आज का दिन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बुरी ख़बर लेकर आया है, मगर भारतीय मूल के अर्थशास्त्री के लिए बहुत ही अच्छी ख़बर लाया है. विश्व बैंक ने भारत की जीडीपी का अनुमान डेढ़ प्रतिशत घटा दिया है. 7.5 प्रतिशत से घटा कर 6 प्रतिशत कर दिया है. डेढ़ प्रतिशत की कमी बहुत होती है. दूसरी तरफ जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में एमए करने वाले अभिजीत विनायक बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिला है. जेएनयू पर ख़ास ज़ोर है, क्योंकि इस यूनिवर्सिटी को बदनाम करने के लिए मीडिया ने क्या-क्या नहीं किया. अभिजीत विनायक बनर्जी के साथ उनकी पत्नी एस्टर डुफलो और माइकल क्रेमर को भी नोबेल पुरस्कार मिला है.
1983 में जेएनयू से एमए करने से पहले अभिजीत बनर्जी ने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया था. कोलकाता के साउथ प्वाइंट स्कूल से उन्होंने स्कूली शिक्षा ग्रहण की थी. पैदा मुंबई में हुए थे. 1988 में अभिजीत ने हार्वड से पीएचडी की थी. दुनिया में गरीबी दूर करने के अर्थशास्त्र के उपायों के कारण अभिजीत बनर्जी को नोबेल पुरस्कार दिया गया है. इस वक्त बनर्जी MIT में फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनल प्रोफेसर हैं. MIT दुनिया की पांचवे नंबर की यूनिवर्सिटी है. 2012 में अभिजीत बनर्जी ने एस्टर डुफलो के साथ मिलकर पुअर इकॉनमिक्स नाम की किताब लिखी थी. 499 रुपये की यह किताब पेंग्विन ने छापी है. एस्टर का भी नाम इस साल नोबेल पाने वालों की सूची में है. एस्टर भी MIT में ही हैं. माइकल क्रेमर हार्वर्ड में पढ़ाते हैं.
2003 में अभिजीत ने अब्दुल लतीफ जमील पावटी एक्शन लैब की स्थापना की थी. इन्होंने 10 साल के भीतर कई देशों में रैंडमाइज़्ड कंट्रोल ट्रायल के जरिए 568 फील्ड एक्सपेरिमेंट किए थे. इसमें गुजरात में मनरेगा पर किया गया प्रयोग भी शामिल था. तमिलनाडु सरकार के साथ मिलकर भी कई प्रयोग किए हैं. 2019 के चुनावों में कांग्रेस की न्याय योजना की रुपरेखा तैयार करने में भी अभिजीत बनर्जी की भूमिका थी. कांग्रेस घोषणा पत्र में 'न्याय' योजना के तहत आबादी के 20 प्रतिशत गरीब लोगों को हर महीने 6000 रुपये देने का वादा किया था. मगर पार्टी का भविष्य ही अनिश्चित हो गया, जब जनता ने नकार दिया. अभिजीत को 2009 में इंफोसिस प्राइज़ भी मिल चुका है.
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस ने नोबल पुरस्कार देते समय कहा है कि इनका रिसर्च ग़रीबी से लड़ने में मदद कर रहा है. दो दशक के भीतर में ही इनके नए प्रयोगों के कारण डेवलपमेंट इकॉनमिक्स ही बदल गया है. दुनिया में 70 करोड़ बेहद मामूली आय पर गुज़ारा कर रहे हैं. हर साल 50 लाख बच्चे बीमारियों से मर जाते हैं, जिनका इलाज हो सकता था. दुनिया के आधे से अधिक बच्चे स्कूल से अक्षरों और अंकों की पहचान की योग्यता हासिल किए बग़ैर स्कूल छोड़ देते हैं. जिन्हें नोबेल पुरस्कार दिया जा रहा है उन लोगों ने गरीबी से लड़ने के ठोस उपाय बताए हैं. उनकी मां निर्मला बनर्जी कोलकाता में रहती हैं, जिनसे मोनीदीपा बनर्जी ने बात की. अभिजीत के पिता दीपक बनर्जी प्रेसिडेंसी कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष रह चुके हैं और स्नातक के छात्रों में एक बेहतरीन शिक्षक की पहचान रखते थे. प्रेसिडेंसी से ही हैं प्रोफेसर अमर्त्य सेन जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिल चुका है. प्रेसिडेंसी को दो-दो नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुए तो इसी के साथ जेएनयू के खाते में भी पहला नोबेल पुरस्कार आया. जेएनयू के वाइस चांसलर ने भी कहा है कि हम उन पर गर्व कर रहे हैं. यहां से पढ़े हुए छात्र जेएनयू का नाम रौशन कर रहे हैं. हमें गर्व है.
पोलेंड की ओल्गा तुगार्चुक को 2018 का साहित्य का नोबेल मिला तो वहां के शहर ने एलान किया है कि जो कोई ओल्गा की किताब लेकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तमाल करेगा, इस सप्ताहांत उसका किराया माफ होगा. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बधाई संदेश में कहा है कि 2019 का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिए जाने पर अभिजीत बनर्जी को बधाई.
राहुल गांधी ने भी अभिजीत बनर्जी को बधाई दी. राहुल ने ट्वीट किया, 'अर्थशास्त्र मे नोबेल पुरस्कार मिलने पर अभिजीत बनर्जी को बधाई. अभिजीत ने न्याय योजना की अवधारणा में मदद की थी, जिसमें ग़रीबी दूर करने और भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने की क्षमता थी. अब इसकी जगह हमारे पास मोदीनॉमिक्स है. जो भारत की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर रही है और ग़रीबी बढ़ा रही है. वहीं, योगेंद्र यादव ने भी अभिजीत को बधाई दी. योगेंद्र यादव ने कहा कि जेएनयू को पहला नोबेल पुरस्कार मिला है. 1981-83 के बीच अभिजीत मेरे बैचमेट थे. सेंटर फॉर इकॉनमिक्स स्टडीज़ से अर्थशास्त्र की पढ़ाई की थी.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी पत्र लिखकर अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी को बधाई दी है. 9 अक्तूबर को न्यूयॉर्क से चार घंटे दूर प्रोवेडेंस स्थित ब्राउन यूनिवर्सिटी में रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी ने भाषण दिया था. इसी भाषण में रघुराम राजन ने कहा था कि बहुसंख्यकवाद से आप एक बार चुनाव जीत सकते हैं, लेकिन यह भारत को को अंधेरे और अनिश्चित रास्ते की तरफ ले जा रहा है. बहुसंख्यकवाद में यकीन करने वाले लोग राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत नहीं करते हैं. कमज़ोर करते हैं. आर्थिक विकास से ही राष्ट्रीय सुरक्षा मज़बूत होगी. राजन के भाषण के कई बिन्दुओं से असहमत होते हुए अभिजीत बनर्जी ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था की चुनौतियां अब इतनी बड़ी हो चुकी हैं कि सही रास्ते पर लाने के लिए प्रार्थना ही की जा सकती है. अभिजीत बनर्जी का कहना है कि या तो किसानों को अनाज के अधिक दाम देने होंगे, लोगों की मज़दूरी बढ़ानी होगी, या फिर रुपये की कीमत को गिरने देना होगा. तभी कुछ हो सकता है. इस भाषण का कुछ हिस्सा आप सुन सकते हैं, अंग्रेज़ी में है लेकिन वे बता रहे हैं कि कैसे यूपीए के समय की कमज़ोरियां एनडीए के समय में रुप बदल कर जारी रहती है और नुकसान हो रहा होता है. दोनों ने ओपी जिंदल लेक्चर में अपना परचा पढा था.
अभिजीत बनर्जी ने ब्राउन यूनिवर्सिटी में एक और भाषण दिया, जिसमें कहा कि मोदी सरकार के पास राजनीतिक दृष्टि तो है मगर आर्थिक दृष्टि नहीं है. उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय के काम करने के तरीके की आलोचना की. यही नहीं मार्च के महीने में 108 अर्थशास्त्रियों ने सरकार को पत्र लिखा था कि सरकारी आंकड़ों में हेरफर हो रही है. अभिजीत बनर्जी ने पत्र लिखने वालों में शामिल थे. टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस के राम कुमार भी शामिल थे. राम कुमार ने अभिजीत बनर्जी के रैंडमाइज़ इम्पैक्ट इवेलुएशन मॉडल की आलोचना की है. इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि अगर आप बिहार में एक इलाके का सैंपल लेते हैं तो क्या वह पूरे राज्य के लिए लागू होगा. क्या दूसरे देश के छोटे से सैंपल के साथ किया गया प्रयोग किसी तीसरे देश में लागू होगा. इस आधार पर अभिजीत बनर्जी की आलोचना होती है. इसे विद्वानों में मतभेद का मॉडल कहा जाता है. अभिजीत बनर्जी के लैब में काम कर चुके आदित्य बालासुब्रमण्यन से हमने बात की. आदित्य ऑस्ट्रेलियन नैशनल यूनिवर्सिटी में इकॉनमिक हिस्ट्री पढ़ाते हैं. दिल्ली में 2011-12 में अभिजीत के अब्दुल लतीफ जमील पावटी एक्शन लैब में काम किया था.
विश्व बैंक ने भारत के बारे में अप्रैल में जो अनुमान पेश किया था उसमें भारी कमी कर दी है. अप्रैल में विश्व बैंक ने कहा था कि भारत की जीडीपी 7.5 प्रतिशत होगी, लेकिन अब इस साल की जीडीपी के 6 प्रतिशत से भी नीचे रहने के अनुमान हैं. जिस विश्व बैंक को छह महीने के भीतर अपने अनुमान में डेढ़ प्रतिशत की कमी करनी पड़ी हो वो यह भी बता रहा है कि 2020 में भी बहुत सुधार नहीं होगा. भारत की जीडीपी 6.9 तक ही पहुंच पाएगी. विश्व बैंक के अनुसार इस साल की जीडीपी 6 प्रतिशत से कम होगी. रेटिंग एजेंसी मूडी के अनुसार जीडीपी 5.8 प्रतिशत होगी. भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार जीडीपी 6.1 प्रतिशत होगी.
उधर, कश्मीर में 72 दिनों बाद पोस्ट पेड मोबाइल सेवा चालू हो गई है. दावा किया गया है कि बीएसएनल का नेटवर्क चालू हो गया है. 40 लाख पोस्ट पेड मोबाइल फोन के चालू होने की बात कही जा रही है, लेकिन प्री पेड मोबाइल सेवा के 20 लाख से अधिक ग्राहकों को इंतज़ार करना होगा. राज्यपाल ने कहा है कि हालात में सुधार होता गया तो जल्दी ही इंटरनेट सेवा बहाल होगी. हमारे सहयोगी नज़ीर ने श्रीनगर में कुछ लोगों से बात की है.