'तू-तू, मैं-मैं' की लड़ाई में तब तेजस्वी ने ट्वीट कर पलटवार करते हुए जवाब दिया था कि यह आप नहीं समझेंगे. उधर, नीतीश के तब के सहयोगी बीजेपी ने, जो शुरू में तेजस्वी के वादे को झुठलाती रही लेकिन चुनावी मौसम में हवा का रुख भांपते हुए,  फौरन नीतीश कुमार से अलग स्टैंड रखते हुए 19 लाख लोगों को रोजगार देने के चुनावी संकल्प का ऐलान कर दिया था. 

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इसके लिए बीजेपी ने देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को उस संकल्प पत्र की लॉन्चिंग समारोह में शामिल होने पटना भेजा था, ताकि लोगों में यह विश्वास बहाली हो सके कि नीतीश रोजगार देने के रास्ते में जिस पैसे की कमी की बात कर रहे हैं, वह देश की खजांची मंत्री की मौजूदगी से दूर होने का संदेश जन-जन तक पहुंच सके. बहरहाल, चुनाव बाद बीजेपी और जेडीयू की सरकार बरकरार रही लेकिन राज्य में युवाओं को रोजगार देने की सार्थक पहल नहीं हुई.

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अब, जब नीतीश कुमार और बीजेपी की राहें जुदा हो चुकी हैं और माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने पीएम मोदी और बीजेपी के खिलाफ 2024 के लिए लंबी लड़ाई का आगाज कर दिया है, तब उन्होंने इस बड़े ऐलान और अपने पुराने स्टैंड से यू-टर्न लेने का दिन ठीक उसी दिन को चुना, जब पीएम मोदी ने 2047 के विकसित भारत के लिए लाल किले से 'पंच प्रण' का आह्वान किया. पीएम मोदी ने ऐतिहासिक इमारत से न तो किसी नई जनकल्याणकारी योजना का ऐलान किया और न ही महंगाई, बेरोजगारी, किसानों, गरीबों से जुड़े किसी ज्वलंत मुद्दों पर बात की बल्कि उन्होंने परिवारवाद और भ्रष्टाचार के जरिए सियासी लड़ाई का संदेश दिया. पीएम मोदी ने इसी के जरिए 2024 का नैरेटिव तय करने की कोशिश की.

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शायद यह बदले हुए नीतीश कुमार का मिजाज है, या कहें कि नए युवा साथी तेजस्वी यादव का असर है कि उन्होंने बिहार में 10 लाख नौकरियों समेत 20 लाख को रोजगार देने का ऐलान कर दिया. दरअसल, इसके जरिए भी नीतीश ने एक लंबी लकीर खींचने की कोशिश की है. उन्होंने यह जताना चाहा है कि पीएम मोदी जहां 2 करोड़ लोगों को नौकरी देने के अपने वादे पर कोई चर्चा नहीं करना चाहते, वहीं वह सहयोगी दल के वादे का भी ख्याल रखते हैं. पिछले 15 साल से ज्यादा समय से बिहार पर राज करने वाले नीतीश कुमार ने अगर 2024 से पहले 10 लाख लोगों को भी नौकरी दे दी तो यह उनकी अपराजेय बढ़त हो सकती है और इस सियासी दांवपेंच में नीतीश और तेजस्वी दोनों के लिए 'चित भी मेरी और पट भी मेरी' हो सकती है.

प्रमोद प्रवीण NDTV.in में  डिप्टी न्यूज़ एडिटर हैं...


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