सत्ता में बैठी NDA सरकार ने आम चुनाव से ठीक तीन महीने पहले लोकसभा और राज्यसभा में आर्थिक रूप से कमज़ोर सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का बिल पास कराकर चर्चा का पूरा केंद्र ही बदल दिया. राफेल पर विपक्ष के हमलावर तेवर को एकदम से कुंद करने की कोशिश रंग लाई और विपक्ष मन मसोसकर राफेल को छोड़ आरक्षण पर चर्चा करने लगा. तमाम तरह के विरोध दर्ज कराते हुए लगभग पूरे विपक्ष को इस मसले पर सरकार का साथ देना पड़ा. सबको चुनाव का डर सता रहा था. कांग्रेस विरोध करती, तो मसला सवर्ण विरोधी का होता, मजबूरन साथ आना पड़ा. इस तरीके से पूरे विपक्ष को विवश कर देने की सोच SC-ST अमेंडमेंट बिल के समय भी देखने को मिली थी.
इससे पहले कि मोदी के 'नये कदमों' की चर्चा हो, इन दो लोगों- राहुल गांधी और अरुण जेटली, की बात जरूरी है. लोकसभा और राज्यसभा में राफेल पर घमासान मचा हुआ था. राहुल गांधी समेत पूरा विपक्ष सरकार को रोज़-रोज़ राफेल पर बयान देने को मजबूर किए जा रहा था. ऐसे में सदन के पटल पर सरकार के संकटमोचक अरुण जेटली इस सरकार में लगभग वही रोल अदा कर रहे हैं, जो कभी UPA में प्रणब मुखर्जी किया करते थे. जेटली ने शानदार तरीके से राफेल पर सरकार का पक्ष रखा और राहुल गांधी को इस मसले पर ABCD से शुरू कर सीखने की सलाह दी.
तीन राज्यों में मिली जीत ने कांग्रेस का मनोबल काफी मज़बूत किया है. इसका प्रमाण राहुल गांधी के भाषणों और संसद में तीखे हमलों के रूप में देखा जा सकता है. राहुल गांधी जब सदन में कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके सवालों का जवाब देना चाहिए, PM उनके सवालों से भाग रहे हैं, तो पूरा विपक्ष उनके साथ खड़ा दिखता है. राहुल के तीखे तेवरों ने रक्षामंत्री को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वह खुद पिछड़े तबके से आती हैं, इसलिए उन्हें इस तरीके से अपमानित किया जा रहा है. हालांकि राहुल गांधी ने साफ कर दिया कि रक्षामंत्री उनके सवालों का जवाब देने की जगह इमोशनल कार्ड खेल रही हैं. खैर, इन बयानों के बीच सत्ता के गलियारों में और भी बड़े कदम उठाए जाने की चर्चा हो रही है.
सवर्णों को आरक्षण दिए जाने की मांग काफी समय से चल रही थी, लेकिन इसे एक झटके में सदन में पेश कर पास कराने की बात शायद ही किसी ने सोची होगी, खासकर तब, जब शीत सत्र का आखिरी दिन चल रहा हो. इसके लिए राज्यसभा का सत्र एक दिन के लिए बढ़ाना भी पड़ा. इस वर्ष मई तक नई सरकार सत्ता में आ जाएगी. अभी वर्तमान सरकार के पास तकरीबन तीन महीने बचे हैं. इस बीच, अंतरिम बजट के लिए सत्र बुलाए जाने की घोषणा की गई है. अमूमन यह सत्र अंतरिम बजट को पास कराने के लिए बुलाए जाते रहे हैं, लेकिन इस बार यह सत्र 14 दिन का है, इसलिए काफी कयास लगाए जा रहे हैं. 14 दिन के बजट सत्र में सरकार क्या-क्या करने वाली है, यह सवाल पूछे जाने लगे हैं. अभी के माहौल और चुनावी साल को देखते हुए कुछ बड़ा धमाका किए जाने की उम्मीद है, सो, इस सत्र में यह सब भी हो सकता है.
1. किसानों को आर्थिक मदद : पिछले कुछ महीनों में सरकार ने ऐसे कई कदम उठाए हैं, जिससे लगने लगा है कि वह समाज के सभी वर्गों को साधने की कोशिश कर रही है. स्वास्थ्य को लेकर आयुष्मान भारत योजना, गृहिणियों के लिए उज्ज्वला योजना ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं. SC-ST एक्ट को लेकर इस सरकार ने साफ कर दिया था कि वह इस समुदाय के लोगों को साथ लाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ सकती है. इससे नाराज़ हुए सवर्णों को सरकार ने 10 फीसदी आरक्षण का तोहफा तो दे ही दिया है. तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किसानों की कर्ज़ माफी ने सरकार के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. विपक्षी नेता राहुल गांधी खुद कह चुके हैं कि किसानों की कर्ज़ माफी होने तक वह PM नरेंद्र मोदी को चैन से बैठने नहीं देंगे. ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि सरकार राहुल गांधी के इस अभियान को असफल करने के लिए उससे भी बड़ा कोई कदम उठा सकती है. यह किसानों को मिनिमम इनकम की गारंटी के रूप में भी हो सकती है या उन्हें एक तरीके से पेंशन दिए जाने को लेकर भी हो सकती है. लेकिन उम्मीद की जा रही है कि सरकार किसानों के लिए कोई बड़ी घोषणा कर सकती है.
2. नौकरीपेशा लोगों को राहत : ऐसा लगता है, जैसे सरकार ने सबको कुछ न कुछ दे दिया, नौकरीपेशा लोगों को छोड़कर. बजट में इनकी सबसे बड़ी उम्मीद आयकर को लेकर रहती है. सरकार ने आरक्षण के लिए जो स्लैब तय किया है, उसमें एक यह भी है कि वैसे लोग जो आरक्षण के योग्य हैं, उनकी पारिवारिक आय आठ लाख रुपये सालाना से कम हो. ऐसे में आयकर की सीमा पर सवाल उठाए जाने लगे हैं. आयकरमुक्त सीमा को बढ़ाए जाने की बात उठने लगी है. साथ ही 80सी में मिलने वाली छूट की सीमा को भी बढ़ाए जाने की बात होने लगी है. ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस सत्र में इसके लिए ज़रूर कोई ठोस कदम उठाएगी.
3. तीन तलाक बिल : सरकार तीन तलाक बिल को लेकर काफी संवेदनशील बनी हुई है. इस बिल को लोकसभा में पहले ही पास किया जा चुका है. इसे अब राज्यसभा में पास होना है. विपक्ष की मांग इसमें संशोधन करने की रही है. एक साथ तीन तलाक देने वाले को जेल की सज़ा नहीं दी जानी चाहिए. लोकसभा में इस मसले पर बहस भी हुई. BJP की कोशिश मुस्लिम वोटरों में सेंध लगाने की रही है, और महिलाओं को साधने से इसमें कुछ हद तक मदद मिल सकती है.
4. महिला आरक्षण बिल : लोकसभा और राज्यसभा में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने का बिल पास होने के बाद से यह चर्चा भी चल पड़ी है कि क्या महिलाओं के लिए आरक्षण का बिल भी इस बार कानून का रूप ले पाएगा. क्या महिला आरक्षण बिल को सरकार लोकसभा और राज्यसभा से पास करा पाएगी. चर्चा तो हो रही है, लेकिन इसे सदन में पेश किया जाएगा या नहीं, इस पर सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते हैं.
5. राम मंदिर निर्माण : सुप्रीम कोर्ट ने पांच-सदस्यीय संविधान पीठ बना दी है, लेकिन पीठ ने अगली सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तारीख दी है. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बयान में कह चुके हैं कि मंदिर निर्माण का रास्ता कोर्ट से ही तय होगा. हालांकि स्थानीय स्तर पर इसके निर्माण के लिए सामग्री को इकट्ठा किए जाने का सिलसिला तेज़ हो गया है. मंदिर में लगने वाले पत्थरों की नक्काशी का कार्य वर्षों से चल ही रहा है, उसे और तेज़ कर दिया गया है. सरयू के घाट पर भगवान राम की मूर्ति लगाए जाने की घोषणा की गई है, इसलिए बजट सत्र में यह संभावना कम ही है कि इस मसले पर सरकार की तरफ से कोई विधेयक पेश हो, लेकिन पार्टी के भीतर और संघ की तरफ से बढ़ते दबाव को लेकर चुनाव से पहले कुछ न कुछ ठोस होने की उम्मीद की जा सकती है. हालांकि आरक्षण की घोषणा मंदिर निर्माण के मसले को कैसे मैनेज करती है, सरकार इस पर भी नज़र रखना चाहेगी.
साढ़े चार साल शासन करने के बाद सरकार ने आर्थिक आरक्षण का दांव चला है, उसका असर कितना होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि एक सफल बिज़नेसमैन की तरह मोदी सरकार ने अपना बेहतरीन दांव चल दिया है. हालांकि बिहार चुनाव के दौरान RSS प्रमुख की तरफ से जब आरक्षण की समीक्षा का बयान आया था, तो इसकी जमकर आलोचना हुई थी, लेकिन सवर्णों को आरक्षण दिए जाने की घोषणा ने आरक्षण की राजनीति को और मज़बूत कर दिया है. खैर, चुनावी रण की तैयारी में जो तीर-तरकश सजने लगे हैं, यह सब उसकी बानगी ही है.
सुरेश कुमार ndtv.in के संपादक हैं.
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