भारतीय सिनेमा के इतिहास में युग पुरुष का दर्जा रखने वाले और हिंदी सिनेमा को नया रूप देने वाले अमिताभ बच्चन ने भोजपुरी सिनेमा में भी काम किया है. वह भी पुराने और नए दोनों दौर की फिल्मों में. यह बात बहुत कम लोग को पता है.देश के दिल पर राज करने वाले सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. वे इस साल अपना 83वां जन्मदिन मना रहे हैं. अमिताभ ने 1969 में फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' से अपने फिल्मी करिअर की शुरुआत की, लेकिन 1973 में आई फिल्म 'जंजीर' में पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका ने उन्हें 'एंग्री यंग मैन' का तमगा दिलाया. इसके बाद 'दीवार' और 'शोले' जैसी फिल्मों ने उन्हें एक सशक्त अभिनेता के रूप में स्थापित कर दिया. यह तो सब जानते हैं, परंतु बहुत कम लोग को पता है कि अमिताभ बच्चन को भोजपुरी फिल्मों में लाने वाले अभिनेता सुजीत कुमार थे.
सुजीत कुमार और 'पान खाए सइयां हमार'
बतौर निर्माता-निर्देशक सुजीत कुमार ने 1984 में आई भोजपुरी फिल्म 'पान खाए सइयां हमार' बनाई, जो सुपरहिट साबित हुई. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और रेखा की जोड़ी गेस्ट अपीयरेंस में थी. यह रेखा की पहली और आखिरी भोजपुरी फिल्म थी. सुजीत कुमार भोजपुरी सिनेमा के पहले सुपरस्टार माने जाते हैं. 1963 में आई फिल्म 'बिदेसिया' से वे भोजपुरी सिनेमा से बतौर नायक जुड़े. पहली रंगीन भोजपुरी फिल्म 'दंगल' में भी वे नायक थे. 'आराधना' (राजेश खन्ना के साथ) से उनका करियर बॉलीवुड में चमका, लेकिन वे स्थापित हुए भोजपुरी सिनेमा में ही.
साल 2002 में मैंने सुजीत कुमार के मुंबई स्थित आवास पर उनका लंबा साक्षात्कार किया था. उसके बाद उनके साथ मेरा आत्मीय संबंध बन गया. अपने होम प्रोडक्शन की फिल्म 'एतबार' के सेट पर भी वे मुझे ले गए और वहां अमिताभ बच्चन से परिचय कराया. परिचय ही नहीं, मैंने उस सेट पर शूटिंग के अवकाश के दौरान अमिताभ जी का साक्षात्कार भी किया. यह बात 22 दिसंबर 2002 से 10 जनवरी 2003 के बीच की है, जब सुजीत कुमार 'एतबार' फिल्म बना रहे थे, जिसमें अमिताभ बच्चन, जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु मुख्य भूमिकाओं में थे. विक्रम भट्ट इसके निर्देशक थे. सेट पर सुजीत कुमार के बेटे जतिन कुमार और बेटी हीना भी उपस्थित थीं. जतिन ही उस फिल्म के निर्माता थे. अमिताभ बच्चन और सुजीत कुमार का वह इंटरव्यू मेरी किताब 'भोजपुरी सिनेमा के संसार' में प्रकाशित है.

अभिनेता सुजीत कुमार से दोस्ती की वजह से अमिताभ बच्चन भोजपुरी फिल्मों में आए थे.
अमिताभ बच्चन और सुजीत कुमार की दोस्ती
सुजीत कुमार ने मुझे अपनी कई फिल्मों 'बिदेसिया', 'दंगल', 'गंगा घाट', 'पान खाए सइयां हमार', 'गंगा कहे पुकार के', 'गंगा जइसन भउजी हमार', 'गंगा हमार माई', 'चम्पा चमेली', 'पतोह बिटिया', 'बैरी सावन', 'सजनवा बैरी भइले हमार', 'कब होइहें गवनवा हमार', 'भौजी', 'नागपंचमी', 'गंगा', 'सइयां से भइले मिलनवा', 'आइल बसंत बहार', 'बिधना नाच नचावे', 'लोहा सिंह', 'माई के लाल', 'संपूर्ण तीर्थयात्रा', 'सजाई द मांग हमार', 'सइयां मगन पहलवानी में' आदि के बारे में विस्तार से बताया था.
उन्होंने यह भी बताया था कि अपनी दोस्ती के कारण ही अमिताभ बच्चन उनकी भोजपुरी फिल्म में काम करने के लिए तैयार हुए. 'पान खाए सइयां हमार' में अमिताभ ने एक लठैत की जोशीली भूमिका निभाई है. फिल्म में उनके और सुजीत कुमार के बीच लाठी का शानदार द्वंद्व (लठैती) होता है, जिसमें अमिताभ जान-बूझकर हार जाते हैं.
इस फिल्म में रेखा पर एक गीत फिल्माया गया था, 'दिल देबै ना हम नज़राना में, चाहे रपट लिखाय द थाना में.'
इस गाने में रेखा के साथ सुजीत कुमार और रंजीत भी थे.
भोजपुरी फिल्मों में अमिताभ बच्चन का दूसरा दौर
नब्बे के दशक में भोजपुरी फिल्मों का निर्माण लगभग बंद हो गया था. एल्बमों का दौर शुरू हो गया था. लेकिन 2001–02 से भोजपुरी सिनेमा का नया (आधुनिक) दौर प्रारंभ हुआ. इसी दौर में अमिताभ बच्चन ने तीन भोजपुरी फिल्मों 2006 में आई 'गंगा', 2007 में आई 'गंगोत्री' और 2012 में आई 'गंगा देवी'. इन तीनों फिल्मों के निर्माता अमिताभ के मेकअप आर्टिस्ट दीपक सावंत थे. एक इंटरव्यू में सांसद-अभिनेता मनोज तिवारी ने बताया था कि 'गंगा' के लिए अमिताभ बच्चन ने कोई फीस नहीं ली थी.
गंगा: अमिताभ बच्चन की दीपक सावंत के साथ पहली भोजपुरी फिल्म. इसमें उन्होंने ठाकुर विजय सिंह का किरदार निभाया. हेमा मालिनी ठकुराइन सावित्री के रोल में थीं. नगमा, रवि किशन और मनोज तिवारी जैसे सितारे भी शामिल थे. फिल्म ने रिकॉर्डतोड़ कमाई की. नगमा को इसके लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला.
गंगोत्री: 'गंगा' की सफलता के बाद अमिताभ ने इसके सीक्वल 'गंगोत्री' में काम किया. उन्होंने फिर ठाकुर विजय सिंह की भूमिका निभाई. हेमा मालिनी, मनोज तिवारी, भूमिका चावला और अरुणा ईरानी इसमें प्रमुख भूमिकाओं में थे. इस फिल्म ने भी सफलता के नए रिकॉर्ड बनाए.

अमिताभ बच्चन की पहली भोजपुरी फिल्म का नाम 'पान खाए सइयां हमार' था.
गंगा देवी: लंबे अंतराल के बाद अमिताभ बच्चन ने दीपक सावंत की फिल्म 'गंगा देवी' में काम किया. यह उनकी आखिरी भोजपुरी फिल्म थी. इसमें जया बच्चन ने अमिताभ की पत्नी का किरदार निभाया. फिल्म में पाखी हेगड़े, गुलशन ग्रोवर और निरहुआ (दिनेश लाल यादव) भी थे. निरहुआ ने अमिताभ बच्चन के बेटे की भूमिका निभाई.
अमिताभ पर फिल्माए गए भोजपुरी गीत
फिल्म 'गंगा' में छठ गीत 'माई हे बाबूजी कहस छठिया करबे करब' में अमिताभ फीचर हुए हैं, जिसमें नगमा और रवि किशन भी हैं. 'गंगोत्री' में गीत 'नई सड़क बाजार से हड़िया लइली तीन' अमिताभ बच्चन और मनोज तिवारी पर फिल्माया गया है. 'गंगा देवी' के दो गीत 'नीक लागे खेत-खरिहान' और होली गीत 'बरसेला रंग फगुनवा में' अमिताभ, जया बच्चन, निरहुआ और पाखी हेगड़े पर फिल्माए गए हैं. अचरज की बात यह है कि इतने बड़े सितारे के होने के बावजूद इन गीतों में से कोई भी जनमानस की जुबान पर नहीं चढ़ सका.
वैसे तो हिंदी फिल्मों में भी भोजपुरी स्वाद वाले गीतों पर अमिताभ ने इतिहास रचा है. अंजान द्वारा लिखा ‘डॉन' का गीत 'खइके पान बनारसवाला, खुल जाए बंद अकल का ताला… छोरा गंगा किनारेवाला…' कल्याणजी–आनंदजी की धुन पर किशोर कुमार की आवाज में अमिताभ बच्चन की पहचान का गीत बन गया. इसके बाद लोग उन्हें 'छोरा गंगा किनारे वाला' कहने लगे. इसी तरह, 2003 की फिल्म 'बागबान' का प्रसिद्ध होली गीत 'होली खेले रघुवीरा' भी भोजपुरिया छौंक लिए हुए है. वस्तुतः यह पारंपरिक भोजपुरी फगुआ गीत है, जिसे नए रूप में प्रस्तुत किया गया है. यह गीत अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी पर फिल्माया गया है.
कवि सुमित्रानंदन पंत ने दिया था अमिताभ नाम
बचपन में इंकलाब नाम के एक बालक जब प्रसिद्ध हिंदी कवि सुमित्रानंदन पंत के संज्ञान में आए, तो उन्होंने उसका नाम अमिताभ रखा, अर्थात् अनंत, असीम आभा वाला, यानी ऐसा व्यक्तित्व, जिसकी चमक खो नहीं सकती और प्रभाव मिट नहीं सकता. और हुआ भी ऐसा ही. अमिताभ भारतीय फ़िल्म-जगत् के आकाश में एक ऐसी असीम-अमिट आभा बन गए हैं, जो आज भी दमक रही है.
दरअसल, प्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन और तेजी बच्चन के प्रथम पुत्र का नामकरण उनके कवि-मित्र पंत जी ने किया था. अमिताभ के छोटे भाई का नाम अजिताभ है. अमिताभ जी का वास्तविक उपनाम श्रीवास्तव है, किंतु उनके पिता हरिवंशराय जी जाति-प्रथा के कट्टर विरोधी थे. उन्होंने अपना तखल्लुस ‘बच्चन' रखा, जिसका अर्थ होता है 'बच्चे जैसा'. अमिताभ ने भी अपने पिता के पदचिह्नों पर चलना चुना. वे कहते हैं, ''मेरे बाबूजी बच्चों जैसा कोमल हृदय रखते थे, और मैं भी अपने भीतर के बच्चे को जीवित रखने की कोशिश करता हूं.''

अमिताभ बच्चन की पिछली भोजपुरी फिल्म 'गंगा देवी' थी. यह फिल्म 2012 में आई थी.
कहां है अमिताभ बच्चन का पुश्तैनी गांव
अमिताभ बच्चन का पुश्तैनी गांव उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले की रानीगंज तहसील का बाबूपट्टी है. उनके घर की बोली हिंदी और अवधी रही. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के बोर्डिंग स्कूल से प्राप्त की और फिर दिल्ली के किरोड़ी मल कॉलेज से स्नातक किया. पिता ने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर से परामर्श लिया कि उनका बेटा फिल्म या रंगमंच में जाए या नहीं. कपूर साहब ने कोई विशेष उत्साह नहीं दिखाया. अमिताभ ने आकाशवाणी, दिल्ली में वॉयस ऑडिशन दिया, परंतु अस्वीकृत कर दिए गए. इसके बाद उन्होंने कलकत्ता की बर्ड एंड कंपनी में नौकरी की.
मां की इच्छा थी कि बेटा प्रसिद्धि के क्षेत्र में जाए, इसलिए उन्होंने प्रेरित किया. मां की प्रेरणा से अमिताभ ने रंगमंच से जुड़ाव बढ़ाया. वे अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में भी सक्रिय रंगकर्मी थे.
साल 1969 में फिल्म 'भुवन शोम' के नैरेशन (वॉयस ओवर) का अवसर मिला, जिसे मृणाल सेन ने निर्देशित किया था. उसी वर्ष उन्हें 'सात हिंदुस्तानी' में भूमिका मिली, जिसने उन्हें फिल्म जगत में पहचान दिलाई. 1971 में फिल्म 'आनंद' में डॉक्टर का किरदार निभाने पर उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. 'गुड्डी' और 'रेशमा और शेरा' जैसी फिल्मों में छोटी भूमिकाओं के बाद उन्होंने 'बॉम्बे टू गोवा' में प्रमुख भूमिका निभाई. फिर 'जंजीर', 'शोले', 'कूली', 'डॉन' जैसी फिल्मों से वे हिंदी सिनेमा के शिखर पर पहुंच गए और आज अमिताभ बच्चन न केवल हिंदी सिनेमा के बल्कि भारतीय सिनेमा के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व हैं. उन्होंने भोजपुरी फिल्मों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और भोजपुरी संस्कृति के सम्मान को भी नई ऊंचाई दी.
भारतीय सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन जी को उनके जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
अस्वीकरण: लेखक मनोज भावुक भोजपुरी साहित्य-सिनेमा के जानकार हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.