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This Article is From Jun 13, 2016

कैराना तय कर लो, तय करने का वक्त है!

Anurag Dwary
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 13, 2016 23:12 pm IST
    • Published On जून 13, 2016 23:12 pm IST
    • Last Updated On जून 13, 2016 23:12 pm IST
कैराना, तुम जब सुरों में ढले तो किराना बने... वही किराना जिसने "गाने वाली" गंगू को गंगूबाई का दर्जा दिया। याद है कैराना कैसे सारे रस्मो-रिवाज़ तोड़ केवट गंगूबाई तुम्हारे सुरों में बंधी 30 किलोमीटर भागी चलती आती थीं। जात, भूख-प्यास से लड़ते कैसे गंगूबाई ने भैरव, आसावरी, भीमपलासी, पूरिया-धनश्री, मारवा, केदार को साध लिया। कैराना तुमने तो भारतीय संगीत को केसरबाई भी दीं, बेगम अख्तर भी!! फिर आज क्यों तुम्हारे सुर भटक रहे हैं?? जब राग को तुमने विलंबित से समझाया तो तुम्हारी गोद में बैठकर नासमझी का ख्याल कैसे आ रहा है।

कैराना तुम्हारी पहचान ही गंगा-जमुनी तहज़ीब है। जहां बैठकर एक दरबारी गोपाल नायक सुर छेड़ता है, उन्हीं सुरों में नायक भन्नू, नायक ढोंढू से होते हुए ग़ुलाम अली, ग़ुलाम मौला सुरों का सफर उस्ताद अब्दुल करीम खान आगे लेकर बढ़े। राजे-रजवाड़ों के दरबार की चौहद्दी लांघते आपके शागिर्दों ने खयाल, ठुमरी, नाट्य संगीत और अभंग सबको साधा। फिर चाहे वो शास्त्रीय संगीत के भीम हों, हीराबाई हों या फिर मोहम्मद रफी। ध्रुपद की धमक को तुमने तोड़ा, नाट्य संगीत और भजनों को नये तेवर और नये कलेवर में सबके सामने रखा।

किराना तुम्हारी शैली में स्वर की तरफ झुकाव रहा है, तुम्हारी सारंगी सारे सुरों को लेकर चली है, तुम्हारी गायकी में लगाव, लोच खास है, तुम्हारी ख्याल शैली में ताल विलंबित भी है द्रुत भी। तुमने कभी कोई बंदिश नहीं रखी, फिर संगीत में सियासत तुम्हें बेसुरा कर दे और तुम चुप रहो!

दुनिया तुम्हें तुम्हारी रूहानी सुरीली तहज़ीब से जानती है। तुम्हारे घराने के सुर दुनिया भर में फैले हैं। तुमने हमेशा सुर और मज़हब की जुगलबंदी को नकारा। तुम्हारी गोद में उस्ताद अब्दुल वाहिद खान ने भी सुर छेड़े... सवाई गंधर्व ने भी। केसरबाई केरकर भी गाती रहीं तो गंगूबाई हंगल भी। जिस घराने को एक हिन्दू नाम ने बनाया, एक मुसलमान ने संवारा, क्या वहां की पहचान मजहब हो सकता है? किराना तय कर लो, तय करने का वक्त है! संगीत ने तुम्हें जोड़ा, क्या तुम सियासत को तोड़ने की इजाज़त दोगे? कर्ण की तरह वचन में बंधे मत रहो, फैसला करो, ये वक्त सच या झूठ के साथ सिर्फ खड़े रहने का नहीं, उसके ख़िलाफ महाभारत का है.. कवच-कुंडल दान में देने का नहीं झूठ के ख़िलाफ उसे धारण कर लड़ने का है!

कैराना घुमाओ सप्तक, आलाप, तान, गमक में घूमने वाले अपने भीमसैनी सुर को, मिलाओ तानपुरे से तबला षड्ज पर आओ और बांध लो पुराना समां। अपनी पुरानी परंपरा का सहिष्णुता वाला समां... आलाप लो, ख़याल भरो!

(अनुराग द्वारा एनडीटीवी में एसोसिएट ऐडीटर हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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