
- भारत को अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ाने के लिए चीन के साथ अच्छे संबंध बनाने चाहिए.
- भारत को चीन के साथ मैन्युफैक्चरिंग साझेदारी भी बनाए रखनी होगी.
- चीन-पाकिस्तान के करीबी संबंधों के कारण भारत-चीन संबंधों में तनाव की स्थिति भी बनी हुई है.
नीति आयोग के पूर्व प्रमुख और जी20 के शेरपा अमिताभ कांत ने कहा है कि भारत को चीन समेत सभी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने चाहिए. कांत ने आज शाम एनडीटीवी को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा, "अगर भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ाना चाहता है, तो बीजिंग के साथ अच्छे संबंध ज़रूरी हैं, क्योंकि वो एक प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग पार्रटनर हैं." उन्होंने कहा, "हमें इनपुट्स, कंपोनेंट्स और भविष्य में वैश्विक निर्माता बनने के लिए इनमें से कुछ कंपनियों के साथ काम करने की ज़रूरत है."
अमिताभ कांत की यह टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए बीजिंग यात्रा से पहले आई है - जो गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद पहली यात्रा है. यह यात्रा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कड़े टैरिफ लगाए जाने और रूस से तेल खरीद को लेकर भारत पर बढ़ते दबाव के बीच हो रही है. ऐसी उम्मीद है कि इन परिस्थितियों में, चीन के साथ संबंधों में सुधार अमेरिका के लिए एक संतुलनकारी कारक साबित होगा.
हालांकि, कांत ने संकेत दिया कि इसके बिना भी, चीन के साथ घनिष्ठ संबंध भारत के विकास में योगदान देंगे.
अमेरिका के साथ चीन भी जरूरी
कांत ने कहा, "मुझे लगता है कि वैश्विक जीडीपी पर नज़र डालना ज़रूरी है." अमेरिका की वैश्विक जीडीपी में लगभग 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है. चीन की हिस्सेदारी लगभग 18 से 19 प्रतिशत है और यूरोप, जिसकी हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत थी, घटकर 17 प्रतिशत रह गई है.
अमेरिका एकमात्र ऐसा देश है, जिसने 26 प्रतिशत जीडीपी बरकरार रखी है, मुक्त व्यापार का वह लाभार्थी रहा है, जिसका बाजार पूंजीकरण 46 प्रतिशत है और जिसकी जनसंख्या केवल 4 प्रतिशत है. लेकिन इस पोस्ट-इंडस्ट्रियल समाज ने भी जानबूझकर अपने मैन्युफैक्चरिंग कार्य चीन को आउटसोर्स किए हैं. उन्होंने कहा, "अगर आप अमेरिका की शीर्ष 20 मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों पर नज़र डालें, तो उनकी सभी शीर्ष कंपनियों ने अपने 90 से 95 प्रतिशत से ज़्यादा मैन्युफैक्चरिंग कार्य चीन को आउटसोर्स किए हैं." उन्होंने आगे कहा, "अगर हमें अमेरिका के साथ काम करना है, क्योंकि वो एक बड़ा वैश्विक बाज़ार है, तो हमें चीन के साथ भी काम करना होगा, क्योंकि वो एक प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग साझेदार है... हमें इनपुट्स हासिल करने होंगे, हमें कंपोनेंट्स हासिल करने होंगे, हमें भविष्य में वैश्विक निर्माता बनने के लिए इनमें से कुछ कंपनियों के साथ काम करना होगा."
चीन-पाकिस्तान की दोस्ती टेंशन
चीन पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त है, और पहलगाम हमले के बाद भारत को उसका समर्थन संदिग्ध रहा है. जून में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ के तहत रक्षा मंत्रियों की बैठक में एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि इसमें 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का कोई ज़िक्र नहीं था, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी. इसके बजाय, बलूचिस्तान का ज़िक्र किया गया था और भारत पर वहां अशांति फैलाने का मौन आरोप लगाया गया था.
पहलगाम को शामिल न करने का फ़ैसला पाकिस्तान के इशारे पर लिया गया था. हालांकि, अगले महीने चीन ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक कड़ा बयान जारी किया, जब अमेरिका ने पहलगाम हमले में शामिल होने के लिए पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के एक प्रतिनिधि, द रेजिस्टेंस फ्रंट को एक विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया.
लद्दाख और अरुणाचल में सीमा पर चीनी सैनिकों के साथ झड़पों का इतिहास भी रहा है, जिसकी परिणति 2020 में गलवान में हुई झड़प के साथ हुई थी - जिससे नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंधों में भारी खटास आ गई थी.
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