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आकाश दीप ने शिकायत क्यों नहीं की?

Apurva Krishna
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 12, 2025 20:55 pm IST
    • Published On जुलाई 12, 2025 20:52 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 12, 2025 20:55 pm IST
आकाश दीप ने शिकायत क्यों नहीं की?

आकाश दीप की बड़ी चर्चा है. इंग्लैंड के ख़िलाफ़ बर्मिंघम टेस्ट में 10 विकेट लेने का कमाल दिखाने वाले टीम इंडिया के इस तेज़ गेंदबाज़ के बारे में मीडिया ने खोद-खोदकर जानकारियाँ जुटा रही है, लोगों तक पहुँचा रही है. एक कहानी ने लोगों के दिलों को अंदर तक छुआ. आकाश ने मैच के बाद अपने प्रदर्शन को अपनी दीदी के नाम समर्पित कर दिया. ये बताया कि पिछले दो महीनों से उनकी दीदी कैंसर से जूझ रही हैं, और आज उनकी कामयाबी से वो सबसे ज़्यादा खुश होंगी,और ‘मैं उनके चेहरे पर मुस्कान देखना चाहता हूँ.' 

दरकते रिश्तों के दौर में भाई-बहन के प्रेम की ये मिठास उन निश्छल रिश्तों की याद दिला गई, जिनमें अपनी खुशी से ज़्यादा, अपनों की खुशी मायने रखती है. अपनी तकलीफ़ों से ज़्यादा, अपनों को तकलीफ़ देखकर दर्द होता है.

आकाश अब जिस दुनिया का हिस्सा बन चुके हैं, उस दुनिया में रिश्तों के नाम पर ग्लैमरस गर्लफ़्रेंड, तड़क-भड़क वाली शादियाँ, स्टार पिता की स्टार संतानें और कई बार वैवाहिक झगड़ों की ख़बरें ज़्यादा आती हैं. इसलिए टीम इंडिया के एक स्टार क्रिकेटर के अपनी दीदी के लिए कहे गए ये शब्द क्रिकेटरों का एक अलग रूप दिखा गए, कि कामयाबी की उस रंग-बिरंगी दुनिया में भी निष्कपट प्रेम की बयार बहती है.

कैंसर पीड़ित बहन अखंड ज्योति सिंह के साथ भारतीय क्रिकेटर आकाश दीप.

कैंसर पीड़ित बहन अखंड ज्योति सिंह के साथ भारतीय क्रिकेटर आकाश दीप.

नर्क जैसी डॉरमिटरी में बीते साल

आकाश दीप की और भी कई कहानियाँ मीडिया में आईं. उनमें एक बड़ी अलग है. ये कहानी भारत के पूर्व ओपनर बैट्समैन अरुण लाल ने बताई जो कोलकाता में आकाश दीप के कोच और मेन्टॉर रह चुके हैं. भारतीय क्रिकेट टीम और आईपीएल में खेलने से पहले आकाश बंगाल से घरेलू क्रिकेट खेलते थे. अरुण लाल ने एक इंटरव्यू में बताया कि आकाश कोलकाता में क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ बंगाल (CAB) की डॉरमिटरी में रहते थे और क्रिकेट खेलते थे. 

अरुण लाल उस समय को याद कर बताते हैं कि एक दिन जब वो उस डॉरमिटरी में गए तो उन्होंने देखा कि वहां की हालत नर्क जैसी थी, और उन्हें लगा कि अगर कोई वैसी हालत में रहा तो बीमार होकर मर जाएगा. लेकिन, अरुण लाल ने बताया कि आकाश ने एक दिन भी शिकायत नहीं की कि उन्हें कोई परेशानी हो रही है. आकाश ने उस नर्क जैसी डॉरमिटरी में 3-4 साल बिताए.

आज की इस दुनिया में शिकायतें ज़्यादातर लोगों की सच्ची साथी हो चुकी हैं. अपने दुःख के लिए दूसरों को, या हालात को ज़िम्मेदार ठहराने से इतना सुख मिलता है कि बिना शिकायत, ज़िंदगी मनहूस लगने लगती है. लेकिन, आकाश दीप ने शिकायत नहीं की. उस 20-25 साल की उम्र में जब आकाश के हमउम्र युवाओं की ज़िंदगी आईपीएल मैच देखने और अगले दिन मैच की चर्चा में बीत रही थी, आकाश बिना शिकायत उस नर्क समान डॉरमिट्री में रहकर मैदान पर पसीना बहाते रहे. 

इंग्लैंड के ख़िलाफ़ बर्मिंघम टेस्ट में 10 विकेट लेने के बाद आकाश दीप.

इंग्लैंड के ख़िलाफ़ बर्मिंघम टेस्ट में 10 विकेट लेने के बाद आकाश दीप.

पसीने की परख पसीना बहानेवाला ही कर सकता है. आकाश पर विराट कोहली की नज़र पड़ी, आईपीएल में मौक़ा दिया. कुछ साल बाद आकाश दीप टीम इंडिया का हिस्सा थे. पिछले साल फ़रवरी में आकाश ने रांची में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ पहला टेस्ट मैच खेला. तब उनकी उम्र थी 27 साल. इसी उम्र में महेंद्र सिंह धोनी टीम इंडिया के कैप्टन बन चुके थे. 

रांची जैसे नॉन-मेट्रो शहर से निकलकर भारतीय क्रिकेट के क्षितिज पर छा जानेवाले माही का सफ़र अगर मुश्किल था, तो कल्पना कर सकते हैं कि बिहार के रोहतास ज़िले के देहरी गाँव के एक युवा की यात्रा कितनी कठिन रही होगी. 

“कर्म तो करना ही होगा”

लेकिन आकाश दीप अपने संघर्ष की बातें नहीं करते, शिकायत नहीं करते. क्यों? इसका एक अंदाज़ा पिछले साल उनकी मां की कही बातों से मिलता है. पिछले साल (2024) में जब आकाश का टीम इंडिया की टेस्ट टीम में चयन हुआ, तो उनकी मां से एक टीवी चैनल ने इंटरव्यू किया. 

टीवी चैनलों में अक्सर ऐसे इंटरव्यू को कामयाब माना जाता है जिसमें लोग भावुक हो जाते हैं, आँखें भर जाती हैं. इस इंटरव्यू में भी उम्मीद यही की जा रही थी कि आकाश की मां अपने बेटे और अपने जीवन के संघर्षों की बातें कर भावुक हो जाएँगी. लेकिन आकाश की मां लाडूमा देवी ने रत्ती भर भी रोना नहीं रोया. 

रांची में अपने टेस्ट क्रिकेट करियर की शुरुआत से पहले अपनी मां का चरण स्पर्श करते आकाश दीप.

रांची में अपने टेस्ट क्रिकेट करियर की शुरुआत से पहले अपनी मां का चरण स्पर्श करते आकाश दीप.

आकाश के पिता हाई स्कूल टीचर थे. लकवा मारने के बाद वो लंबे समय बेड पर ही रहे और आकाश जब 18 साल के थे तो पिता का साया सिर से उठ गया. कुछ समय बाद बड़े भाई भी चल बसे. लेकिन, उस इंटरव्यू में आकाश की मां ने उस दुःख का ज़िक्र तक नहीं किया. सिर्फ़ इतना कहा, कि आकाश के पिता चाहते थे कि वो पढ़-लिखकर ऑफ़िसर बने, लेकिन आज अगर वो होते तो बहुत खुश होते. 

शिकायत नहीं करनी है - ये सीख आकाश को अपने संस्कारों से मिली होगी, चुपचाप अपने हालात को संभालनेवाली अपनी मां से मिली होगी, जो उस इंटरव्यू में कहती हैं - “कर्म तो करना ही होगा. कर्म नहीं करेंगे, तो फल की आशा कैसे कर सकते हैं?”

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.


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