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This Article is From Jul 10, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : कैसे बचें झूठी खबरों के जंजाल से?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 10, 2017 21:58 pm IST
    • Published On जुलाई 10, 2017 21:58 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 10, 2017 21:58 pm IST
'हम दोनों', 'राम और श्याम', 'सीता और गीता', 'शर्मिली', 'डॉन', 'सत्ते पे सत्ता', 'राउडी राठौड़', 'कृष' ये सब डबल रोल वाली फिल्में हैं, जिसमें कभी नकली किरदार असली को बर्बाद कर देता है तो कभी असली किरदार नकली का फायदा उठाकर अपना साम्राज्य फैलाता है. इसी क्रम में 1993 में पहलाज निहलानी की एक सुपर हिट फिल्म आती है 'आंखें', जिसमे गोविंदा और चंकी पांडे थे और गाना था 'ओ लाल दुपट्टे वाली अपना नाम तो बता'. इस फिल्म की शुरुआत एक ऐसे सीन से होती है जो फेक न्यूज़ और फोटोशॉप के आगमन का एलान करता है. ईमानदार मुख्यमंत्री बने राज बब्बर पर कैमरे की आंखें गड़ जाती हैं, उनके हर मूवमेंट की कॉपी की जाती है और आतंकवादी को छुड़ाने के लिए मुख्यमंत्री का ही नकल तैयार हो जाता है. तब इस तरह का खेल सिनेमा वाले प्लॉट को दिलचस्प बनाने के लिए करते थे, आज राजनीति आपको दंगाई बनाने के लिए फेक न्यूज़ की घूंट पिला रही है.

फेक न्यूज़ हर जगह है. हम पत्रकारों को लेकर भी फेक न्यूज़ गढ़ा गया. मुख्यधारा के चैनल और अखबार फेक न्यूज़ का धड़ल्ले से इस्तमाल कर रहे हैं. फेक न्यूज़ का एक ही मकसद है. आप भीड़ का हिस्सा बनें, दंगाई बनें और घर से बाहर न भी निकलें तो भी खाने की मेज़ पर बैठकर धारणाएं गढ़ते रहें कि देखो जी आज कल उनका दिमाग़ चढ़ गया है, वो ऐसे होते हैं, उन्हें ऐसे होना होगा, सबक तो सिखाना ही होगा. आप यह सब फेक न्यूज़ के आधार पर कर रहे होते हैं ताकि आप जब हिंसा कर दे तो उसका इल्ज़ाम न तो राजनीति पर आए न सरकार पर. 31 दिबंसर, 1999 की रात पूरी दुनिया में उत्साह था कि नई सदी आ रही है. मिलेनियम. सन 2000. 21 वीं सदी. उस सदी की शुरुआत होती है सबसे बड़े फेक न्यूज़ से. बस तब उसका नाम फेक न्यूज़ नहीं था जिस तरह से अब है. वाई टू के और मिलनेनियम बग था उसका नाम.

वाई टू के का मतलब है ईयर 2000. इंटरनेट के आने के बाद दुनिया की पहली ग्लोबल फेक न्यूज़. सारी दुनिया नई सदी के आगमन से ज़्यादा इस बात से त्रस्त थी कि अब दुनिया का अंत होने वाला है. जैसे ही घड़ी में साल 2000 दस्तक देगा, दुनिया भर के कंप्यूटर बंद हो जाएंगे. The day the earth will standstill... The computer crash of the millennium जैसी हेडलाइन छपने लगी. बैंक के फेल होने से लेकर बिजली की सप्लाई कटने तक की अफवाह फैल गई. अस्पतालों के आईसीयू में लोग मर जायेंगे. ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो जाएगी. शेयर बाज़ार क्रैश हो जाएगा, मिसाइलें अपने आप चलने लगेंगी. 2008 में ब्रिटेन के प्रतिष्ठित पत्रकार निक डेविस ने एक किताब लिखी. Flat Earth News. इसके कवर पर लिखा है an award winning reporter exposes falsehood distortion and propaganda in the global media, मतलब एक रिपोर्टर ने ग्लोबल मीडिया में झूठी खबरों, तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने और प्रोपेगैंडा के खेल को उजागर कर दिया है. 21वीं सदी आई और ऐसा कुछ नहीं हुआ, लेकिन इस पर दुनिया भर की सरकारों ने सवा तीन लाख करोड़ रुपये फूंक दिये. ये 21वीं सदी का सबसे बड़ा ग्लोबल घोटाला था. निक डेविस ने अपनी इस किताब में वाई टू के की यात्रा की खोज की है. उन्हें पता चला कि वाई टू की पहली स्टोरी टोरंटो से छपने वाले फाइनेंशियल पोस्ट के किसी कोने में सिंगल पैरा में छपी थी. किसी कंप्यूटर विशेषज्ञ ने यूं ही चेतावनी दी थी. वहां से यह स्टोरी 1995 तक आते-आते अमरीका, मैक्सिको, कनाडा, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और जापान तक फैल गई.

1997 तक मिलेनियम बग की स्टोरी पहले पन्ने पर जगह पाने लगी और 1998 तक इस स्टोरी ने तूफान मचा दिया. पूरी दुनिया में मिलेनियम बग पर छपने वाली रिपोर्ट की संख्या दस हज़ार से भी ज़्यादा जा पहुंची थी. एक लेखक ने तो वाई 2 के से कैसे बचें लिखकर करोड़ों कमा लिये. इसलिए जब कोई सफल हो, तनाव से कैसे बचें टाइप किताब लिखे तो सतर्क हो जाइये. लोगों को बेवकूफ बनाने वाली इन किताबों को पढ़कर न तो कोई सफल हुआ और न ही किसी का तनाव कम हुआ है.

उस समय भारत में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. 9 जनवरी 2000 को हिन्दू अख़बार ने वाई टू के फर्डीवाड़े पर ख़बर छापी, जिसमें लिखा कि इससे निबटने के लिए 1998 के अंत में एक नोडल एजेंसी बनाई गई, जिसका नाम वाई टू के एक्शन फोर्स था, उसके प्रमुख बनाए गए थे मोंटेक सिंह अहलूवालिया. जो उस वक्त योजना आयोग के सदस्य थे. तब इससे निपटने के लिए 700 करोड़ का फंड बना था, साथ ही सभी विभागों को कहा गया था कि वे अपने 1999 के सालाना बजट का तीन प्रतिशत वाई टू के की समस्या से निबटने के लिए ख़र्च कर सकते हैं. प्राइवेट कंपनियों से कहा गया कि वे अपना खर्च खुद करें जिसके लिए उन्हें 1999-2000 के बजट में कर छूट दी गई थी. फेक न्यूज़ ने ग़रीब देश भारत को भी चूना लगा दिया, पान कौन खाया और किसके होंठ लाल हुए पता नहीं. रूस, कोरिया जैसे देश भी थे जो हंसे थे और एक नया पैसा खर्च नहीं किया था. तब शायद सरकारों ने अपने ऊपर आज़मा कर देखा था कि फेक न्यूज़ चल सकता है या नहीं. वैसे इस मामले में हम दुनिया से सीनियर थे. सितंबर 1995 में ही भारत भर के कई हिस्सों में लोग गणेश जी को दूध पिला चुके थे. फेक न्यूज़ आज हम सबको आपस में लड़वा रहा है. भरसक कोशिश कर रहा है कि हम सब दंगाई बन जाएं. निक डेविस की तरह भारत में प्रतीक सिन्हा जो altnews.in चलाते हैं, रोज़ फेक न्यूज़ पकड़ते रहते हैं. उनके साथ और भी लोग हैं जैसे पंकज जैन जो SM Hoax Slayer पर फेक न्यूज़ को पकड़ते रहते हैं.

आप जानते हैं कि बंगाल के बाशीरहाट में पिछले दिनों सांप्रदायिक हिंसा की घटना हुई थी. वहां यह तस्वीर फैलाई जाने लगी कि बदुरिया में हिन्दू औरतों के साथ ऐसा हो रहा है. बांग्ला में लिखा था, 'टीएमसी को समर्थन करने वाले हिन्दू बताओ क्या तुम हिन्दू हो.' इस तस्वीर के सहारे एक समुदाय विशेष के खिलाफ एक समुदाय को भड़काया जा रहा था. इसे एक्सपोज़ करते हुए altnews.in ने बताया है कि इस तस्वीर को बीजेपी हरियाणा की एक सदस्य ने हिन्दी में लिखकर शेयर कर दिया. लिख दिया कि बंगाल में जो हालात हैं, हिन्दुओं के लिए चिंता का विषय है. बाद में पता चला कि यह तस्वीर बंगाल की नहीं है, बल्कि 2014 में रिलीज हुई भोजपुरी फिल्म के एक सीन की है. आप सोच सकते हैं कि भोजपुरी फिल्म के एक सीन का इस्तेमाल बंगाल और बंगाल से बाहर धार्मिक भावना को भड़काने का खेल खेला जा रहा है. यही नहीं स्क्रोल डॉट इन ने इस पर पूरी खबर छापते हुए लिखा है कि बीजेपी की प्रवक्ता नुपूर शर्मा ने 2002 के गुजरात दंगों की तस्वीर साझा कर दिया कि यह बंगाल में हो रही सांप्रदायिक हिंसा की है. स्क्रोल ने लिखा है कि बताने कहने के बाद भी इन ट्वीट को डिलिट नहीं किया गया है.

एक सामान्य पाठक के लिए फेक न्यूज़ को पकड़ना मुश्किल है. हाल ही में गृहमंत्रालय की रिपोर्ट में स्पेन की सीमा की चमकदार तस्वीर छप गई, आल्ट न्यूज़ ने जब पकड़ा तो गृह मंत्रालय ने माफी मांगी. सोचिये ये काम मुख्यधारा की मीडिया का था. अगर सारे अखबारों तक यह तस्वीर पहुंच जाती तो आप भी मान लेते कि वाह क्या काम हुआ है. आज कल के नेता एक और काम करते हैं. अपनी पसंद का मीडिया खड़ा करते हैं जिसे मैं गोदी मीडिया कहता हूं, और जो उनकी पसंद का नहीं है, उसे ही फेक बताने लगते हैं. जैसे अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप सी एन एन न्यूयार्क टाइम्स को फेक न्यूज कहते हैं. अब तो वो फेक न्यूज़ से बोर होकर फ्रॉड न्यूज़ कहने लगे हैं.

28 सेकेंड का यह वीडियो ऐतिहासिक है. इस वीडियो में ट्रंप सी एन एन को फेक न्यूज बताने के लिए खुद भी फेक न्यूज़ का हिस्सा हो जाते हैं. 2007 के इस वीडियो में ट्रंप नकली पहलवान को मार रहे हैं. मारने की एक्टिंग कर रहे हैं मगर 2017 में इसे असल में मारने की इच्छा के रूप में पेश करते हैं. पहलवान को एंकर बना देते हैं और उसे मारने लगते हैं. उसके चेहरे पर सी एन एन का लोगो लगा देते हैं. ख़बरों की दुनिया मायाजाल में बदल गई है. नेता आप पर जादू करने के लिए तरह-तरह के तिकड़म कर रहा है. इसलिए फेक न्यूज़ से जो लड़ेगा सरकारें उसे भी फेक न्यूज़ घोषित कर देंगी. आपके लिए बचने का रास्ता बहुत कम है. नेता, सांसद, फेक न्यूज़ या फोटोशॉप फैलायेंगे और आपके अखबार और चैनल चुप रह जायेंगे तो आपको पता कैसे चलेगा. कितने लोगों को आल्ट न्यूज़ मालूम है. भारत में इस खेल का एक ही मकसद है कि आप दंगाई बनने के लिए हमेशा तैयार रहें या दंगाइयों को सपोर्ट करने के लिए तत्पर रहें. हम कोशिश करेंगे कि फेक न्यूज़ पर पूरे हफ्ता चर्चा करें. शुरुआत इसकी ऐतिहासिक यात्रा से करेंगे. इंटरनेट और 21 वीं सदी से पहले प्रोपेगैंडा और फेक न्यूज़ का स्वरूप कैसा था, इसी पर बात करेंगे.

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