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This Article is From Jul 21, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : दलित उत्पीड़न पर लगाम कैसे लगे?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 21, 2016 23:41 pm IST
    • Published On जुलाई 21, 2016 22:15 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 21, 2016 23:41 pm IST
एक बार फिर राज्य सभा में दलित उत्पीड़न पर चर्चा हुई। एक बार फिर तमाम आंकड़े पढ़े गए। एक बार फिर चिंता जताई गई। एक बार फिर कई सदस्यों ने कहा कि यह काम हम एक बार फिर तो कर रहे हैं मगर अफसोस कि कुछ होता नहीं। आज गुजरात शांत रहा, मगर थोड़ी देर के लिए उत्तर प्रदेश गरम हो उठा। बीजेपी को न सिर्फ दयाशंकर सिंह को निकालना पड़ा, बल्कि पार्टी के नेताओं ने मायावती को बकायदा सूचित भी किया कि कार्रवाई हो गई है। नतीजा राज्यसभा में मायावती बुधवार की तरह आक्रामक तो नहीं लगीं, मगर उनके गुस्से की कमी लखनऊ के हजरतगंज चौराहे पर उनकी पार्टी के समर्थकों ने कर दी।

ये सामान्य प्रदर्शन नहीं था। इस तरह के प्रदर्शन अन्य जगहों पर भी हुए। दयाशंकर सिंह ने जिस लफ्ज का इस्तेमाल किया था, उसने बसपा समर्थकों को भड़का दिया। हमारे सहयोगी कमाल ख़ान ने बताया कि लखनऊ की भाषा से लेकर तेवर तक पर गुस्सा तैर रहा था। ज़ुबान पर भी वो लफ्ज़ सुनाई देने लगे जो आम तौर पर बसपा के प्रदर्शनों में नहीं होता है। गुस्से में कई बार दयाशंकर जैसी ही ज़ुबान बोलने लगे। यहां तक कि एक बैनर की भाषा भी बसपा के आचरण के विरुद्ध थी। चंडीगढ़ से बसपा नेता का बयान आ गया कि दयाशंकर की जीभ काटकर लाने वाले को 50 लाख मिलेगा। लखनऊ में बसपा नेता मंच से ललकारने लगे कि जब तक दयाशंकर सिंह को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा तब तक धरना चलता रहेगा। मायावती के ख़िलाफ़ टिप्पणी के विरोध में कांग्रेस के नए अध्यक्ष राज बब्बर भी धरने पर बैठ गए। पुलिस ने कहा कि दयाशंकर सिंह को खोजा जा रहा है। वे घर से भागे हुए हैं। जल्दी गिरफ्तार हो जाएंगे। इसके बाद मायावती ने 36 घंटे के लिए धरना टाल दिया। मायावती ने सफाई दी कि क्यों लोगों का गुस्सा जायज़ है।

 लोग मुझे अपना नेता मानते हैं। और देवी भी मानते हैं। आपकी देवी को कोई कुछ कहता है तो गुस्सा आता है कि नहीं। इसलिए उनको गुस्सा आया है। ऐसा कुछ कहा है मायावती ने।

हमारी राजनीति का चरित्र किसी भी तरह से स्त्री विरोधी है। नेताओं के बोलने का अंदाज, अल्फाज़, आयोजन, देखकर आप समझ सकते हैं कि ये स्त्री अनुकूल नहीं है। तमाम दलों के नेता इस पैमाने पर फेल हुए हैं और आगे भी फेल होंगे, मगर इन सबसे अलग जब आप एक दलित नेता या दलित स्त्री के ख़िलाफ़ बोलते हैं तो उसका अपराध दोगुना हो जाता है। वर्ना तो ऐसे बयान देकर तमाम नेता आराम से बच जाते रहे हैं, लेकिन दयाशंकर सिंह इस बार कोई दया हासिल नहीं कर सके।

पिछले ही हफ्ते दयाशंकर सिंह को प्रदेश बीजेपी का उपाध्यक्ष जैसा वरिष्ठ पद दिया गया। इसी की खुशी में पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ में दयाशंकर सिंह के स्वागत की तैयारी की गई थी। उन्होंने मायावती के ख़िलाफ़ बोलकर अपने स्वागत समारोह को पार्टी से ही विदाई समारोह में बदल दिया। 1997-98 में लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र संघ के महामंत्री बने। 1999 में छात्र संघ के अध्यक्ष बने। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उम्मीदवार थे। 2000 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश महामंत्री, 2003 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष, 2004 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय मंत्री बने। 2005 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने। 2007 में बलिया से बीजेपी ने टिकट दिया तो पांचवें नंबर पर आए थे। 2012 में टिकट नहीं मिला, लेकिन वे यूपी के तीन सचिवों में से एक थे। राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को जनरल सेक्रेट्री बनाया गया तो विरोध में अपना पद छोड़ दिया। काफी स्वतंत्र विचार वाले साहसिक नेता मालूम पड़ते हैं। इनका महत्व न होता तो 1 मई 2016 को दयाशंकर सिंह की विधानसभा क्षेत्र से ही प्रधानमंत्री ने उज्जवला स्कीम शुरू की थी। हालांकि प्रधानमंत्री ने मंच से जिन लोगों का नाम लिया था, उनमें दयाशंकर सिंह का नाम नहीं था।  उसके बाद जून में एमएलसी का टिकट मिला। हार गए।

आप सोच रहे होंगे कि मैं दयाशंकर सिंह का बायोडेटा क्यों पढ़ रहा हूं। इतना लंबा परिचय पत्र उन लोगों के लिए पढ़ा जो राजनीति में आना चाहते हैं। वो अपने भीतर चेक करें कि जाति और नारी को लेकर किस-किस तरह के अहंकार हैं। पता लगाकर किसी अच्छे समाजशास्त्री से इलाज करा लें।

अब आते हैं गुजरात की तरफ। गुरुवार का दिन आम तौर पर शांतिपूर्ण रहा। आज जो हलचल रही वो नेताओं के दौरे से रही। एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल के अलावा... कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी समढियाला गांव गए, जहां के एक ही परिवार के चार दलित युवकों के साथ हिंसा की घटना हुई थी। राहुल गांधी ने पांच लाख रुपये की मदद राशि देने की बात की है। परिवार वालों ने बताया कि उनके साथ पहले से ही ऐसी घटना होती रही हैं। राहुल जिस जीतू सर्विया से बात कर रहे थे वो बाबू भाई सर्विया के भतीजे हैं, जिनके चार बेटों के साथ यह घटना हुई है। इस परिवार में जीतू सर्विया अकेले ऐसे छात्र हैं जो शिक्षित हैं और इंजीनियरिंग के छात्र हैं। जीतू ने राहुल को बताया कि कोई काम आसानी से नहीं मिलता इसलिए वे लोग मजबूरन ये काम करते हैं। हम समाज का गंध साफ करते हैं और बदले में समाज हमें ही गंध समझता है। इसके बाद राहुल गांधी राजकोट के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल गए, जहां 11 युवकों का इलाज चल रहा है, जिन्होंने ज़हर पीकर आत्महत्या का प्रयास किया था। राहुल गांधी ने सभी से मुलाकात की।

उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र की तरह गुजरात में मुखर रूप से कोई बड़ा दलित नेता नहीं है। फिर भी वहां जिस तरह से प्रतिक्रिया हुई उसे देखकर दलित राजनीति पर नज़र रखने वाले भी हैरान हैं। कई जगहों पर लोग पहली बार इस तरह के प्रदर्शन में हिस्सा लेने गए। एक दलित युवक ने बताया कि इससे पहले वो 14 अप्रैल के रोज़ बाबा साहब के जन्मदिन पर निकलने वाली भीम यात्रा में ही जाया करता था, लेकिन इस बार काम बंद कर प्रदर्शनों में गया, क्योंकि जब उसने स्थानीय चैनलों पर अपने समाज के लोगों को कार से बांधकर मारते देखा तो अपने गुस्से को रोक नहीं पाया।

बुधवार को मैंने आप दर्शकों की मुलाकात विजय दीवान से कराई थी, जो एक ब्राह्मण परिवार से आते हैं मगर तय किया कि खुद मृत जानवरों की खाल उतारेंगे ताकि इस काम से जुड़ी जातिगत सोच खत्म हो। विनोबा भावे के शिष्य दीवान साहब चाहते हैं कि दलित इस काम को छोड़ दें। जिन लोगों को ऐसे काम करने वालों से समस्या है वो ये काम करें। गाय से इतना लगाव है तो उसका अंतिम संस्कार ही खुद करें।

दलितों पर यह काम थोपा गया। इसलिए छोड़ ही देना चाहिए, लेकिन आज इस काम ने दलित समाज के एक तबके को आर्थिक ताकत भी दी है। वैसे बदलाव तो उनकी सोच में होना है जो लाठी से इन लोगों को मारते हैं। क्या अपना काम छोड़ देने से लाठी वाले गुंडों की सोच बदल जाएगी जो खुद को गौ रक्षक कहते हैं।

आज आपका परिचय भावनगर के 21 साल के योगेश से कराता हूं। योगेश बचपन से ही मरी हुई गाय को लाने और खाल उतारने का काम करता है। उसने तीन साल तक पैसे बचाकर कैश देकर बुलेट खरीदी है। शौक था कि बुलेट खरीदेंगे। पहले होंडा स्प्लेंडर खरीदी, फिर रॉयल एनफिल्ड। योगेश ने ज़ोर देकर कहा कि लोन नहीं लिया, बल्कि एक लाख 55 हज़ार देकर खरीद लाया। हम पत्रकारों के तथाकथित समाजशास्त्रीय सवालों को समझने और जवाब देने में योगेश को थोड़ी मुश्किल तो हुई, क्योंकि वह मूल रूप से गुजराती भाषी है। योगेश ने बताया कि साल भर पहले तक खाल उतारने के काम से वो रोज़ दस से पंद्रह हज़ार कमा लेता था। इसमें छह-सात लोगों की 5,000 मज़दूरी भी निकल आती थी, लेकिन दो साल से गौ रक्षकों ने परेशान कर दिया था, इसलिए जिनसे गाय लेकर आते थे, उनका नंबर भी लाते थे, क्योंकि इन लोगों की बात करानी होती थी। उना की घटना के बाद जोश में काम छोड़ने की बात तो करता है, मगर यह भी कहता है कि इतना आसान नहीं है। योगेश ने कहा कि पहले एक चमड़े का हज़ार रुपया मिल जाता था, मगर अब पांच सौ रुपया भी नहीं मिलता है। कमाई कम होने के कारण ये गौ रक्षकों का आतंक भी है।

ज़ाइलो कार में सवार गौ रक्षा के नाम जो गुंडे आए थे वो अगर बुलेट सवार योगेश को देखते तो उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या होती। ऐसे ही, बाई द वे पूछ रहा हूं। मगर समढलिया गांव के जिस परिवार के दलित युवकों को अमानवीय तरीके से पीटा गया, उनकी आर्थिक स्थिति शहर में रहने वाले योगेश की तुलना में बहुत खराब है। अब हमने इसी काम में लगे सौराष्ट्र के एक बड़े व्यापारी से बात की। हीराभाई रामजी भाई चावड़ा। हीराभाई के पास फोर्ड एंडेवर कार है।

वे सौराष्ट्र इलाकों में खाल उतारने वाले, चमड़ा उतारने वाले दिलीप युवकों से खाल खरीदते हैं। खुद के पास भी कई गाड़ियां हैं, जो मृत गायों की सूचना मिलने पर उन्हें लाने जाती हैं। हीराभाई के सिस्टम में 60-70 लोग काम करते हैं। हीराभाई इन सबसे खाल लेकर कानपुर, मद्रास और कोलकाता की पार्टी को बेचते हैं। हीराभाई भी उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी गाड़ी में मृत गायों को रखकर सुरेंद्रनगर के कलेक्टर आफिस में मृत गायों को छोड़ दिया कि लो खुद कर लो अंतिम संस्कार। हम अब नहीं करेंगे। बजरंग दल वालों से करवा लो।

बहुत पढ़े लिखे तो नहीं लगे, न ही वो मेरे हिन्दी में पूछे गए सभी सवालों को ठीक-ठीक समझ पा रहे थे इसलिए उनके जवाब में हुई किसी भी चूक को छूट देनी होगी। उनसे बातचीत कर पता लगा कि गौ रक्षक और पुलिस वाले दोनों इस आतंक के नाम पर वसूली करते हैं। अन्य लोगों से बात कर पता चला कि मृत गाय ले जाने वाली गाड़ियों को रोककर 2,000 से 5,000 रुपये तक की वसूली की जाती है। हमारे पास पुलिस का पक्ष नहीं है, मगर इन बातों से ज़ाहिर होता है गौ रक्षा सिर्फ आस्था का मामला नहीं है, आस्था के नाम पर आतंक से आर्थिक पक्ष भी जुड़ा है। जितना आतंक, उतनी कमाई। खैर हीराभाई ने बताया कि 'हम अनपढ़ लोग हैं, अनपढ़ लोगों से चमड़ा खरीदते हैं। सदियों का पेशा है। दूसरे समाज के लोग यह काम नहीं करते, इसलिए सरकार भी ध्यान नहीं देती है। सरकार को हमें लाइसेंस देना चाहिए ताकि हम दिखा सकें कि हम इसका कारोबार करते हैं। पुलिस वाला हमसे बिल मांगता है। हम नहीं दे सकते। गांव के ग़रीब लोग बिल कहां से देंगे। कोलकाता, मद्रास की पार्टी को माल भेजते हैं तो उसका बिल बनाकर भेजते हैं। फिर भी डर लगा रहता है कि रास्ते में कुछ ग़लत न हो जाए। हम सरकार को टैक्स भी देते हैं।' हीराभाई रामजी भाई चावड़ा ने बताया कि मार्किट गिरने की तकलीफ ने भी उनके समाज के गुस्से को भड़काया।

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