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This Article is From Aug 15, 2022

दर्शकों से ‘कनेक्ट’ नहीं कर पा रहा है बॉलीवुड

Sanjay Kishore
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 15, 2022 06:47 am IST
    • Published On अगस्त 15, 2022 06:47 am IST
    • Last Updated On अगस्त 15, 2022 06:47 am IST

 ‘लाल सिंह चड्ढा'  के लिए बॉयकॉट अभियान चलाने की ज़रूरत नहीं थी, बल्कि फ़िल्म के ख़िलाफ़ प्रदर्शन से थोड़ा-बहुत फ़ायदा ही हुआ होगा. नोएडा के वेब थियेटर में  रविवार पौने एक बजे के शो में आमिर खान की चर्चित फ़िल्म ‘लाल सिंह चड्ढा' की 80 फ़ीसदी सीटें ख़ाली थीं जबकि फ़िल्म रिलीज़ हुए चार ही दिन हुए हैं.

फ़िल्म वैसे भी हिट नहीं होने वाली था, सुपर हिट की बात तो दूर है क्योंकि फ़िल्म दर्शकों से कनेक्ट नहीं कर पा रही है. अगर बॉलीवुड की बादशाहत ख़तरे में है तो इसका सबसे बड़ा कारण है कि हिन्दी फ़िल्मकार दर्शकों की नब्ज़ नहीं टटोल पा रहे हैं. जब तक आप अपने दौर के दर्शकों से कनेक्ट नहीं कर पाएँगे, उनके साथ भावनात्मक जुड़ाव नहीं बना पाएँगे, आपकी फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर धमाल नहीं मचा पाएगी.

आज भारतीय समाज मोटे तौर पर दो गुटों में बंटा हुआ है-सत्ता के अंध समर्थक या सत्ता के धुर विरोधी. आक्रामक हिंदुत्व और सहमे हुए समाज किसी को भी फ़िल्म भावनात्मक रुप से अपने साथ नहीं जोड़ पा रही है. ‘पु्ष्पा द राइज़' में अलू अर्जुन जब-‘झुकेगा नहीं साला' बोलता है तो उसके एटीड्यूड में दबंग समाज को अपनी पहचान और सहमे हुए लोगों को अपनी चाहत दीखती है. फ़िल्म में हीरो एक अपराधी है, फिर भी आप उससे नफ़रत नहीं कर पाते. फ़िल्म पैन इंडिया में सुपर हिट रही.

अस्सी के दशक में ‘एंग्री यंग मैन' के रुप में अमिताभ बच्चन क्यों इतने कामयाब हुए? अमिताभ उस दौर के नौजवानों के आक्रोश का चेहरा बने. आपातकाल के पहले का दौर था. पूंजीवाद और समाजवाद के बीच संघर्ष शुरू हो गया था. कामगार वर्ग के सपने बिखरने लगे थे. वो शोषित और ठगा हुआ महसूस कर रहे थे. तमाम नियम-क़ानून और नीतियों को अपने ख़िलाफ़ पा रहे थे. बेड़ियों और ज़ंजीरों से निकलने के लिए समाज एक बड़ा वर्ग विद्रोही बन चुका था. अमिताभ उसी वर्ग के असंतोष का चेहरा बने.

आमिर खान के स्टैंडर्ड से भी लाल सिंह चड्ढा औसत फ़िल्म है और उससे भी बड़ी बात मिस्टर परफ़ेक्शनिस्ट के अभिनय में नयापन नहीं है. ‘लाल सिंह चड्ढा' ‘पीके' की याद दिलाते हैं. उसी की तरह आँखें निकाल कर दाएँ-बाएँ गर्दन उचकाते हैं. ‘तुम्हारा कोई हक़ नहीं बनता कि तुम इतनी ख़ूबसूरत लगो' वाली करीना कपूर थकी हुई प्रतीत होती हैं. जिस ज़ीरो फ़िगर के लिए वो जानी जाती रही हैं, उसकी साया भी नज़र नहीं आ रही हैं. अगर सबसे ज़्यादा किसी ने फ़िल्म में छाप छोड़ी है तो वह है आमिर खान की माँ भूमिका में मोना सिंह.

लाल सिंह चड्ढा' 1994 की ऑस्कर विजेता हॉलीवुड फिल्म ‘फॉरेस्ट गंप' (Forest Gump) का हिंदी रीमेक है. पंजाबी युवक लाल सिंह चड्ढा और अपने बचपन का प्यार क्रिश्चन रुपा के ज़रिए भारत के पिछले 50 साल के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को दिखाने की कोशिश की गई है.लाल सिंह चड्ढा ट्रेन से पठानकोट से चंडीगढ़ जा रहा है. यात्रा के दौरान सहयात्रियों को अपनी कहानी सुना रहा है. फ़िल्म 1975 के आपातकाल से 2014 में भारतीय जनता पार्टी के सरकार बनने तक के घटनाक्रम को समेटे हुए है. 1983 के वर्ल्ड कप की ऐतिहासिक जीत, 1992 का मंडल आयोग और बाबरी मस्जिद विध्वंस, मुंबई ब्लास्ट, ऑपरेशन ब्लू स्टार, 26/11 मुंबई पर आतंकी हमला, कारगिल युद्ध और अन्ना आंदोलन के बीच लाल और रुपा की प्रेम कहानी चलती है.

फ़िल्म की कहानी सत्ता के धमक के सामने सहमी नज़र आती है.  इसमें 2002 के गुजरात का ज़िक्र नहीं है. बनारस के घाट पर कैमरा पैन करते हुए स्लो मोशन मोड में चला जाता है जब सामने एक बोर्ड लिखा नज़र आता है-अबकी बार, मोदी सरकार. वहीं 1984 के सिक्ख विरोधी दंगों को प्रमुखता से दिखाया गया है.

फ़िल्म का नायक लाल सिंह चड्ढा स्पेशल चाइल्ड है. हालाँकि उसकी माँ उसे सामान्य बच्चा मानती है और उसी तरह से परवरिश करती है. लाल बचपन में खुद को पैर से कमजोर समझता है. डॉक्टर कहता है कि उसे कोई बीमारी नहीं है, नहीं चल पाना उसके दिमाग़ की उपज है. बड़ा होकर वो हकलाने लगता है. बात थोड़ी देर से समझ पाता है. बावजूद इन सबके उसे सेना में भर्ती भी मिल जाती है और कारगिल युद्ध में चार सिपाहियों और एक आतंकी को बचा कर भी ले आता है. वह आतंकी भारत में रहने लग जाता है और शराबी हो जाता है जबकि शराब उसके धर्म में मना है. शायद आमिर खान यहाँ ‘पीके' की भारपाई करना चाह रहे हों. बाद में आमिर खान के साथ अपने कुकर्मों पर प्रायश्चित कर रहा आतंकी चड्ढी-बनिया का कारोबार खड़ा करता है और फिर अपने मुल्क लौट कर बच्चों को शिक्षा देने लगता है. कहानी का प्लॉट यहाँ आते-आते दर्शकों से नाता तोड़ चुका होता है. कहानी को लंबा खींचा गया है जो फ़िल्म को और उबाऊ बना देती है ख़ासकर आख़िर में. आमिर खान और करीना कपूर खान की शादी हो रही है तो हुए जा रही है. बच्चे को स्कूल छोड़ने वाले दृश्य की ज़रूरत नहीं थी.

फ़िल्म की सबसे अच्छी बात है लोकेशन पर जाकर की गई शूटिंग. फ़िल्म 200 दिनों तक शूट की गई  और भारत भर में 100 से अधिक स्थानों पर फिल्माई गई. ‘लाल सिंह चड्ढा' सौ लोकेशन्स पर शूट होने वाली पहली फिल्म है.पंजाब, दिल्ली, लद्दाख से लेकर दक्षिण भारत की ख़ूबसूरती के सजीवता से पर्दे पर उकेरा गया है.

जहां तक फ़िल्म के निर्देशन का सवाल है 'सीक्रेट सुपरस्टार'फ़ेम के अद्वैत चंदन की जगह ‘थ्री इडियट' और ‘पीके' के राजकुमार हिरानी के सामने नहीं ठहरते हैं. राजकुमार हिरानी शायद इस कहानी के साथ न्याय कर पाते.

बॉलीवुड एक बार फिर दर्शकों को रिझाने में असफल नज़र आ रहा है. पिछले 5 साल में सौ करोड़ कमाने वाली 10 फ़िल्मों में 6 दक्षिण भारत की हैं और 4 हिन्दी की. बॉलीवुड के पास न तो मौलिकता है और न ही कोई कहानी.

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