बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के साथ अब ये रुटीन बनता जा रहा है कि नीति आयोग की कोई रिपोर्ट आती है तो उनके राज्य की रैंकिंग नीचे से कुछ राज्यों में होती है. स्वास्थ्य सेवाओं की ताज़ा रैंकिंग में बिहार पूरे देश में प्रति एक लाख व्यक्ति पर 22 बेड के मानक पर मात्र छह बेड की सुविधा उपलब्ध कराने के आधार पर सबसे फिसड्डी साबित हुआ है और नीतीश कुमार ने कहा है कि इस अध्ययन को वो सही नहीं मानते.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास से मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर हड्डी के उपचार के लिए जेपी अस्पताल स्थित है. वार्ड में एसी और पंखे दोनों लगे हैं लेकिन खराब हैं. मरीज और सम्बंधी एक बेड पर. बेड भी टूटा फूटा. और गर्मी से परेशान लोग घर से पंखा भी लेके आये हैं.
हालांकि, सुविधाओं के अभाव में भी मरीजों की संख्या में कोई कमी नहीं है और अस्पताल में भले पानी की मशीन खराब पड़ी है लेकिन सीटी स्कैन की मशीन काम कर रही है और प्रबंधन का मानना है कि ऑपरेशन के लिए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है.
अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर सुभाष चंद्रा कहते हैं, 'हमारे यहां दो ही ओटी हैं जिसके कारण मरीज़ों का वेटिंग टाइम बढ़ जाता है.'
हालांकि, राजधानी पटना के बाहर नवादा के सदर अस्पताल, जो हमेशा कुछ ना कुछ वायरल वीडियो के कारण चर्चा में रहता है, वहां भी वार्ड के अंदर स्थिति बदहाल है. नीति आयोग ने पिछले हफ़्ते एक रिपोर्ट में माना था कि बिहार की स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत ठीक नहीं और राज्य में प्रति एक लाख व्यक्ति पर मात्र छह बेड हैं जबकि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ये बीस बेड प्रति एक लाख की जनसंख्या हैं.
लेकिन नीतीश कुमार इसे नहीं मानते. वो कहते हैं, 'कभी यहां के लोग जो काम कर रहे हैं उनके बारे में जानना चाहिए, लेकिन एगो कोई चीज़ ले लेगा. ये स्पष्ट अध्ययन नहीं है. इसका उतर भी दिया जायेगा.'
नीतीश जो भी बचाव करें लेकिन बिहार के स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की अभी बहुत ज़रूरत है जिसका प्रमाण हैं कि कोरोना काल में वो चाहे मंत्री हो या विधायक या अधिकारी, सब अपना इलाज AIIMS में करवाना अधिक पसंद करते थे.
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