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This Article is From Nov 11, 2021

ड्रग्स का गोरखधंधा नाक के नीचे, एजेंसी कुछ ग्राम ड्रग्स के पीछे

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 11, 2021 22:48 pm IST
    • Published On नवंबर 11, 2021 22:48 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 11, 2021 22:48 pm IST

छह ग्राम चरस को लेकर राष्ट्रीय बहस का स्वांग रचने वाले संसार को इसकी चिन्ता ज़्यादा करनी चाहिए कि इस देश में ड्रग्स का जाल किस तरह फैलता जा रहा है. इस समस्या से अनजान बने रहने की जगह नज़र उठा कर देखिए कि ड्रग्स की पहुंच कितनी बढ़ गई है. टीवी में ड्रग्स के संबंध में बहस महाराष्ट्र को लेकर है जो अब न जाने कितने और मुद्दों में उलझ गई है लेकिन ड्रग्स से जुड़ी ख़बरें किसी और राज्य में जगह बना रही हैं.

यह आज का संदेश है, 11 नवंबर का. इसकी हेडलाइन है ड्रग्स की राजधानी गुजरात. एक और अखबार गुजरात समाचार के चौथे पन्ने पर ख़बर छपी है कि पिछले पांच महीने में 24,800 करोड़ का ड्रग्स बरामद. एक राज्य में पांच महीने में 24,800 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा जाता है, क्या यह किसी भयानक ख़तरे का संकेत नहीं है? संदेश अखबार गुजरात को ड्रग्स कैपिटल लिख रहा है.

इस तरह की अन्य खबरों में पाकिस्तान और अफगानिस्तान से ड्रग्स आने का ज़िक्र मिलता है और यहां के नागरिकों के पकड़े जाने का भी. अगर हमारी सीमाएं चाक-चौबंद हैं तब फिर 24000 करोड़ का ड्रग्स कैसे एक राज्य में प्रवेश कर रहा है. भारत में कौन लोग इस नेटवर्क से जुड़े हैं और इस दौर में पाकिस्तान से ड्रग्स की तस्करी का जोखिम उठा रहे हैं, जोखिम है या उनके लिए खेल है. गुजरात कांग्रेस ने मांग की है कि जो भी इस नेटवर्क से जुड़ा है उसका पता लगाया जाना चाहिए. यह तो वो संख्या है जो पकड़ी गई है. जो नहीं पकड़ी गई है उसके बारे में तो हम जानते तक नहीं हैं.

बुधवार को द्वारका में 350 करोड़ की हेरोईन पकड़ी गई है. हाल ही में मुंद्रा पोर्ट में 20,000 करोड़ की हेरोईन पकड़ी गई थी. 19 सिंतबर को पोरबंदर से 35 किलोग्राम हेरोईन बरामद हुई जिसकी कीमत 150 करोड़ बताई गई है. इस मामले में पकड़ा गया आरोपी इब्राहिम ईरानी है. उसने पुलिस को बताया है कि पिछले डेढ़ साल में एक हज़ार किलो से अधिक हेरोईन देश में आई है. 2019 में 218 करोड़ की हेरोईन के साथ पाकिस्तानी पकड़ा गया था. क्या गुजरात ड्रग्स कैपिटल बनता जा रहा है? हज़ारों करोड़ का ड्रग्स वो भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से मंगाने की क्षमता सामान्य अपराधी की नहीं हो सकती है. क्या कभी इस नेटवर्क के पीछे के लोगों तक पहुंचा जा सकता है? या छोटे अपराधी ही पकड़े जाते रहेंगे.

गुजरात के अख़बारों में एक और खबर छपी है. पिछले 55 दिनों में राज्य में 5,756 किलो ड्रग्स बरामद हुआ है. गुजरात के मुख्यमंत्री ने इतनी बड़ी मात्रा में ड्रग्स बरामद करने के लिए पुलिस की तारीफ की है. गृहराज्य मंत्री ने मीडिया को बताया है कि 55 दिनों में 245 करोड़ के ड्रग्स पकड़े गए हैं. पिछले दो महीने में 90 लोग गिरफ्तार हुए हैं. 2020 की राष्ट्रीय अपराध शाखा की रिपोर्ट के अनुसार महामारी के बीच में भी गुजरात में ड्रग्स से संबंधित 308 मामले दर्ज हुए हैं. उसके एक साल पहले 289 मामले दर्ज हुए थे.

2016 में जब नोटबंदी हुई थी तब परेशान जनता यह जानना चाहती थी कि नोटबंदी क्यों हुई? हर दिन सरकार इसके मकसद की सूची लंबी करती जाती थी कि इन इन कामों के लिए हुई और नोटबंदी से ये ये समाप्त हो गया. कभी नोटबंदी से काला धन खत्म हो रहा था तो कभी आतंकवाद. हर समस्या का एकमात्र समाधान नोटबंदी. उन दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि नोटबंदी से ड्रग माफिया खत्म हो जाएंगे लेकिन गुजरात में ही अगर पांच महीने में 24,800 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया है. ड्रग्स माफिया कहां खत्म हुए. कहीं ऐसा तो नहीं कि फिर से नोटबंदी करने की ज़रूरत पड़ने वाली है?

फ्लैशबैक में चीजों को देखा कीजिए. उस समय जो दावे आपको सुनहरे लगते थे उनकी चमक दिखाई देगी. इससे आपको अपनी बुद्धि की क्षमता पर भी गर्व होगा कि आपने यकीन किया कि नोटबंदी से ड्रग माफिया खत्म हो जाएंगे. चुनाव आयोग का एक डेटा देता हूं. 2019 के चुनावों के दौरान 1279 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया था, इसका 40 फीसदी यानी 524 करोड़ का ड्रग्स गुजरात से बरामद हुआ. ज़्यादातर ड्रग्स गुजरात और दिल्ली से ही मिला था. गुजरात ड्रग के काराबोर का सेंटर है या राजमार्ग है, इससे पहले कि ड्रग्स का नेटवर्क वहां के सिस्टम में अपनी जगह बना ले, सरकार को इसे लेकर सतर्क हो जाना चाहिए. कम से कम पंजाब के अनुभवों से सीखना चाहिए और डरना चाहिए.

यह खबर 10 नवंबर की ही है. पंजाब के मोगा ज़िले में एसपी सुरिंदर जीत सिंह मंद ने दो थानेदारों अंग्रेज़ सिंह और गुरमेज सिंह को बर्खास्त किया है. इन पर नशा तस्करों की मदद का आरोप है. नशा तस्कर स्कूल के बच्चों को अपने काम में इस्तमाल कर रहे हैं. बच्चे को नशे की लत लगवाई गई और फिर उससे इसे बेचने के काम में लगा दिया गया. इस बच्चे की नशा करते हुए तस्वीर लेकर ब्लैक मेल किया जाने लगा. इसी ने बताया कि ब्लैकमेल करने के लिए वीडियो (photo) पुलिस वाले ने बनाए हैं.

पंजाब में चुनाव आ रहे हैं, ज़ाहिर है ड्रग्स मुद्दा होगा. सुखपाल ख़ैरा आम आदमी पार्टी के विधायक थे, कांग्रेस में आ गए, आज गिरफ्तार हो गए. 2015 के ड्रग्स के मामले में ED ने गिरफ्तार किया. ED पंजाब में सक्रिय है, गुजरात में नहीं जहां 24000 करोड़ का ड्रग्स बरामद हुआ है.

पंजाब में ड्रग्स आज भी समस्या है, इसे खत्म करने के वादे के साथ कांग्रेस सत्ता में आई लेकिन ड्रग्स पकड़े जाने के उसके तमाम दावों के बाद भी ड्रग्स की सच्चाई यथावत बनी गई हुई है. इन मामलों को समझने वाले की बात में दम लगता है कि ड्रग्स का पकड़ा जाना अलग है. एक स्तर पर अच्छा लग सकता है कि पुलिस अच्छा काम कर रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सारा ड्रग्स पकड़ा जा रहा है. NCRB के आंकड़ों के अनुसार पंजाब में 2019 में NDPS के तहत 11,536 मामले दर्ज हुए थे, जो 2020 में घटकर 6,909 हो गए. करीब 7000 मामलों की यह संख्या कहीं से भी राज्य सरकार की कामयाबी की तस्वीर नहीं है. घट कर भी यह भयानक के स्तर पर है. पूरी तरह से पंजाब सरकार फेल रही है.

पंजाब में ड्रग्स का कारोबार पुलिस के नेटवर्क में भी घुस गया है. कई पुलिस अधिकारी बर्ख़ास्त किए गए हैं. ठीक इसी तरह से बिहार में शराब के अवैध कारोबार का नेटवर्क पुलिस में घुस गया है. 18 नवंबर को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में इस मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई होनी है. SIT report hai पंजाब सरकार ने अपनी तरफ से सीलबंद रिपोर्ट सौंपी है. पूर्व आईपीएस अधिकारी शशिकांत ने 2013 में जनहित याचिका दायर की थी. नौकरी में रहते हुए ही शशिकांत ड्रग्स के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे थे. इसकी सज़ा भी मिली, तबादले के रूप में तो कभी सुरक्षा हटा ली गई. शशिकांत का एक सवाल बेहद महत्वपूर्ण है. उनका कहना है कि पंजाब सरकार के पास कोई डेटा नहीं है कि ड्रग्स से कितने युवाओं की मौत हुई है, कितने लोगों ने संपत्तियां बेची हैं. इस मामले में 40 बार सुनवाई हो चुकी है और होती ही जा रही है.

इस केस में विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, पंजाब, हरियाणा, और चंडीगढ़ प्रशासन भी पार्टी हैं. जैसे आप मान कर चल रहे थे कि ड्रग्स के मामले में पंजाब नंबर वन होगा उसी तरह हम भी मान कर चल रहे थे. अभी लग ही रहा था कि गुजरात शायद पंजाब को पीछे छोड़ रहा है तभी पिछले साल का NCRB के आंकड़े पर नज़र पड़ी और पहले नंबर पर उत्तर प्रदेश का नाम दिखा. 2020 में भारत में NDPS एक्ट के तहत सबसे अधिक मामले यूपी में दर्ज हुए हैं. इनकी संख्या 10,852 है.

इसी साल सितंबर महीने में यूपी-नेपाल सीमा पर 686 करोड़ की नशीली दवाएं पकड़ी गई हैं. यूपी पुलिस ने नेपाल बार्डर पर पकड़ी थी. इनके पास से 25 लाख इंजेक्शन और 31 लाख टेबलेट भी मिली थी. अखबार ने लिखा है कि मुख्य आरोपी गोविंद गुप्ता भाग गया लेकिन रमेश गुप्ता पकड़ा गया. यह ख़बर भी इसी साल अगस्त की है. बरेली ज़िले से गांव का एक प्रधान 20 करोड़ के ड्रग्स के साथ पकड़ा गया. इस खबर में पत्रिका ने लिखा है कि एनसीआर और पश्चिमी यूपी में ड्रग्स सप्लायर के यहां पुलिस संरक्षण में ट्रकों से उतरती थी खेप. मई 2019 में दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा में 400 किलोग्राम ड्रग्स बरामद हुआ थ. भांग वगैरह था इसलिए इनकी कीमत 3 करोड़ के आस पास बताई गई थी.

ये आंकड़े यही इशारा कर रहे हैं कि देश में ड्रग्स का कारोबार फैलता ही जा रहा है. बल्कि यह बड़ा अपराध हो चुका है. तमिलनाडु और केरल में भी पांच पांच हज़ार के करीब मामले दर्ज हुए हैं.

यह तो आज की घटना है, तेलंगाना के मल्काजगिरी एक्साइज पुलिस ने 462 किलो गांजा बरामद किया है. इसकी कीमत 5 करोड़ बताई जा रही है. यहां से 3000 रुपया किलो खरीद कर मुंबई में यह 15000 किलो बिकता है. इस मामले में चार लोग गिरफ्तार हुए हैं. इस्माइल, फरीद, सचिन और बसवराजू गिरफ्तार हुए है. इन लोगों को हिन्दू मुस्लिम पोलिटिक्स का कोई टेंशन नहीं है, आराम से ये कथित रूप से गांजा बेचने के कारोबार में मस्त हैं. एक चीज़ और नोट कीजिए. आम तौर गांजा या किसी भी ड्रग्स के साथ छोटे अपराधी पकड़े जाते हैं. इनके पीछे के बड़े ख़रीदार पकड़ में नहीं आते. बिना किसी नेटवर्क के इतनी महंगी चीज़ का कारोबार नहीं हो सकता है.

गांजा, हशीश, हेरोइन, चरस, कोकीन, कई तरह के ड्रग्स होते हैं. जब हम गिरफ्तारी के आंकड़ों को देखते हैं तो देखना चाहिए कि किस तरह के ड्रग्स के मामले में गिरफ्तारी हुई है. विधि लॉ सेंटर की नेहा इस बात को लेकर सतर्क करना चाहती हैं कि ड्रग्स बरामद हुआ और गिरफ्तारी हुई, दोनों के भीतर बहुत सी बातें छिपी रहती हैं, उनकी परतों को हटा कर देखने की ज़रूरत है. किन चीज़ों की बरामदगी के नाम पर गिरफ्तारियां हुई हैं, किस तबके के लोगों की हुई हैं. नेहा ने महाराष्ट्र का अध्ययन किया है. 2014 से 2018 के बीच NDPS एक्ट के तहत हुई गिरफ्तारियों का अध्ययन किया है. ज़्यादातर गिरफ्तारियां गांजे को लेकर हुई हैं. मतलब ग़रीब लोग चपेट में आ गए. समाज में धार्मिक और अन्य कारणों से गांजा पीने का चलन भी रहा है. लेकिन ड्रग्स के ब्रैकेट में गांजे की बरामदगी और गिरफ्तारी को दिखाकर कई बार पुलिस अपनी वाहवाही करा लेती है उसे समझने की ज़रूरत है. अगर यूपी में NDPS एक्ट के तहत सबसे अधिक गिरफ्तारी हुई है तो देखना चाहिए कि ज़्यादातर गिरफ्तारियां क्या गांजे को लेकर हुई हैं?

अलग अलग एजेंसियां ड्रग्स पकड़ती रहती हैं. कभी आप सुनेंगे कि पुलिस ने पकड़ा, कभी एक्साइज पुलिस, सीमा सुरक्षा बल तो कभी NCB ने और कभी DRI ने. कई तरह की एजेंसियों के होने से क्या ड्रग्स के कारोबार का पर्दाफाश हो रहा है या इनके नाम पर पर्दा डालना आसान हो जाता है.

बहुत कुछ बदलने की ज़रूरत है. पुनर्वास केंद्रों पर तो बात ही नहीं हुई कि उनकी क्या हालत है. महिलाओं के पुनर्वास केंद्र कैसे हैं. टीवी पर डिबेट से हज-हज हंगामा होता है, बातों का कुछ पता नहीं चलता है.

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