आखिर राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी पर गुस्सा आया। नरेंद्र मोदी पर निशाना साधना तो दूर, अब तक वह अपने चुनावी भाषणों में मोदी का नाम तक नहीं लेते थे। अभी तक उनके निशाने पर बीजेपी और उसकी विचारधारा होती थी।
मोदी का नाम लिए बगैर जरूर राहुल गांधी ने कई बार उन पर बांटने और नफरत की राजनीति करने का आरोप लगाया। पिछले एक हफ्ते से राहुल और सोनिया गांधी ने मोदी पर सीधे हमले बोलने शुरू किए हैं। इसमें स्नूपगेट का जिक्रकर महिलाओं की जासूसी और उनकी सुरक्षा के सवाल उठाना शामिल रहा है।
लेकिन राहुल गांधी ने मोदी पर अब तक का सबसे तीखा हमला बुधवार को बोला। 'इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक बुधवार को छत्तीसगढ़ के बालोद में राहुल गांधी ने एक रैली को संबोधन में कहा, "मोदी पीएम बनना चाहता है। उसके लिए वो कुछ भी कर देगा। वो टुकड़े-टुकड़े कर देगा.... वो एक को दूसरे से लड़ा देगा।"
राहुल गांधी यहीं नहीं रुके। उन्होंने बीजेपी के अंदरूनी मामलों पर भी टिप्पणी की। मोदी पर आडवाणी और जसवंत सिंह जैसे नेताओं को किनारे करने का आरोप लगाया। राहुल ने यह भी कहा कि बीजेपी में एक ही व्यक्ति के हाथों में सब कुछ दिया जा रहा है। राहुल गांधी ने गुजरात और मुजफ्फरनगर दंगों के लिए बीजेपी को जिम्मेदार भी ठहराया।
राहुल के ये तेवर मोदी को लेकर कांग्रेस की बदली रणनीति की झलक दे रहे हैं। अभी तक राहुल गांधी अपने भाषणों में खुद की छवि को एक जिम्मेदार और गंभीर नेता के तौर पर पेश करते रहे हैं। सिस्टम में रहकर सिस्टम से लड़ रहे एक नाराज़ युवा के तौर पर खुद को पेश करने की उनकी कोशिश पार्टी को उलटी पड़ी।
दागी नेताओं को बचाने के लिए जारी किए गए अध्यादेश को फाड़कर फेंकने के अपने बयान पर बाद में उन्हें खुद ही खेद जताना पड़ा। जबकि अपने एकमात्र टीवी इंटरव्यू में वह मोदी का नाम लेने से बचते रहे। इस बारे में बार-बार पूछने पर भी उन्होंने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया।
दरअसल, कांग्रेस को समझ में आया है कि उसके पास मोदी का मुकाबला करने के लिए कोई रणनीति ही नहीं है। कभी पार्टी में मोदी के बारे में चुप रहने के बारे में फैसला होता है, कभी दूसरी या तीसरी कतार के नेता उन पर हमला करते हैं। कांग्रेस को लगता है कि मोदी अपने पर हुए हर हमले को पलटवार करने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। ऐसा गुजरात के विधानसभा चुनावों में हो चुका है। खासतौर से 2007 के चुनाव में जब मोदी ने खुद को 'मौत का सौदागर' बताने वाले सोनिया गांधी के बयान का अपने ही पक्ष में जमकर इस्तेमाल किया था।
कांग्रेस को लगता था कि मोदी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के बाद चुनाव में एकमात्र मुद्दा सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता हो जाएगा और इसके जरिये वह मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में कर सकेगी। लेकिन मोदी ने चुनाव प्रचार में हिंदुत्व से जुड़े किसी मुद्दे को प्राथमिकता नहीं दी और उन्होंने विकास, शासन, महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर यूपीए सरकार पर एक के बाद एक तीखे हमले बोले हैं। ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर कांग्रेस अपना बचाव नहीं कर पाती।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की जामा मस्जिद के इमाम से मुलाकात और उसके बाद जारी हुई 'सेक्यूलर' वोट न बंटने की अपील से इस पूरे चुनाव प्रचार ने एक नया मोड़ ले लिया। ऐसा लगा कि कांग्रेस अब इस चुनाव में मोदी के आने का डर दिखाकर मुस्लिम मतदाताओं पर खुलकर डोरे डाल रही है, ताकि अपने पक्ष में उनका ध्रुवीकरण किया जा सके।
उत्तर प्रदेश में समाजवाद पार्टी और बहुजन समाज पार्टी और बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद भी इसी रणनीति के तहत बार-बार मोदी पर सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप लगा रहे हैं। बीजेपी ने भी इसका जवाब दिया। ध्रुवीकरण की राजनीति में उसने भी अपने पत्ते खोल दिए। मुजफ्फरनगर में बीजेपी महासचिव अमित शाह का 'बदला' लेने वाला बयान इसी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें बीजेपी हिंदुओं का ध्रुवीकरण करना चाह रही है। पार्टी के रणनीतिकार इसे रिवर्स पोलेराइज़ेशन या जवाबी ध्रुवीकरण कहते हैं। पार्टी के घोषणापत्र में राम मंदिर, धारा 370 और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों को फिर जगह दे दी गई।
छत्तीसगढ़ की रैली में राहुल गांधी ने मोदी के बारे में जो भी कहा है, उससे कांग्रेस की यही रणनीति साफ होती है। टुकड़े-टुकड़े करने की बात, एक को दूसरे से लड़ाने के बात, ये वही आरोप हैं, जो मोदी पर गुजरात के 2002 के दंगों के बाद से लगते रहे हैं। विडंबना यह है कि जब-जब मोदी की सांप्रदायिक छवि को लेकर सवाल उठाए गए, गुजरात में उन्होंने इसका फायदा उठाया। अब सवाल यह है कि राहुल के ताज़ा हमलों के बाद क्या होगा? मोदी इसका किस तरह से जवाब देते हैं? और असली मुद्दों से भटके इस चुनाव में क्या प्रचार फिर पटरी पर वापस आ पाएगा?