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This Article is From Feb 10, 2016

वशंवाद के प्रतीक राजनीति की कसौटी पर खरे साबित हुए?

Abhigyan Prakash
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 10, 2016 12:53 pm IST
    • Published On फ़रवरी 10, 2016 11:40 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 10, 2016 12:53 pm IST
वंशवाद की बहस सियासत में अब लगभग ख़त्म हो चुकी है। वजह साफ़ है कि लगभग सभी राजनीतिक विचारधाराओं के नेताओं ने वंशवाद को ज़बरदस्त बढ़ाया है।

समाजवाद से नेता बने समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव इस मामले कोई अलग नहीं हैं। मुलायम सिंह यादव ने भी अपनी राजनीति में पुत्र प्रेम और परिवारवाद को चरम सीमा तक पहुंचाया। नतीजा था 2012 में अखिलेश यादव का मुख्यमंत्री बनना। इस बात के बावजूद की उन चुनावों में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर आगे नहीं किया गया था।

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये वशंवाद के प्रतीक राजनीति की कसौटी पर खरे साबित हुए है। आज भी अखिलेश यादव के कार्यकाल को लेकर सवाल उठते हैं और भले ही अखिलेश यादव हर नेता की तरह सरकारी विज्ञापनों के ज़रिए कितनी भी वाहवाही खुद की करें, लेकिन जनता की कसौटी पर उनके नेतृत्व का सवाल बना हुआ है।

यही वजह है कि जब-जब क़ानून-व्यवस्था का मसला आता है प्रहार सीधे अखिलेश यादव पर होता है और साथ में ये भी कहा जाता है कि क्या मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को पूरी तरह से एक मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने का मौका दिया या परिवार के बाकी सदस्यों की जकड़न से अखिलेश यादव बाहर नहीं निकल पाए। अब 2017 का विधानसभा चुनाव ये साबित करेगा कि क्या एक समाजवादी नेता के वंशवादी प्रयोग का सफल अंजाम हुआ या नहीं।

(अभिज्ञान प्रकाश एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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