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This Article is From Jul 19, 2021

सावधान, आपके फोन में छुपा बैठा यह जासूस कौन है?

Priyadarshan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 19, 2021 22:28 pm IST
    • Published On जुलाई 19, 2021 22:28 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 19, 2021 22:28 pm IST

पत्रकारों की जासूसी नई बात नहीं है. दुनिया भर की सरकारें करती हैं. लेकिन सब करते हैं इसलिए यह नहीं समझ लेना चाहिए कि यह कोई अच्छा काम है. अंततः यह लोकतंत्र विरोधी कार्रवाई ही है. लेकिन भारत में जो कुछ हो रहा है, वह जासूसी भर नहीं है. पेगासस नाम के जिस इज़राइली उपकरण की मदद से यह जासूसी हो रही है, वह दरअसल सिर्फ दूसरों के फोन सुनने की सुविधा नहीं है, दूसरों के फोन को बिल्कुल अपने क़ब्ज़े में ले लेने की करतूत है. जो भी यह जासूसी कर रहा है, वह पूरे फोन का इस्तेमाल करने की क्षमता हासिल कर ले रहा है. यानी वह चाहे तो इस फोन से किसी को मेसेज भेज सकता है, किसी ईमेल का जवाब दे सकता है- और तो और, फोटो खींच कर और वीडियो बना कर दूसरों को भेज सकता है.

यानी यह व्यक्तिगत आज़ादी पर भयावह हमला है. आपको ख़बर नहीं है और आप नज़रबंद हैं. एक-एक लम्हा आपकी निगरानी हो रही है. यही नहीं, आपके फोन से किसी को तंग किया जा सकता है, कोई आपत्तिजनक संदेश भेजा जा सकता है या फिर आपके ही खिलाफ़ कुछ वैसे सबूत पैदा किए जा सकते हैं जैसे भीमा कोरेगांव मामले के बहुत सारे आरोपियों के कंप्यूटरों में कथित तौर पर पैदा किए गए.

लेकिन इन अंदेशों को फिलहाल छोड़ दें. यह देखें कि इस जासूसी का यथार्थ क्या है. पेगासस के ज़रिए जिन लोगों के फोन हैक किए जाने की बात आ रही है, उनकी सूची इतनी बड़ी है कि हैरान करती है. इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी ही नहीं, उनके कई कर्मचारी तक शामिल हैं. इसके अलावा प्रशांत किशोर, अभिजीत बनर्जी जैसे वे नेता शामिल हैं जो मौजूदा राजनीति में एक अलग और सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं जो बीते दिनों में बीजेपी और केंद्र सरकार के विरोध में गई है. और तो और, इस सूची में सरकार के दो मौजूदा मंत्री भी शामिल हैं- नए सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव और जल शक्ति राज्य मंत्री प्रह्लाद पटेल. सूची यहीं ख़त्म नहीं होती. इसमें 40 पत्रकार हैं जिनमें ज़्यादातर की छवि सरकार विरोधी है. द वायर, हिंदुस्तान टाइम्स और एक्सप्रेस जैसे समूहों से जुड़े नए-पुराने इन पत्रकारों की रिपोर्ट्स कभी न कभी सरकार को प्रभावित करती रही है. और तो और, पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के विरुद्ध जिस महिला ने यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी, उसके परिवार के कई लोगों के नंबर हैक किए गए हैं. यह सूची और आगे बढ़ती है जिसमें देश की जानी-मानी वायरलविज्ञानी गगनदीप कंग, एडीआर के संस्थापक जगदीप चोकर और वीएचपी के नेता प्रवीण तोगड़िया जैसे लोग शामिल मिलते हैं.

पूछा जा सकता है कि इतने सारे लोगों की जासूसी कौन करवा रहा है? एनएसओ नाम की जो कंपनी पेगासस नाम का यह उपकरण बनाती है, वह दावा करती है कि वह सिर्फ़ सरकारों और सरकारी एजेंसियों को ही यह उपकरण बेचती है. तो क्या यह काम भारत सरकार या उसकी कोई एजेंसी कर रही है? सरकार के रुख़ से लगता है जैसे वह यह साबित करना चाह रही हो कि उसने यह जासूसी नहीं की है. लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव सीधे-सीधे यह नहीं कहते. वे पेगासस की कंपनी एनएसओ का हवाला देते हुए बताते हैं कि 'इस बात के तथ्यात्मक सबूत नहीं हैं कि पेगासस का इस्तेमाल निगरानी के बराबर है.' वे यह भी कहते हैं कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक संचार को इंटरसेप्ट करने के क़ानूनी प्रावधान हैं जिनमें इसके लिए इजाज़त लेने और देने की पूरी एक व्यवस्था है. लेकिन वे यह नहीं कहते कि इस व्यवस्था के भीतर या बाहर सरकार ऐसी किसी हैकिंग में शामिल है या नहीं. सरकार यह भी नहीं बता रही कि उसने एनएसओ से पेगासस नाम के उपकरण की खरीद की है या नहीं.

सवाल है, एनएसओ अगर सरकारी एजेंसियों के बाहर किसी को यह उपकरण नहीं बेचती तो क्या किसी प्राइवेट पार्टी ने खुद को सरकारी एजेंसी बताते हुए इसे ख़रीदा होगा? दो वजहों से इसकी संभावना कम है. एक तो यह कि यह कोई सस्ता उपकरण नहीं है. 2 नवंबर 2019 को इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इसकी सालाना लाइसेंस फ़ीस सात-आठ मिलियन डॉलर की होती है. सात-आठ मिलियन डॉलर यानी कितने रुपये? 50 से 60 करोड़ रुपये. तो कौन सी प्राइवेट पार्टी ऐसा महंगा उपकरण ख़रीद कर इन तमाम नेताओं और पत्रकारों की जासूसी कराना चाहेगी? और दूसरी बात यह कि इजराइल का अपना जासूसी नेटवर्क इतना चुस्त और ख़ौफ़नाक है कि किसी ऐसी पार्टी का सरकारी एजेंसी का रूप धर कर जाना ख़तरे से ख़ाली नहीं. तो जिसे शक की सुई कहते हैं, क्या वह फिलहाल सरकार की ओर मुड़ती नहीं लग रही है. वैसे भी आखिर इन तमाम लोगों की जासूसी में किसी और की दिलचस्पी क्यों हो सकती है?

बहरहाल, अमित शाह इन आरोपों को विघटनकारी तत्वों की साज़िश बता रहे हैं. ये भरोसा दिला रहे हैं कि इनकी साज़िश के बावजूद विकास के फल ज़रूर निकलेंगे. जाहिर है, राष्ट्रवाद और विकास का यह वही नशीला मेल है जिसका बीजेपी बरसों से इस्तेमाल करती रही है और जो अब तक अचूक ढंग से उसके काम आता रहा है. हाल ही में आइटी मंत्रालय से हटाए गए बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद इसकी टाइमिंग पर सवाल खड़े कर रहे हैं, पूछ रहे हैं कि सिर्फ़ भारत को निशाने पर क्यों लिया जा रहा है.

यह फिर से या तो वाकई न जानने की हक़ीक़त है या फिर अनजान बने रहने का दिखावा और दूसरों को मूर्ख बनाने का सयानापन है. क्योंकि यह बात सबको मालूम है कि जिस पेगासस प्रोजेक्ट से ये सारी बातें सामने आ रही हैं, उसका वास्ता सिर्फ़ भारत से नहीं है. उसमें दुनिया भर के सत्रह मीडिया समूह हैं जिनमें द गार्डियन, वाशिंगटन पोस्ट और द वायर भी शामिल हैं. और यह टीम सिर्फ़ भारत के 300 नंबरों की जांच नहीं कर रही, वह लीक हुए क़रीब 50,000 नंबरों की जांच कर रही है जो दुनिया भर से हैं. यह टीम यह भी बता रही है कि इन नंबरों का होना इनके हैक किए जाने का सबूत नहीं है. लेकिन इनकी जांच में जिन नंबरों का सच सामने आ रहा है, वह रखा जा रहा है.

पेगासस के इस्तेमाल की यह सारी कार्रवाई दरअसल फिर बता रही है कि एक लोकतंत्र के रूप में हमारी जड़ों पर किस तरह का हमला हो रहा है. यह न समझें कि इसके निशाने पर सिर्फ पत्रकारिता है. बेशक, वह संभवतः पहली कतार में है, लेकिन यह कतार गिरेगी तो किसी के निजता के अधिकार सुरक्षित नहीं रह पाएंगे- धीरे-धीरे बाक़ी अधिकारों का भी नंबर आएगा.

यह सिर्फ़ इत्तिफ़ाक है कि यह सारा मामला उस दिन सामने आया, जब इस देश के लोकतंत्रपसंद नागरिक अफ़गानिस्तान के कंधार में मारे गए भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीक़ी को श्रद्धांजलि दे रहे थे, उनकी याद में मोमबत्ती जला रहे थे. पेशे के लिए जान देने का यह जुनून हम सबके हिस्से का साहस बन सके- इसकी दुआ करनी चाहिए. हैरानी की बात है कि बात-बात पर किसी की तारीफ़ और किसी के शोक में ट्वीट करने वाले मंत्रियों और प्रधानमंत्री ने दानिश सिद्दीक़ी की मौत पर एक भी संदेश देने की शालीनता तक नहीं दिखाई. क्या इसलिए कि कंधार में तालिबानी हमला दिखाने निकले इस पत्रकार ने उसके पहले देश के भीतर कोविड के कहर की तस्वीरें भी दिखाई थीं?

खैर, पेगासस के ख़ुलासे बता रहे हैं कि भारतीय पत्रकारिता पर सत्ता की एक अदृश्य तलवार लटकी हुई है. बहुत सारे लोग इस सत्ता के साथ हो चुके हैं. लेकिन बहुत सारे लोगों को अपनी स्वतंत्रता, अपने संविधान और अपने देश का आत्मसम्मान याद है जो सरकारों और उनके झूठ से बड़ा होता है. सत्ता ऐसे ही लोगों से डरती है और ऐसे ही लोगों को ठिकाने लगाने के लिए पेगासस जैसे उपकरण ख़रीदे जाते हैं.

प्रियदर्शन NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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