फेक न्यूज़ का एक और हमसफ़र है पेड न्यूज़. पैसा लेने का तत्व पेड न्यूज़ में भी है और फेक न्यूज़ में भी है. चुनावों में पेड न्यूज़ का क्या आतंक है आप किसी भी दल के उम्मीदवार से पूछ लीजिए. अब पेड न्यूज़ के कई तरीके आ गए हैं. चुनाव आते ही विपक्षी दलों के ख़िलाफ़ स्टिंग ऑपरेशनों की बाढ़ आ जाती है, सर्वे में विपक्ष को कमज़ोर बताया जाने लगता है. यूपी चुनाव में ग़लत सर्वे छापने को लेकर विवाद भी हुआ था. पेड न्यूज़ में होता यह है कि पैसा लेकर उम्मीदवार के बारे में ख़बर छपती है कि जनसैलाब उमड़ा, फलाना ढिमकाना की चल रही है लहर. इसी की नई पीढ़ी है फेक न्यूज़. हमने इंटरनेट पर पेड न्यूज को लेकर सर्च किया तो कई जानकारियां सामने आईं. आप जानते हैं कि हर चुनाव में पेड न्यूज़ पकड़ने के लिए राज्य स्तर और ज़िला स्तर पर चुनाव आयोग Media Certification and Monitoring Committees (MCMC) बनाता है.
2013 में चुनाव आयोग की एक रिपोर्ट आई थी, जिसके अनुसार 17 राज्यों के विधानसभा चुनावों में पेड न्यूज़ के 1400 मामले सामने आए थे. ये सभी चुनाव 2010 से 2013 के बीच हुए थे. 2012 का पंजाब के विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज़ के 523 मामले सामने आए थे. 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज़ के 414 मामले सामने आए. 2012 के हिमाचल प्रदेश के चुनाव में 104 मामले सामने आए. 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज़ के 93 मामले सामने आए थे.
2014 के लोकसभा चुनाव में मीडिया का जो रूप था वो अभूतपूर्व था. यह चुनाव भी पेड न्यूज़ से बच नहीं सका था. कई बार पेड न्यूज़ के मामले रिपोर्ट भी नहीं होते हैं. उनके तरीके इतने बदल गए हैं कि पकड़ना भी मुश्किल होता है और अभी तक पेड न्यूज़ को अलग से परिभाषित नहीं किया गया है और न ही इसके लिए सज़ा का प्रावधान किया गया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में पेड न्यूज़ के 787 केस सामने आए थे. सबसे अधिक 223 मामले राजस्थान से और 152 मामले पंजाब से दर्ज हुए थे. आंध्र प्रदेश में 116 और उत्तर प्रदेश में 86 मामले दर्ज हुए हैं. आंध्र में 116 कंफर्म केस थे, लेकिन 2168 नोटिस जारी हुए थे पेड न्यूज़ के संबंध में. 2014 के चुनाव में पेड न्यूज़ के मामले में उम्मीदवारों को 3100 नोटिस जारी किए गए थे.
पेड न्यूज़ नहीं रुक रहा है और फेक न्यूज़ भी आ गया है. 2017 के पंजाब और यूपी के विधानसभा चुनावों में भी पेड न्यूज़ के मामले दर्ज किये गए. 23 फरवरी 2017 के न्यूज़लौंड्री की साइट पर इसकी ख़बर है कि गोवा और मणिपुर में पेड न्यूज़ का एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ था. हम अभी तक अपने चुनावों को हिंसा और बूथ कैप्चरिंग के अलावा इन दुर्गुणों से मुक्त नहीं कर पाए हैं. पैसे पकड़े जाते हैं मगर पैसे का इस्तेमाल अभी तक नहीं रुका है. अक्टूबर 2011 में पेड न्यूज़ के आरोप में यूपी की एक विधायक उमलेश यादव की सदस्यता खारिज कर दी गई थी. राष्ट्रीय परिवर्तन दल की विधायक थीं. मगर किसी बड़े दल का उम्मीदवार पेड न्यूज़ करता हुआ बर्खास्त नहीं हुआ है. इस क्रम में एक और नेता पकड़े गए हैं जिनका मामला अदालत में भी साबित हो गया है.
नरोत्तम मिश्रा मध्य प्रदेश के मंत्री हैं. दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक नरोत्तम मिश्रा राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर सकेंगे. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने नरोत्तम मिश्रा को 2008 के विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज़ के मामले में दोषी पाया है. चुनाव आयोग ने नरोत्तम मिश्रा पर तीन साल के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है. इस लिहाज़ से नरोत्तम मिश्रा 2018 के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं बन पायेंगे. आयोग ने पाया कि नरोत्तम मिश्रा ने 2008 के चुनाव में दतिया विधानसभा में पेड न्यूज़ पर ख़र्च की गई रकम को अपने ख़र्चे में नहीं दिखाया है. नरोत्तम मिश्रा इस वक्त जल संसाधन, जनसंपर्क और संसदीय कार्य मंत्री हैं. पेड न्यूज़ के मामले में दोषी पाये जाने के बाद भी पद पर बने हुए हैं. मिश्रा जी न्याय के लिए लड़ रहे हैं. उन्होंने नैतिकता का लोड लेकर तुरंत इस्तीफा देने की कोई जल्दबाज़ी नहीं की है.
एक बात को लेकर सतर्क रहियेगा. मीडिया को फेक न्यूज़ कहने में खतरा है. इसका लाभ ट्रंप जैसे नेता उठा ही रहे हैं न्यूज़ चैनलों को फेक न्यूज़ कहकर. जो फेक न्यूज़ है उसे ही फेक न्यूज़ कहा जाए. पत्रकारों से उम्मीद की जाती है कि ख़बर छापने से पहले तीन चार बार पुष्टि कर लें लेकिन अब आपसे भी उम्मीद की जाती है कि ख़बर पर यकीन करने से पहले कई सोर्स से कंफर्म कर लें. कहीं ऐसा न हो जाए कि जो खबर अखबार में पढ़ी है उसे कंफर्म करने के चक्कर में ऑफिस जाना ही भूल जाएं. अब तो न्यूज़ हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्सऐप ग्रुप से भी आने लगा है. नेताओं के अपने ट्वीटर हैंडल हैं, यू ट्यूब चैनल हैं. वही झूठ बोल रहे हों तो आप क्या करेंगे. राजनीतिक दलों ने व्हाट्सऐप ग्रुप में मोहल्ले तक के लोगों को घेर लिया है. ग्रुप का मेंबर बनाकर सियासी कचरा ठेलते रहते हैं जिसमें से ज़्यादातर फेक न्यूज़ ही होता है. इस सीरीज के शुरू में हमने आपको मिलेनियम बग यानी वाई टू के का उदाहरण दिया था, अब आपको 2001 के दिल्ली और उत्तर भारत के कई इलाकों में फैले मंकी मैन का उदाहरण देना चाहते हैं.
मंकी मैन न तो मंकी था न ही मैन था मगर मैन, विमेन चिल्ड्रन मंकी मैन के आने और काट लेने की कल्पनाओं में खो गए. रात भर जागते थे. किसी ने उसे देखा नहीं मगर बताने वालों की कमी नहीं थी कि मंकी मैन कैसा है. फेक न्यूज़ हम सबका यही हाल करने वाला है. हम फेक न्यूज़ को लेकर लोग रातों को जागेंगे, समुदायों को लड़ते देखेंगे, किसी को पीटते देखेंगे बल्कि देख ही रहे हैं. मंकी मैन का उदाहरण इसलिए दे रहा हूं ताकि यह साफ रहे कि फेक न्यूज़ को पचाने की प्रैक्टिस हम आज से नहीं कर रहे हैं.
उस वक्त मीडिया भी मंकी मैन को ख़ूब कवर करता था. एनडीटीवी के आर्काइव में मंकी मैन को लेकर कई रिपोर्ट हैं. जिसे सिद्धार्थ पांडे, बरखा दत्त, अराधना शर्मा, वर्तिका नंदा ने कवर किया था, जो तब एनडीटीवी के साथ थे. मंकी मैन कवर करने वालों में अमिताभ रेवी, सेरा जेकब, माया मीरचंदानी अब भी एनडीटीवी के साथ हैं. तब एनडीटीवी इंडिया नहीं था, स्टार न्यूज़ था. हम पुरानी रिपोर्ट और उसमें लोगों के बयान को दिखाना चाहते हैं ताकि आपको पता चले कि फेक न्यूज़ या अफवाह हमारी क्या हालत करता है. बीच बीच में इसका ट्रायल भी होता ही रहता है जैसे स्पेन और मोरक्कों की सीमा की चमकदार तस्वीर लगाकर जाने अनजाने में किया गया. ऐसे अनेक उदाहरण हैं. मुझे जहां तक याद है मंकी मैन की पहली ख़बर यूपी के एक हिन्दी अखबार में कहीं कोने में छपी थी पर साबित करने के लिए उसकी कोई क्लिपिंग नहीं है. पहले हम कुछ पुरानी रिपोर्ट देखते हैं. तब की रिपोर्ट डेढ़ मिनट से ज़्यादा लंबी नहीं होती थी. अंग्रेज़ी से घबराने की ज़रूरत नहीं है न ही हिन्दी के नाम पर नकली गौरव गान करने वालों के झांसे में आने की ज़रूरत है.
मंकी मैन की तरह फेक न्यूज़ भी भेष बदल कर ही आता है आपको गुमराह करने के लिए. मंकी मैन को लेकर कल्पनाएं हवा में उड़ने लगीं. सबने मंकी मैन के बारे में इस तरह से बयां किया कि आप सुनकर हंसते हंसेत लोटपोट हो जाएंगे. पर हंसते भी रहिये और सोचते भी रहिए कि कहीं फेक न्यूज़ ने आपकी ऐसी हालत तो नहीं कर दी है.
मंकी मैन का ऐसा बवाल उठा था कि पुलिस और सरकार भी उसमें व्यस्त हो गई. कभी पुलिस ने कहा कि असामाजिक तत्वों का काम है. चश्मदीदों के अनुसार कम से कम दो लोग हैं जो मिलकर अंजाम दे रहे हैं. बताइये चश्मदीद को यही पता नहीं कि मंकी मैन कैसा दिखता है, सबके अलग अलग विवरण आपने सुने ही मगर उनके आधार पर पुलिस मानने लगी की दो लोग हैं. दिल्ली पुलिस से उस वक्त उम्मीद की जाने लगी कि वो मंकी मैन का पोट्रेट बनाए जैसे आंतकी हमलों के बाद आतंकवादियों का बनता है. एक बार तो पुलिस ने कह दिया कि न तो वो इंसान है न ही बंदर है, कोई और जानवर है.
जब समाज बौरा जाता है तो उसका असर पुलिस के काम पर पड़ता है. पुलिस क्या करती. रात भर लोग आतंकित रहते, कोई कहीं से गिरता, या कोई अपनी ही छाया देखकर मंकी मैन मंकी मैन चिल्लाने लगता. अंत में हार कर दिल्ली पुलिस ने 50,000 का इनाम रख दिया. गृहमंत्रालय से रैपिड पुलिस फोर्स मांगी गई. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए एक विशेष टीम बना दी गई जिसका काम था मंकी मैन की जांच करना.
मंकी मैन के समय में हम मेच्योर नहीं हुए थे इसलिए लोग रात भर कूद फांद करते रहते थे. फेक न्यूज़ के समय हम परिपक्व हो चुके हैं. जो मिलता है चुपचाप गटक जाते हैं और धारणाओं में जीने लगते हैं. फेक न्यूज़ को पचाने की हमारी क्षमता में सुधार भी हुआ है और विकास भी. यह बदलाव भारत में भी आया है और दुनिया में भी आ चुका है. अब लोग कई मामलों में इसके आधार पर राजनीतिक फैसले लेकर ख़ुद कर गर्व से जागरूक मतदाता भी कहने से नहीं चूकते हैं. हिलेरी क्लिंटन का दर्द कोई नहीं समझ सकता और न ही आप डॉनल्ड ट्रंप की ख़ुशी समझ सकते हैं. एक फेक न्यूज़ का मारा है और एक फेक न्यूज़ का बादशाह है. हैदर एक फिल्म आई थी, इसके सह लेखक थे बशारत पीर. अच्छे पत्रकार हैं और इनकी किताब है कर्फ्यू नाइट. बशारत की भी एक रिपोर्ट है मंकी मैन पर.
20 जून 2001 की उनकी स्टोरी बताती है कि दिल्ली पुलिस ने मंकी मैन के रहस्य से पर्दा उठा दिया है. एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मंकी मैन था ही नहीं. इस स्टोरी में उस वक्त के ज्वाइंट कमिश्नर सुरेश राय ने कहा है कि मंकी मैंन में बंदर या कोई भी जानवर शामिल नहीं है. एक्सपर्ट कमेटी में National Institute of Human Behaviour (NIHB) and Central Forensic Laboratory (CFL) के सदस्य भी थे. पुलिस ने यह भी कहा कि मंकी मैन के पीछे पाकिस्तान के आईएसआई का हाथ नहीं है. न ही किसी गुंडा गिरोह का हाथ है. दिल्ली पुलिस के कमिश्नर अजय राज शर्मा ने तो पचास हज़ार का इनाम भी रख दिया था. उन्हें लगता था कि यह किसी गिरोह का काम है. साल 2001 का मई और जून महीना मंकी मैन में ही बीत गया. पुलिस को 379 फोन काल्स मिले थे. 303 बोगस निकले. 70 लोग घायल हो गए थे. एक केस में में थे उत्तर पूर्व दिल्ली के रघुनाथ पाठक को उनके भाई ने ही मारा था. लोग तरह तरह की कल्पना करने लगे थे. पुलिस ने माना कि मीडिया के कवरेज ने इस पागलपन को और बढ़ा दिया. आपको बता दें कि उस वक्त कई चैनलों ने मंकी मैन की बाइट के लिए पांच पांच रिपोर्टर की टीम बनाई थी. जो रात भर दिल्ली में घूमा करते थे. उन्हीं में से कई आज प्राइम टाइम के एंकर हैं. ज़ाहिर है 2001 में मंकी मैन के ज़रिये जो प्रैक्टिस किया था, वो अब काम आ रहा है.
वैसे हमारे चैनलों ने 2012 से पहले के साल में यह भी खूब चलाया कि दुनिया खत्म होने वाली है. फेक न्यूज़ नाम में भले जूनियर हो मगर इस काम में भारत के न्यूज़ वाले भी कम सीनियर नहीं हैं. गनीमत है कि लोगों ने भी समझ लिया कि सब बकवास है.
नोटबंदी के दौरान 2000 के नोट में किसी चिप के लगे होने की ख़बर दिखा दी गई. वैसे नोटबंदी के कारण आंतकवाद और नक्सलवाद के मिट जाने या रुक जाने का दावा भी कर दिया गया. पहली बार आतंकवाद और नक्सलवाद को मिटाने के लिए दुनिया में नोटबंदी का सहारा लिया गया. फर्क ये आया है कि काला धन अब नए नोटों में पकड़ा जा रहा है. कुछ लोग आज भी 2000 के नोट में चिप खोज रहे हैं जो है ही नहीं. जबकि उसी वक्त रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने मना कर दिया था कि नोट में इस तरह का कोई चिप नहीं है.
उस समय पांच सौ और हज़ार के साढ़े चौदह लाख करोड़ रुपये चलन में थे. ये मंत्री संतोष गंगवार का बयान था. आज तक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया नहीं बता सका कि नोटबंदी के बाद 500 और 1000 के कितने नोट वापस आए. हाल ही में संसदीय समिति के सामने रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल नहीं बता सके कि कितना नोट वापस आया है. उनका कहना है कि नोटों की गिनती चल रही है. रिजर्व बैंक ने काउंटिंग मशीन खरीदने के लिए टेंडर निकाला है. गर्वनर ने जनवरी में संसदीय समिति से कहा था कि अगली बार जब समिति के सामने हाज़िर होंगे तो बता देंगे कि कितने नोट वापस आए. कितने नोट वापस आए हैं यह जानना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि तभी पता चलेगा कि कितने नकली नोट या काला धन सर्कुलेशन में थे. अगर 14.50 लाख करोड़ ही आए तो फिर नोटबंदी कैसे सफल कही जाएगी. इस पर पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने चुटकी लेते हुए कहा है कि नोटबंदी के आठ महीने बाद अगर रिज़र्व बैंक काउंटिंग की मशीन खरीद रहा है तो कम से कम लीज़ पर ले सकता था. राहुल गांधी ने चुटकी लेते हुए ट्वीट किया है कि सरकार को मैथ्स टीचर की ज़रूरत है, किसी को पीएमओ में अप्लाई कर देना चाहिए.
वैसे जब आपसे बैंक गिन कर नोट लेते हैं, तो रिजर्व बैंक को भी गिन कर ही देते होंगे. जब बैंकों ने नोटबंदी के दौरान वापस किए गए नोट तभी के तभी गिन लिये तो अब तक रिजर्व बैंक कैसे नहीं गिन पा रहा है. क्या रिजर्व बैंक ये नहीं बता सकता कि बैंकों ने अपनी तरफ से गिन कर इतने नोट दिये हैं. हम अपनी तरफ से एक और बार गिन रहे हैं. शायद मंकी मैन की परिघटना अभी समाप्त नहीं हुई है. बीच बीच में इसके नए नए आइटम आते रहते हैं और हम लोगों ने हर बार साबित किया है कि अफवाह कैसी भी हो, यकीन ज़रूर करेंगे. अफवाह फैलाने वालों को हम लोगों ने कभी निराश नहीं किया है.
1995 में गणेश जी की मूर्ति को दूध पीलाने का लेसन हमें अभी तक ठीक ठीक याद है. तभी नवंबर 2016 में देश के कई राज्यों के लोग दुकानों के आगे लाइन में लग गए कि चीनी और नमक की किल्लत होने वाली है. इस मामले में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और हैदराबाद के लोगों ने भी छोटे शहरों के साथ अच्छा प्रदर्शन किया था. व्हाट्सऐप से मैसेज आया था कि चीनी और नमक की किल्लत होने वाली है. यूपी के तत्कालिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अफवाह बताते रहे और ज़िलाधिकारी को निर्देश देने लगे कि अफवाह फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई करें. कितनी अच्छी बात है कि फैलाने वालों के लिए सज़ा है मगर अफवाह पर यकीन करने वालों के लिए कोई सज़ा नहीं. दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को भी बयान देना पड़ा कि नमक की कोई कमी नहीं है. अफवाहों का क्या, वो उड़ते उड़ते मुंबई पहुंची की नमक 200 रुपये किलो हो गया है. मुंबई पुलिस को ट्वीट करना पड़ा कि ये अफवाह है. कई जगहों से ये भी ख़बर आ गई कि दुकानदार वाकई 200 से लेकर 600 रुपये किलो नमक बेच रहे हैं. आपमें से कोई ये पढ़ रहे हैं तो प्लीज़ ईमेल कीजिए ताकि हम जान सकें कि अफवाह पर यकीन कर 600 लुटाने के बाद अब आप कैसा महसूस कर रहे हैं. हैदराबाद पुलिस भी इस अफवाह यज्ञ को रोकने में काफी मेहनत कर रही थी.
हम फेक न्यूज़ से निराश इसलिए भी नहीं होते क्योंकि हमने कभी भी फेक न्यूज़ को निराश नहीं किया है. 2009 में राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने दिल्ली 6 बनाई थी. यह फिल्म भी मंकी मैन पर आधारित थी. मंकी मैन का ज़िक्र करना ज़रूरी था. गणेश जी की मूर्ति को दूध पिला लिया. वाई टू के के तहत दुनिया के कंप्यूटर के नष्ट होने का दौर भी देख लिया, मंकी मैन भी झेल लिया और अब फेक न्यूज़ झेल रहे हैं. मैं यह सोच रहा हूं कि अब हम इसके आगे क्या करने वाले हैं. जो भी होगा वो फेक न्यूज़ का कौन सा नया वर्जन होगा जो हमें पागल बनाने वाला है.
This Article is From Jul 14, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : पेड न्यूज से लेकर फेक न्यूज तक
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 14, 2017 23:51 pm IST
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Published On जुलाई 14, 2017 23:51 pm IST
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Last Updated On जुलाई 14, 2017 23:51 pm IST
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