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इंदिरा ने दिया दान, सोनिया गांधी ने मांगा वापस... आखिर नेहरू की निजी चिट्ठियों पर बवाल क्यों?

Harish Chandra Burnwal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 17, 2024 16:55 pm IST
    • Published On दिसंबर 17, 2024 16:55 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 17, 2024 16:55 pm IST

"मैं चाहता हूं कि कोई मुझसे समझदारी से और भरोसे के साथ बात करे, जैसा कि तुम कर सकती हो... मैं खुद पर से भरोसा खो रहा हूं... जिन मूल्यों को हमने पाला उनका क्या हुआ, क्या हो रहा है? हमारे महान विचार कहां हैं?" ये पंक्तियां भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1948 में महात्मा गांधी की हत्या, भारत विभाजन और दंगों के बाद एक पत्र में एडविना माउंटबेटन को लिखा था. एडविना माउंटबेटन, भारत के अंतिम अंग्रेज गर्वनर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी थीं. जवाहर लाल नेहरू और एडविना माउंटबेटन के बीच दोस्ती से अधिक एक विश्वास का रिश्ता था, जिसमें दोनों एक दूसरे से अपनी भावनाओं को बेबाकी से व्यक्त करते थे.

जवाहर लाल नेहरू के ऐसे ही कई पत्र आज 51 गत्ते के डिब्बों में सोनिया गांधी के पास बंद पड़े हैं. इन डिब्बों में करीब 2.80 लाख पन्नों के दस्तावेज हैं. ये सभी पन्ने जवाहर लाल नेहरू के व्यक्तिगत पत्र हैं, जो उन्होंने एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन , जयप्रकाश नारायण, पद्मजा नायडू, विजया लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, बाबू जगजीवन राम और गोविंद बल्लभ पंत जैसी हस्तियों को लिखे थे. 

इन्हीं 51 डिब्बों में भारत के इतिहास से जुड़ी जानकारियों को सार्वजनिक करने के लिए प्राइम मिनिस्टर म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (PMML) ने 10 दिसंबर, 2024 को राहुल गांधी को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उनसे यह आग्रह किया गया है कि वह सोनिया गांधी को इस बात पर सहमत करें कि वह इन 51 गत्ते के डिब्बों को प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय को वापस कर दें.  

आखिर राहुल गांधी को क्यों लिखा गया पत्र?
प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय यानी PMML ने 10 दिसंबर, 2024 को राहुल गांधी को पत्र लिखने से पहले 9 सितंबर, 2024 को सोनिया गांधी को भी पत्र लिखा था. लेकिन इस पत्र पर सोनिया गांधी ने जब कोई जवाब नहीं दिया, तो प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय बोर्ड के सदस्य और जाने-माने इतिहासकार रिजवान कादरी ने यह पत्र लिखा है. राहुल गांधी वैसे तो सोनिया गांधी के बेटे हैं और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं, लेकिन यह पत्र उन्हें इन दोनों वजहों से नहीं लिखा गया है. दरअसल, संस्कृति मंत्रालय के अधीन आने वाले प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय के बोर्ड ने यह पत्र उन्हें इसलिए लिखा है, क्योंकि राहुल गांधी ही पंडित जवाहर लाल नेहरू के सभी पत्रों और दस्तावेजों के उत्तराधिकारी हैं.

भारत की पूर्व प्रधानमंत्री और राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी ने अपनी वसीयत में पंडित नेहरू से जुड़े दस्तावेजों और पत्रों का उत्तराधिकारी राहुल गांधी को बनाया है, जबकि खुद से जुड़े सभी पत्रों और दस्तावेजों का उत्तराधिकारी प्रियंका गांधी वाड्रा को बनाया है. वहीं, संजय गांधी के बेटे, वरुण गांधी को द सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहर लाल नेहरू का उत्तराधिकारी बनाया है.

1964 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद इंदिरा गांधी सभी दस्तावेजों की उत्तराधिकारी थीं. सवाल यह उठता है कि कानूनी रूप से जब राहुल गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू से जुड़े सभी पत्रों और दस्तावेजों के उत्तराधिकारी हैं, तो 9 सितंबर को PMML के बोर्ड के सदस्य रिजवान कादरी ने सोनिया गांधी को क्यों पत्र लिखा?

सोनिया गांधी को क्यों लिखा गया पत्र?  
इंदिरा गांधी की वसीयत के अनुसार, राहुल गांधी पंडित जवाहर लाल नेहरू के दस्तावेजों और पत्रों के उत्तराधिकारी हैं, लेकिन प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय ने सबसे पहले 9 सितंबर को सोनिया गांधी को पत्र इसलिए लिखा, क्योंकि उन्होंने यूपीए शासनकाल के दौरान 5 मई, 2008 को इन 51 गत्तों के डिब्बों में पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के व्यक्तिगत पत्रों व दस्तावेजों को अपने पास मंगवा लिया था.

यहां यह जानना जरूरी है कि इंदिरा गांधी ने इन सभी पत्रों और दस्तावेजों को नेहरू संग्रहालय और पुस्तकालय को यह लिखकर दान कर दिया था कि ये राष्ट्र की धरोहर हैं. लेकिन इंदिरा गांधी ने एक नियम यह भी बना दिया था कि व्यक्तिगत पत्रों और दस्तावेजों को देखने और पढ़ने के लिए नेहरू और इंदिरा के उत्तराधिकारियों से अनुमति मांगनी होगी. 

वैसे तो नेहरू-गांधी परिवार के इन दस्तावेजों के उत्तराधिकारी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा हैं, लेकिन वर्तमान में गांधी परिवार की मुखिया होने के कारण सोनिया गांधी इन सभी दस्तावेजों की संरक्षक हैं. इन पत्रों और दस्तावेजों की संरक्षक होने की हैसियत से ही सोनिया गांधी ने अपने करीबी एमवी राजन को नेहरू संग्रहालय और पुस्तकालय के अधिकारियों से मिलने को कहा था. 

मार्च, 2008 में उन्हें एक अधिकार पत्र के साथ भेजकर कहा कि वे बोर्ड के अधिकारियों के साथ मिलकर व्यक्तिगत पत्रों और दस्तावेजों को छांटकर लाएं. मार्च से मई के बीच करीब दो महीनों तक इन दस्तावेजों को छांट करके 51 गत्तों के बक्से में बंद किया गया और तत्कालीन निदेशक ने 10 मई, 2008 को इन सभी बक्सों को ले जाने के लिए आज्ञापत्र जारी किया. राहुल गांधी को लिखे पत्र में रिजवान कादरी ने इन सभी घटनाओं को ब्योरेवार लिखा है.

सोनिया गांधी ने नेहरू के पत्र को क्यों वापस मंगवाया?
साल 2008 में ऐसा क्या हुआ कि अचानक सोनिया गांधी ने नेहरू और इंदिरा गांधी से जुड़े व्यक्तिगत पत्रों और दस्तावेजों को वापस मंगा लिया. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है इतिहासकारों की इन पत्रों और दस्तावेजों को पढ़ने की बढ़ती जिज्ञासा, जिससे भारत के इतिहास को नए आयाम से समझा जा सके. "इंडिया ऑफ्टर गांधी" नाम से बहुचर्चित इतिहास की किताब लिखने वाले रामचंद्र गुहा ने 2002 से 2007 के दौरान कई बार इन दस्तावेजों को देखने के लिए सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी और अनुमति मांगी। लेकिन अनुमति की बात तो छोड़िए, उनके किसी भी पत्र का जवाब तक सोनिया गांधी ने नहीं दिया. 

भारत की आजादी के बाद के इतिहास को लिखने वाले रामचंद्र गुहा की किताब में वे बातें नहीं हैं, जो इन पत्रों या दस्तावेजों में बंद पड़ी हैं. सोनिया गांधी के मन पर एडविना माउंटबेटन की बेटी पामेला हिक्स की किताब India Remembered: A Personal Account of the Mountbattens During the Transfer of Power का भी प्रभाव पड़ा. यह किताब भी 2008 में ही प्रकाशित हुई थी. 

इस किताब में एडविना माउंटबेटन की बेटी पामेला हिक्स ने विस्तार से लिखा है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनकी मां के बीच गहरा प्रेम सबंध था. इस बात को लॉर्ड माउंटबेंटन भी जानते थे, लेकिन वह इस सबंध को सिर्फ इसलिए सहते थे कि इससे उनकी पत्नी एडविना को खुशी मिलती थी. यही नहीं, इस किताब में पामेला हिक्स ने यह भी बताया है कि भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन अपनी राजनीति के लिए नेहरू और एडविना के प्रेम संबंधों का फायदा उठाते थे. वह अपनी किताब में लिखती हैं कि लॉर्ड माउंटबेटन के जिन तर्कों को जवाहर लाल नेहरू मानने से इनकार कर देते थे, उन बातों को मनवाने के लिए एडविना माउंटबेटन अपनी प्रेम भावना का इस्तेमाल करती थीं.

सोनिया गांधी को समझ में आ चुका था कि जैसे-जैसे समय आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के उन निर्णयों को समझने के लिए इतिहासकार इन दस्तावेजों को देखने की मांग करेंगे, जिनसे देश का भविष्य तय हुआ. इतिहास को नए आयाम से समझने और लिखने का दौर शुरू हो, उससे पहले सोनिया गांधी ने इन सभी दस्तावेजों को 51 गत्ते के बक्से में बंद करवाकर अपने पास मंगवा लिया. 

यहां पर एक बात ध्यान देने वाली है कि 28 मई, 2023 को नए संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास जिस सेंगोल की स्थापना की, वह सेंगोल जवाहरलाल नेहरू के पैतृक निवास आनंद भवन, प्रयागराज के संग्रहालय में नेहरू की छड़ी के रूप में रखा हुआ था.

इन दस्तावेजों पर कानून का रुख
1964 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद उनके निवास स्थान तीन मूर्ति भवन को प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने नेहरू संग्रहालय में परिवर्तित करने का निर्णय लिया. उसके बाद 1970 के दशक में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, तो उन्होंने नेहरू संग्रहालय का विस्तार करके नेहरू संग्रहालय और पुस्तकालय कर दिया. इस तरह से पंडित नेहरू से जुड़े सभी दस्तावेज यहां पर संग्रहित कर दिए गए. इस संग्रहालय और पुस्तकालय के निर्माण और रखरखाव का खर्चा केंद्र सरकार उठाती है, लेकिन इंदिरा गांधी ने यह नियम भी बना दिया कि व्यक्तिगत पत्रों और दस्तावेजों को देखने के लिए गांधी परिवार से अनुमति लेनी होगी. लेकिन आज यह नेहरू संग्रहालय और पुस्तकालय, प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय में परिवर्तित हो चुका है. आज इसमें देश के सभी प्रधानमंत्रियों से जुड़ी जानकारी और दस्तावेज संग्रहित हो रहे हैं.

पूरा देश जानता है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी से जुड़े दस्तावेज खुद इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में दान कर दिया था. ऐसे में उस धरोहर को वापस मांग लेने पर कानूनी सवाल का उठना लाजमी है, जिसको लेकर सलाह भी ली जा रही है. बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक कानून की नजर में यह अस्वीकार्य है. इसीलिए प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय बोर्ड के सदस्य रिजवान कादरी ने इन दस्तावेजों के उत्तराधिकारी राहुल गांधी को इन्हें लौटाने के लिए पत्र लिखा है.

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं. उनसे इनके ईमेल के जरिए संपर्क किया जा सकता है – hcburnwal@gmail.com
twitter - https://twitter.com/hcburnwal

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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