कबाली, कबाली, कबाली... चारों ओर यही शोर है। पहली बार सुबह 3 बजे एक फिल्म रिलीज हुई है। वजह है कि सब जानते हैं इस फिल्म को देखने के लिए बहुत लोग लाइन में हैं... लोग पंजों के बल खड़े होकर टिकट खिड़की पर लगी लाइन को अपनी आंखों के इंचिटेप से बार-बार माप रहे हैं... शायद जमीन पर इतनी भी जगह न थी कि लोग पैर पूरे टिका पाते।
उस एक थिएटर के बाहर खूब भीड़ थी। थिएटर से सटी दीवार के पास एक मैला कंबल पड़ा था। कंबल को आज जम कर लातें पड़ी हैं, पर कंबल की निगाहें भीड़ को हैरानी से देख रही हैं... वे सुन और देख रही हैं कि जिस हरे नोट के लिए वह दिन भर हाथ फैलाए घूमती हैं, कई हाथ उन्हें थिएटर के टिकट कांउटर पर देने को उतावले हैं...
वह आंखें सोच रही हैं- 'क्या वाकई किसी के पास इतना पैसा हो सकता है? क्या कोई सिर्फ एक फिल्म देखने पर इतना पैसा उड़ा देता है? ऐसे लोग आखिर कैसा खाना खाते होंगे? कपड़े तो बहुत अच्छे पहने हैं! काश किसी के हाथ से एक नोट गिर जाए!' पर उन आंखों का ये सपना क्या कभी पूरा हुआ है जो आज होगा!
भावनाओं से इतर कभी-कभी एक बात जेहन में 'रिलीज' होती है। हां रिलीज ही होती है, तभी सैंकडों करोड़ की बात बनेगी वो। आजकल आने वाली फिल्में सौ करोड़ के आंकड़े को तो ऐसे पार करती हैं, जैसे मैंने इस लेख को लिखते हुए और आपने पढ़ते हुए कई बार पलकें झपकाई हैं। जब सौ करोड़ का क्लब शुरू हुआ है, तो ऐसा लगता था मानों इस क्लब में शामिल होने के लिए फिल्मों को खासी जद्दोहजद करनी पड़ती होगी। लेकिन ये क्या... अब तो फिल्मों ने 200 करोड़, 300 और 500 करोड़ के करोबार भी कर लिए...
दर्शक अपने चहेते कलाकारों की फिल्में एक नहीं तीन-चार बार देखते हैं। कबाली की कहानी को समीक्षकों ने सराहा नहीं, लेकिन फिर भी लोग इस फिल्म को देखने के लिए उतावले हैं। सिनेमाहॉल के अंदर फिल्म को देख और समझ पाना जरा मुश्किल सा है, क्योकि प्रशंसकों का उत्साह और खुशी इतनी है कि शोर और तालियों के बीच आप फिल्म के संवाद सुन भी नहीं पाएंगे...
आप और मुझ जैसी जनता, जो चमक-दमक वाली, किसी संदेश के साथ या संदेश रहित किसी भी फिल्म को बस किसी बड़े अभिनेता का फैन होने के नाते ही देख आते हैं। अक्सर मेट्रो में, दफ्तर में लोगों के मुंह से सुना है- 'देख आते हैं यार ये फिल्म कैसी है। अच्छी या खराब।', ' चाहे फ्लॉप क्यों न हो ये फिल्म। पर आज ही देखनी है मुझे। फलां एक्टर की फिल्म मैं कैसे छोड़ सकती हूं।'
इन बातों से मैं यही अंदाजा लगा पाती हूं कि आज हमारे देश में लोगों के पास इतना पैसा तो है कि वह फिल्म और मनोरंजन क्षेत्र में आसानी से खर्च कर सकते हैं। उन्हें इसके लिए उतना सोचने की जरूरत नहीं, जितना हमारे मां-बाबा सोचते थे। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जो फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखने के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं... यकीन मानिए कुछ भी...
मैं इस लेख को ज्यादा बड़ा नहीं लिखूंगी। वजह यह है कि इस लेख से मैं आपको कुछ बताना नहीं, आपसे पूछना चाहती हूं। जरा बताएं कि हमारे देश में कितने लोग आज भी जीवन की मूल जरूरतों से वंचित हैं। घर, खाना, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से महरूम हैं। क्यों न हमारी सरकार, कोई एनजीओ, कोई व्यवसायी या कोई भी संस्था बिना ज्यादा खर्च किए हर 2,3 या 6 महीने में एक ऐसी फिल्म या डॉक्यूमेंट्री बनाए, जो उन लोगों के जीवन पर, इनकी परेशानियों पर आधारित हो। ऐसी फिल्मों को भी बड़े पैमाने पर रिलीज किया जाएं। और उन्हें हम सब देख आएं। यही सोचकर की जब हम मनोरंजन पर आधारित आधारहीन फिल्मों पर पैसा लगा सकते हैं, तो साल में 3 या 4 बार हमारे समाज और देश के विकास के उद्देश्य से बन रही किसी फिल्म को भी देख सकते हैं। क्या मेरा ऐसा सोचना कुछ गलत है... या मैं अपने देश की पढ़ी-लिखी जनता से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा रही हूं...?
इस तरह की फिल्मों के दो फायदे होंगे। एक तो देखने वालों को देश के एक तबके के हालातों के बारे में पता चलेगा। वह जमीनी हकीकत से जुड़ेगा और दूसरा और अहम, इससे आने वाले पैसे को गरीब और सुविधाहीन जनता के उद्धार में लगाया जा सकेगा। उन भूखी और बेबस आंखों के लिए हम शायद कुछ कर पाएं...
अनिता शर्मा एनडीटीवी खबर में चीफ सब एडिटर हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
इस लेख से जुड़े सर्वाधिकार NDTV के पास हैं। इस लेख के किसी भी हिस्से को NDTV की लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इस लेख या उसके किसी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किए जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
This Article is From Jul 23, 2016
'कबाली' के लिए ऐसा क्रेज ठीक है, पर इस क्रेज की जरूरत कहीं और है...
Anita Sharma
- ब्लॉग,
-
Updated:जुलाई 23, 2016 15:00 pm IST
-
Published On जुलाई 23, 2016 13:49 pm IST
-
Last Updated On जुलाई 23, 2016 15:00 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं