कमाल की बात : सिब्बल साहब 2019 के बाद भी तो चुनाव होंगे ही

सियासत के जानकार कहते हैं कि सरकार भी मामले की फौरन सुनवाई नहीं चाहती. क्योंकि अगर फैसला जल्द आ गया तो लोकसभा चुनाव तक उसका असर फीका पड़ जाएगा.

कमाल की बात : सिब्बल साहब 2019 के बाद भी तो चुनाव होंगे ही

फाइल फोटो

अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई के पहले ही दिन सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल की इस मांग पर एक नई बहस छिड़ गई कि इसकी सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद हो. सिब्बल ने अंदेशा जाहिर किया कि चूंकि राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा बीजेपी के चुनाव घोषणापत्र में है, इसलिए चुनाव के पहले मामला आने पर बीजेपी कोर्ट के फैसले का राजनीतिक लाभ लेगी.

अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद का पहला मुकदमा 1885 में कायम हुआ था...132 साल से यह तय नहीं हो पाया है कि झगड़े वाली जगह पर किस खुदा की इबादत हो. अब मामला रोज सुनवाई के लिए लगा तो सिब्बल की इस मांग पर पूरे मुल्क में तीखी प्रतिक्रियाएं हुई हैं. अयोध्या में रामलला के पुजारी सत्येंद्र दास कहते हैं, 'रामलला 25 साल से टेंट में हैं. इसका फैसला फौरन आना चाहिए. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने पहले भी कहा था कि हमारे कागजात का अनुवाद नहीं है, इसलिए समय दिया जाए. इसकी सुनवाई आज से ही रोज होनी चाहिए थी, इसे 8 फरवरी तक टाला नहीं जाना चाहिए था.'

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सियासत के जानकार कहते हैं कि सरकार भी मामले की फौरन सुनवाई नहीं चाहती. क्योंकि अगर फैसला जल्द आ गया तो लोकसभा चुनाव तक उसका असर फीका पड़ जाएगा. इस वजह से सरकार चाहती है कि फैसला 2019 के लोकसभा चुनाव से थोड़ा पहले आए, ताकि जो भी फैसला हो उसमें एक ऐसा माहौल बनाया जा सके कि बीजेपी को उसका पूरा सियासी फायदा मिल सके.

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अयोध्या में हाशिम अंसारी की मौत के बाद उनके बेटे इकबाल अंसारी बाबरी मस्जिद के नए मुद्दई बने हैं. अभी तक जल्द सुनवाई की मांग कर रहे इकबाल अंसारी को भी सिब्बल की मांग से नया आइडिया आया है. वो कहते हैं, 'सिब्बल साहब की बात में दम है. 1992 से अब तक हर चुनाव के वक्त बीजेपी/वीएचपी मंदिर राग अलापते हैं. इसलिए इसकी सुनवाई लोकसभा चुनाव के बाद हो.'

लेकिन पिछले 58 साल से मंदिर के लिए मुकदमा लड़ रहा निर्मोही अखाड़ा चाहता है कि सुनवाई जल्दी हो. अखाड़े के सरपंच दीनेंद्र दास चाहते हैं कि अब देर ना हो.

बीजेपी चुनावों में राम मंदिर के मुद्दे का इस्तेमाल करती रही है. यूपी में स्थानीय निकाय के चुनाव जो नाली, खड़ंजे और सफाई जैसे स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते थे, इस बार हिंदुत्व के नाम पर ध्रुवीकरण के बीच लड़े गए. सीएम योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में रैली कर जय-जय श्रीराम के नारों से चुनाव प्रचार शुरू किया तो बरेली में डिप्टी सीएम केशव मौर्य की रैली में बीजेपी विधायक राजेश मिश्रा ने भाषण दिया कि यह चुनाव राम और बाबर के बीच है. ऐसे माहौल में कपिल सिब्बल ने एक बड़ा सियासी मुद्दा खड़ा किया है. लेकिन अवधी फूड के रेस्टोरेंट की चेन चलाने वाले शामिल शम्सी कहते हैं कि अगर चुनाव की वजह से कोर्ट की सुनवाई रुकेगी तो फिर तो कभी नहीं हो पाएगी. उनका कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद अगर कपिल सिब्बल मांग करें कि इसे 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव तक टाल दिया जाए तो क्या होगा?

कमाल खान एनडीटीवी इंडिया के रेजिडेंट एडिटर हैं.

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