महंगाई के सपोर्टर को दुनिया की कोई ताकत नहीं समझा सकती है कि देश में महंगाई है और जनता की कमर टूट गई है. व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के इस राजनीतिक और सामाजिक उत्पाद पर किसी की नज़र भले न पड़ी हो लेकिन महंगाई से परेशान जनता को पता है कि महंगाई के इन सपोर्टरों के सामने महंगाई की बात करना, अपनी परेशानी और बढ़ाना है.
भारत में नहीं समझने वालों का राजनीतिक उदय हुआ है. इन नहीं समझने वालों को दुनिया की कोई ताकत नहीं समझा सकती है. कोर्ट से लेकर वैज्ञानिक रिपोर्ट सब कह रहे हैं कि पटाखों के कारण वायु प्रदूषण और बढ़ जाता है लेकिन इन नहीं समझने वालों ने एक नहीं सुनी. इनकी मेहनत रंग लाई और दिवाली की रात और अगली सुबह दिल्ली और आस-पास की हवा ज़हरीली हो गई. दिल्ली, नोएडा और गाज़ियाबाद तक की हवा की गुणवत्ता 500 से 1000 के बीच पहुंच गई और ख़तरनाक हो गई. पटाखों पर बैन लगाया गया फिर भी कोई असर नहीं दिखा.
ICMR की एक रिपोर्ट है कि वायु प्रदूषण से भारत में हर साल करीब 16 लाख लोग मर जाते हैं. हर मिनट में तीन से अधिक लोगों की मौत होती है. दिल्ली की यह हवा नहीं समझने वालों की राजनीतिक और धार्मिक जीत है. इसके कारण दिल्ली में कोविड से ठीक हो चुके लोगों में फेफड़े और सांस की परेशानी बढ़ने लगी है. इसे देखते हुए अस्पतालों में अतिरिक्त बेड के इंतज़ाम किए जा रहे हैं.
परंपरा के नाम पर ज़हरीली हवा के ये सपोर्टर ही महंगाई के भी सपोर्टर कहे जा सकते हैं. महंगाई के सपोर्टर को भी दुनिया की कोई ताकत नहीं समझा सकती है कि देश में महंगाई है और जनता की कमर टूट गई है. व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के इस राजनीतिक और सामाजिक उत्पाद पर किसी की नज़र भले न पड़ी हो लेकिन महंगाई से परेशान जनता को पता है कि महंगाई के इन सपोर्टरों के सामने महंगाई की बात करना, अपनी परेशानी और बढ़ाना है. इस नए सपोर्टर वर्ग को तैयार में करने में गोदी मीडिया, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और आईटी सेल ने अथक परिश्रम किया है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से भी ज़्यादा हार्डवर्क किया है. जब से पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ने शुरू हुए, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में विचित्र तर्कों की सप्लाई होने लगी कि कमाई बढ़ी है, महंगाई नहीं. अब ये तर्क महंगाई के सपोर्टर के दिमाग़ में ठीक से फिट हो चुके हैं. उन्हें रोबोट बना चुके हैं. उनसे महंगाई पर बहस कर देखिए, आप खुद पसीने-पसीने हो जाएंगे. दिवाली के एक दिन पहले ख़बर आती है कि पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क घटाए जा रहे हैं. इस कमी के बाद भी पेट्रोल कई शहरों में 100 रुपये लीटर से अधिक मिल रहा है और कई शहरों में 95 रुपये लीटर से अधिक मिल रहा है. अगर ये राहत है तो हर आफत का नाम राहत लिख देना चाहिए.
क्या हमें मान लेना होगा कि 95 या 100 रुपए लीटर पेट्रोल सस्ता होगा? क्या इस दौर की वृद्धि ने पेट्रोल और डीज़ल के कम दामों का बेंचमार्क बदल दिया है? पेट्रोल के दामों से परेशान इन लोगों का दुख महंगाई के सपोर्टरों के लिए एक दिखावा है.
लोगों को याद है कि मई 2018 में दिल्ली में पेट्रोल करीब 77 रुपये लीटर मिल रहा था और मुंबई में करीब 85 रुपये लीटर. पटना में करीब 83 रुपये लीटर. 5 नवंबर 2021 को दिल्ली में पेट्रोल 103 रुपये लीटर से अधिक है और मुंबई में 108 रुपये लीटर से अधिक. कहीं से यह न तो राहत है न सस्ता. 18 फरवरी 2021 को मुंबई में 96 रुपये लीटर हो गया था, कोलकाता में 90 रुपया लीटर हो गया था और चेन्नई में 91 रुपये लीटर से अधि. दिल्ली में 89.54, मध्यप्रदेश में 97.56 पैसे का एक लीटर मिलने लगा था.
क्या कभी पेट्रोल 80 रुपये लीटर होगा या अब सस्ता होने का बेंचमार्क बदल गया है? 85 रुपये लीटर को महंगा मानने वाली जनता को 30-35 पैसे की क्रमिक वृद्धि से ऐसी आदत हो गई है कि उसके लिए महंगाई का पैमाना ही बदल गया है. जो कल का महंगा था आज का सस्ता हो गया है. जिन मैसेजों का आप लतीफा समझ कर मज़ाक उड़ाते रहे, उनके तमाम तर्क लोगों को लैस कर रहे थे और महंगाई का सपोर्टर बना रहे थे. आईटी सेल और व्हाट्एप यूनिवर्सिटी के ज़रिए तरह तरह के तर्कों को आपने कूड़ा मानकर नज़रअंदाज़ किया लेकिन उसी कूड़े के ढेर से निकलने वाली गैस ने महंगाई के सपोर्टरों को फुला दिया है.
महंगाई के ये सपोर्टर सेफ्टी वॉल्व बन गए हैं. इनकी मेहनत का ही नतीजा है कि आज महंगाई के पक्ष में भी राय है. अजय सिंह ने बनारस के अस्सी घाट पर महंगाई के सपोर्टर के साथ लोगों की बातचीत कराई. इन तर्कों का आप मज़ाक उड़ा सकते हैं लेकिन मज़ाक आपका उड़ रहा है. कुतर्कों का स्वर्ण युग चल रहा है.
आक्सफर्ड और कोलिंबया यूनिवर्सिटी को भी अपना नाम व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में लिखा लेना चाहिए. अभी तक आपने जो सुना उसके हिसाब से महंगाई के सपोर्टर की दलीलों का संक्षेपीकरण इस प्रकार किया जा सकता है...
1. सड़कें अच्छी बनी हैं इसलिए यात्रा पूरी करने में पेट्रोल की खपत भी कम हुई है.
2. शराब महंगी होती है तब कोई हल्ला नहीं करता, पेट्रोल से ज्यादा शराब बिकती है.
3. लोगों की कमाई बढ़ी है. 20 लाख की कार खरीद सकते हैं, 100 रुपये लीटर पेट्रोल नहीं.
4. महंगाई नहीं है क्योंकि हर परिवार हफ्ते में तीन दिन ज़ोमैटो से खाना मंगा रहा है.
5. मुफ्त में टीका दिया जा रहा है. जनता को सहायता दी जा रही है.
6. फ़िल्म का महंगा टिकट ख़रीद सकते हैं तो पेट्रोल से क्या परेशानी है.
जिस दौर में बेरोज़गारी बढ़ी हो और सैलरी कम हुई हो उस दौर में व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने स्थापित कर दिया है कि लोगों की कमाई बढ़ी है. 80 करोड़ लोगों को कई महीनों से मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. ग़रीब कल्याण योजना के तहत. फिर कमाई किसकी बढ़ी है.
अगर कमाई बढ़ी होती तो अयोध्या में दीपोत्सव के बाद ये लोग तेल न बटोर रहे होते, लेकिन महंगाई के सपोर्टर इसे भी सही ठहरा देंगे कि दिवाली के बाद दीए से तेल निकालने की परंपरा है ताकि बर्बाद न हो. लेकिन क्या इस दृश्य में ग़रीबी नहीं झांक रही, क्या इसके बहाने सरसों तेल के दाम की बात नहीं होनी चाहिए, जब 70 रुपया किलो था तब भी ऐसी घटना यहां हुई है और अब तो 250 रुपया किलो है सरसो तेल. इनके लिए सरसों तेल सोने से कम नहीं है. अमर उजाला में छपी खबर के अनुसार यूपी सरकार होली तक यूपी के 15 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त राशन के साथ एक किलो सरसों तेल देने जा रही है. 24 करोड़ की आबादी वाले यूपी में 15 करोड़ ग़रीब हैं फिर भी महंगाई के सपोर्टर कहते हैं कि लोगों की कमाई बढ़ी है. यही तेल अगर गरीबों के घर में बंट गया होता तो अयोध्या की दीवाली हो जाती.
गरीबी हर जगह दिख रही है लेकिन महंगाई के सपोर्टर को केवल कमाई दिख रही है जो बढ़ी नहीं है. वे मानने को तैयार नहीं है कि लोगों की कमाई घटी है. लोग इस महंगाई से ग़रीब हुए हैं. ऐसे कुतर्कों से लैस ये राजनीतिक रोबोट समाज को भीतर से खोखला कर रहे हैं बल्कि खोखला हो चुके समाज की निशानी हैं. इसी तरह आपने देखा होगा कि महंगाई के कारणों को लेकर मंत्री भी तरह तरह के बयान देते हैं. सितंबर 2019 में जब कारों की बिक्री कम हुई तब वित्त मंत्री निर्मला सीतारण ने कह दिया कि नौजवान ओला उबर से चलने लगे हैं.
तब मारुति सुज़ुकी के कार्यकारी निदेशक शशांक श्रीवास्तव का बयान छपा था कि भारत में कारों के स्वामित्व में कोई बदलाव नहीं हुआ है. ओला और उबर के कारण तो आटोमोबिल सेक्टर में उछाल आया है. इस समय कारों की बिक्री का उदाहरण देकर कहा जा रहा है कि बीस लाख की कार खरीद सकते हैं तो 100 रुपये का पेट्रोल नहीं ले सकत. अमरीका और बाकी देशों में भी लोग बीस लाख की कार खरीदते हैं, वहां तो उनकी मुद्रा में पेट्रोल इतना महंगा नहीं है. कुतर्कों से बने इस वृत्त से अनावृत्त होना आसान नहीं है. महंगाई के इन सपोर्टरों ने अद्भुत काम किया है. महंगाई को सही साबित कर दिया है. यही कारण है कि महंगाई राजनीतिक बहस की जगह मनोरंजन का कारण बन गई है. महंगाई के सपोर्टर तो टैक्स कम करने से खुश नहीं हैं. उनका मानना है कि टैक्स कम करने से जनता को और तकलीफ होगी.
दिवाली के पहले पेट्रोल डीज़ल पर टैक्स घटाकर केंद्र सराकर ने बता दिया है कि टैक्स कम करने का अधिकार उसके हाथ में है. कम करने के लिए ज़रूरी नहीं कि जीएसटी के भीतर पेट्रोल और डीज़ल को लाया जाए. जीएसटी की हालत ये है कि केंद्र राज्यों को उनका वाजिब हिस्सा नहीं दे पा रहा है. गारंटी दी गई थी कि 2022 तक राज्यों के राजस्व में जितनी कमी होगी उसकी भरपाई केंद्र करेगा. केंद्र चाहता है कि यह गारंटी 2022 में समाप्त हो और राज्य चाहते हैं कि और पांच साल के लिए बढ़े. कारण है कि जीएसटी के कारण राज्यों के पास राजस्व जमा करने का स्कोप काफी घट गया है. जीएसटी के तमाम सुनहरे आंकड़ों के बाद भी केंद्र राज्यों का हिस्सा देने के लिए लोन ले रहा है.
आर्थिक विषयों पर लिखने वाले विवेक कॉल ने इसका भी एक हिसाब लगाया कि क्या जीएसटी के भीतर पेट्रोल और डीज़ल को लाने से दाम कम हो जाएंगे. एक उदाहरण देकर बताया है कि 16 सितंबर को दिल्ली में पेट्रोल का दाम 101.19 रुपया था. डीलर कमीशन मिलाकर डीलर कर 44.94 रुपये लीटर दिया गया. इसके बाद 56.25 पैसे टैक्स के हैं. करीब 125 प्रतिशत टैक्स है. अलग अलग राज्यों में टैक्स की दरें कम होंगी लेकिन तमाम जगहों पर 100 प्रतिशत से अधिक ही होंगी. केंद्र सरकार भी पेट्रोल और डीज़ल के टैक्स से लाखों करोड़ जमा करना चाहती है. 2019-20 में केंद्र के उत्पाद शुल्क से 56.6 प्रतिशत की कमाई हुई थी. इस वक्त जीएसटी पर अधिकतम 28 प्रतिशत टैक्स है. जीएसटी में भी लाने पर पेट्रोल और डीज़ल का टैक्स अधिक होगा क्योंकि कोई सरकार 28 प्रतिशत टैक्स पर तैयार नहीं होगी. जिसके लिए केंद्र सरकार तो बिल्कुल तैयार नहीं होगी. जीएसटी में भी टैक्स 100 प्रतिशत होना पड़ेगा. वही कह दे कि वह 28 प्रतिशत जीएसटी पर तैयार है, बाकी राज्य विरोध कर रहे हैं.
इन बहसों में कई तथ्यों की कमी है लेकिन इनकी बुनावट व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के फैलाए हुए तर्क जाल से तय होती है. कई बार बहस तो यहां से भटकती हुई वहां चली जाती है. कुल मिलाकर आप महंगाई और बेरोज़गारी के ऐसे सपोर्टर से मिलते हैं जिसके लिए सरकार जिम्मेदार ही नहीं है.
महंगाई के इन सपोर्टर काल्पनिक नहीं हैं न ही ये इक्के दुक्के हैं. इन्हें बहुत बड़ा सामाजिक और राजनीतिक समर्थन हासिल है. इनके भारत में हर आदमी अमीर है और महंगाई हवा मिठाई है. इन लोगों ने ऑयल बॉन्ड को लेकर ज़बरदस्त अफवाह की स्थापना कर दी है. इसके खिलाफ कई बार तर्क दिए गए उसके बाद भी पेट्रोल के दाम बढ़ने के पीछे ऑयल बॉन्ड के कारण होने की अफवाह धाराप्रवाह चल रही है. 2012 से 2013 के बीच जब दाम बढ़ रहे थे और 70 रुपये लीटर भी नहीं हुए थे तब केंद्र सरकार सब्सिडी देकर जनता को राहत दे रही थी. कुल सवा लाख करोड़ का ऑयल बान्ड है. मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल से 14 लाख करोड़ से अधिक वसूले हैं. इसके सामने सवा लाख करोड़ का ऑयल बॉन्ड कोई बड़ी रकम नहीं थी. लेकिन 14 लाख करोड़ वसूल कर महंगाई के सपोर्टरों के ज़रिए फैलाया जा रहा है कि सवा लाख करोड़ के कारण पेट्रोल महंगा हो रहा है. यदि आप महंगाई के सपोर्टर को जानते हैं उनके साथ अपने अनुभवों को लिखें. हमें बताएं और ब्रेक ले लें.