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This Article is From Jun 12, 2015

अखिलेश शर्मा : गमांग से याद आई वाजपेयी सरकार की एक वोट से हार

Akhilesh Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 12, 2015 19:58 pm IST
    • Published On जून 12, 2015 16:55 pm IST
    • Last Updated On जून 12, 2015 19:58 pm IST
राजनीति में कोई भी स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता है, अगर होता तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह आज बांहें फैलाकर उड़ीसा (अब ओडिशा) के पूर्व मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग का स्वागत नहीं कर रहे होते।

शाह से मुलाक़ात के साथ ही गमांग का बीजेपी आने का रास्ता साफ हो गया है। जल्दी ही ये औपचारिकता पूरी हो जाएगी। लेकिन गमांग के बहाने 17 साल पुराने उस विश्वास प्रस्ताव पर मतदान की याद ज़रूर ताज़ा हो गई, जो वाजपेयी सरकार सिर्फ एक वोट से हार गई थी।

बात है 17 अप्रैल, 1999 की। एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने के बाद वाजपेयी सरकार को विश्वास प्रस्ताव रखना पड़ा। सुबह से ही संसद के गलियारों में गहमागहमी थी। लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने के कुछ ही देर पहले बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी मतदान में हिस्सा नहीं लेगी। प्रमोद महाजन समेत सरकार के रणनीतिकारों ने राहत की सांस ली।

सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सबकी नज़रें विपक्षी बेंच पर गई जहां उड़ीसा के मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग बैठे मुस्करा रहे थे। वो ठीक दो महीनों पहले यानी 18 फ़रवरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे, मगर उन्होंने लोकसभा से इस्तीफ़ा नहीं दिया था। वो कोरापुट संसदीय क्षेत्र की नुमांइदगी कर रहे थे।

सत्तापक्ष के कुछ सांसदों की ओर से लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी का इस ओर ध्यान दिलाया गया। लेकिन नियमानुसार मुख्यमंत्री बनने के छह महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना जरूरी है, तब तक तकनीकी तौर पर सांसद रह सकते हैं। हालांकि नैतिक तौर पर ये कितना सही है, इस पर आज भी बहस हो रही है।

जब मायावती के बोलने की बारी आई, तो उन्होंने यू टर्न ले लिया। उन्होंने विश्वास मत के विरोध में वोट डालने का फैसला सुनाया और लोकसभा में हड़कंप मच गया। सरकार की स्थिति पहले ही नाज़ुक थी। प्रमोद महाजन आखिरी वक्त तक मोर्चाबंदी करते देखे जा रहे थे। पत्रकार दीर्घा खचाखच भरी हुई थी। मुझे सीढ़ियों पर बैठने की जगह मिल गई थी और वहां से स्पीकर की टेबल साफ देखी जा सकती है।

मतदान हुआ। गमांग ने सरकार के खिलाफ वोट दिया। तब नेशनल कांफ्रेंस के सांसद सैफ़ुद्दीन सोज़ ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर सरकार के खिलाफ वोट दिया। वोटों की गिनती हुई। मैंने देखा कि बालयोगी बार-बार अपनी तर्जनी उंगुली उठा कर वाजपेयी को इशारा करने लगे। उनके चेहरे के भाव से स्पष्ट था कि वो इशारा कर रहे हैं कि सरकार एक वोट से हार गई। थोड़ी देर बाद स्पीकर ने एलान किया कि विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विरोध में 270 वोट पड़े। तेरह महीने पुरानी वाजपेयी सरकार गिर चुकी थी।

पूरा सदन अचानक ख़ामोश हो गया। फिर विपक्षी पार्टियों का उत्साह फूट पड़ा। शरद पवार उठकर मायावती के पास गए और गर्मजोशी से उनका शुक्रिया अदा किया। कांग्रेसी सांसद गमांग और सोज़ से लगातार हाथ मिला रहे थे। वाजपेयी ने हाथ सिर से लगा कर सलाम कर सदन का फैसला माना। बाद में पता चला कि उनके चैंबर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया भावुक हो गईं थी और उन्हें ढांढस बंधाते हुए वाजपेयी भी विचलित हो गए थे। उसके बाद राजनीति का चक्र जिस तरह घूमा, वो अब इतिहास का हिस्सा है। अगर सरकार को एक वोट और मिला होता तो टाई हो जाता और स्पीकर वोट डाल कर सरकार को बचा सकते थे।

गमांग अब सफाई देते घूम रहे हैं कि उनके वोट से वाजपेयी सरकार नहीं गिरी। उनका कहना है कि चीफ़ व्हिप ने उनसे मतदान करने को कहा था। उनके मुताबिक़ वाजपेयी सरकार तो सोज़ के वोट से गिरी थी। उड़ीसा की राजनीति में गमांग एक बड़ा नाम है। वो कोरापुट सीट से 1972 से लगातार आठ बार सांसद रहे और 2004 में फिर इसी सीट से जीते। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हाराव की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे। 18 फ़रवरी, 1999 से 6 दिसंबर, 1999 तक उड़ीसा के मुख्यमंत्री रहे।

बीजेपी का कहना है कि 72 साल के गमांग के रूप में एक बड़ा आदिवासी नेता मिला है। राज्य में नवीन पटनायक का जादू तोड़ने में कांग्रेस और बीजेपी दोनों नाकाम रहे हैं और बीजेपी का यही कहना है कि गमांग के आने से उसे अपनी ताकत बढ़ाने में मदद मिलेगी।

गमांग के एक वोट से वाजपेयी सरकार के गिरने के सवाल को बीजेपी भी अब ज्यादा तूल नहीं देना चाहती है। गमांग की ही तरह उसका भी अब कहना है कि इसके लिए सोज़ ज़िम्मेदार थे। यही सियासत का मिज़ाज है, जहां बनती-बिगड़ती, दोस्ती-दुश्मनी में पिछली बातों को भुलाकर ही आगे बढ़ा जाता है।

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