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This Article is From Mar 27, 2017

चुनौती देती है 'आरा की अनारकली' - लहंगा भी मेरा, देह भी, 'बिलौज' भी मेरा, हाथ रखने देने का हक भी...

Dharmendra Singh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 27, 2017 12:43 pm IST
    • Published On मार्च 27, 2017 09:16 am IST
    • Last Updated On मार्च 27, 2017 12:43 pm IST
वक्त हो तो 'आरा की अनारकली' जरूर देखने जाएं. औरतों पर 'बेबाक' सिनेमा एक जोख़िम का काम है, वह भी आरा की औरत पर, 'आरा की अनारकली' पर. वह 'आरा की अनारकली' तो क्या, आरी है. आरा की आरी, जो सत्ता के रसूख से रसिक हुए 'वीर कुंवर विश्वविद्यालय' के 'भी.सी.' (वाइस-चांसलर) की उसी के घर की महफ़िल में इज़्ज़त उतारकर अपना लहंगा फहरा देती है. उसकी अपनी भाषा है, अपना परिवेश है, अपनी जीविका है, रंगीला नौटंकी कंपनी है. पूरा साज़-बाज है. गाती है, बजाती है, गालियां खाती है, और गरियाती भी है. अपनी मर्ज़ी की अनारकली है, वीसी की मर्जी की नहीं. वीसी के हाथ में 7,000 लड़कों का प्रोफाइल है, कोतवाल है, कोतवाल के पास सुखीलाल और दुखीलाल हैं. अनारकली के पास अनवर और हीरामन है. 'आरा की अनारकली' सत्ताओं के आसपास घूमती है. वह अनारकली ही बने रहना चाहती है. अपनी मर्ज़ी से... अपनी देह के साथ...

आरा भोजपुरी अंचल की कथा है. बिहार और पूर्वी यूपी की देशज जीवन शैली में नौटंकियों के ज़रिये गाने-बजाने का बड़ा चलन है. मेरीगंज फणीश्वरनाथ रेणु के 'मैला आंचल' की कथा-भूमि है. वहां भी अनारकली की तरह 'बाई' है. रंगीला नौटंकी कंपनी की तरह ही कोई महमदिया नौटंकी कंपनी है, जिसकी बाई के 'बिलौज' पर लोग टका साटते हैं. तंबाकू, धान, पाट और मिर्चा का भाव एक साल चढ़ गया, घर में ग़मी-शादी नहीं हुई तो वह तुरंत टनमना जाते हैं. यदि मालिक जवान हो, तो तुरंत औन-पौन करने लगता है. हरमुनियां, फर्श, शतरंजी, शामियाना, जाजिम, पंचलैट, पहाड़िया घोडा, शंपनी, टेबल-कुर्सी, बेंच खरीदकर ढेर लगा देता है. इससे भी जब गर्मी कम नहीं होती, तब 'बन्नूक' (बंदूक) के 'लैसन' (लाइसेंस) के लिए ऑफिसरों को 'डाली' देना शुरू करता है..."

अनार की मां भी 'बन्नूक' का शिकार हुई. दुनाली में लगे नोट को लेने में गोली मुंह के पार हो गई. सरकारी भाषा में यह हर्ष-फायरिंग है. बारातों में ठर्रा पीकर शामियाने में छेद करने की वीरोचित शैली. अनार को पुलिस पर भरोसा नहीं है. वह थाने में शो करने से मना करती है, पर बुलबुल पाण्डेय को मना कौन करे...! वह बेगार करती है. लंपट वीसी बहक जाता है. पुलिस सत्ता की सहचरी है. वह पीपली में 'भाई ठाकुर' के खिलाफ जाने पर 'नथुआ' को जुतियाती है. आरा में अनार को वीसी के 'प्रस्ताव' को न मानने पर 'रंडी' बना देती है. जनता क्लिप बना लेती है. यह ऐसी चीज़ है, जो बन गई, तो बन गई. कोतवाल ने पूरी कोशिश की, ड्यूटी निभाई. सबके फोन लेकर डिलीट की. हीरामन के भाई के फोन में बची रह गई. क्लिप इस दौर की निरपेक्ष शक्ति है. क्लिपों से बड़ी-बड़ी शक्तियां कुर्सियां बचाती हैं, गंवाती हैं. अनार के लिए उसका मूल्य एक समाजी, अदालती सबूत से अधिक नहीं है... उसे तो खुलेआम देख ही लिया गया था. उसके लिए क्लिप शक्तिहीन है. क्लिपें शक्तिशालियों को बेचैन रखती हैं.
 
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वीसी सोचता है, वह निरापद है. अनार का कचहरी में समर्पण कि तेल भी उसका, कढ़ाई भी उसकी... वह पूड़ी छाने चाहे हलुआ... वीसी को अच्छा लगता है. अनारकली टूट गई है.

'आरा की अनारकली' को वीसी समझने में गचिया जाता है. 'भय, अविवेक, असौच, अदाया...' वाली औरत. ..वह प्रोजेक्टर पर वीसी का 'खेल' कर जाती है. विजेता की मानिंद बड़े घेर वाला लहंगा फहराते हुए... तिरक्षी स्मिता के साथ मानो यह चुनौती देते हुए... यह लहंगा भी मेरा है, देह भी मेरी, बिलौज भी मेरा, हाथ रखने देने का अधिकार भी मेरा.

...आरा से केवल वीसी का ही तआल्लुक नहीं है. हीरामन भी आरा का ही है. यह बात याद रह जाती है.

निर्देशक ने कमाल किया है. स्वरा का अभिनय बेजोड़ है. संजय मिश्रा का क्या कहना... और 'हीरामन' - पड़ोस में ही कहीं होगा. 'देश की ख़ातिर एक बार फिल्म ज़रूर देखिए...'

धर्मेंद्र सिंह भारतीय पुलिस सेवा के उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी हैं...

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