
- पटना बिहार की राजनीति का केंद्र है जहां विधानसभा चुनाव के नजदीक आने पर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं.
- लालू यादव की सक्रियता में कमी और नीतीश कुमार के अंतिम राजनीतिक चरण में होने से बिहार की विरासत बदल रही है.
- तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और प्रशांत किशोर नए चेहरे हैं जो आगामी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
बिहार की राजधानी पटना, सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति की धड़कन है. यहां की हवा में ही राजनीति घुली हुई है. आप किसी भी गली-नुक्कड़ पर चले जाएं, चाहे वो चाय की दुकान हो, पान का खोखा हो, या कोई ठेला, हर जगह लोग किसी न किसी राजनीतिक चर्चा में डूबे मिलेंगे. इस शहर की खासियत यह है कि यहीं से बिहार की सियासत की दशा और दिशा तय होती है. जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, पटना की रौनक और भी बढ़ गई है.
सफेद कुर्ता-पजामा पहने नेताओं और उनके समर्थकों की भीड़ ने हर जगह डेरा डाल दिया है. ये वे लोग हैं, जो टिकट के लिए पटना दरबार में अपनी हाजिरी लगा रहे हैं. फिलहाल चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन लोगों को बेसब्री से इंतजार है. वे टिकटों की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं ताकि यह तय कर सकें कि उनका उम्मीदवार कौन होगा और किसे वोट देना है. बिहार के दिल में क्या है, ये जानने-समझने के लिए NDTV इंडिया के मैनेजिंग एडिटर मनोरंजन भारती बिहार पहुंचे हैं.
पुराने युग का अंत और नई विरासत की तलाश
पटना के लोगों से बात करें तो पता चलता है कि यह चुनाव कई मायनों में अलग है. यह एक ऐसे दौर में हो रहा है, जब बिहार की राजनीति में एक युग का अंत हो रहा है. लालू यादव अब पहले की तरह सक्रिय नहीं हैं. रामविलास पासवान हमारे बीच नहीं रहे. वहीं, नीतीश कुमार, जिन्होंने बिहार की सूरत बदल दी और लंबे समय तक राज किया, अब अपनी राजनीतिक पारी के अंतिम चरण में हैं. हालांकि, उनके प्रति जनता में एक तरह की फैटिक (थकान) भी देखने को मिल रही है. लोगों का मानना है कि लालू यादव को सामाजिक न्याय और सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ने वाले नेता के तौर पर हमेशा याद किया जाएगा. लेकिन अब चर्चा इस बात की है कि बिहार की राजनीति की अगली विरासत किसके हाथों में होगी.
X फैक्टर: नए चेहरे, बदलते समीकरण
युवा नेताओं में तेजस्वी यादव ने अपनी जगह बना ली है. उन्हें राहुल गांधी का भी साथ मिल रहा है, जो उनकी स्थिति को और मजबूत करता है. वहीं, चिराग पासवान ने लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन विधानसभा में उन्हें अपनी ताकत साबित करनी बाकी है. पिछली बार वे अकेले लड़े थे और सिर्फ एक सीट जीत पाए थे.
इस चुनाव में एक और नया और दिलचस्प चेहरा है- प्रशांत किशोर. लोग उन्हें बिहार की राजनीति का एक्स फैक्टर मान रहे हैं. उनकी पार्टी भले ही नई हो, लेकिन उन्होंने चुनाव को काफी रोचक बना दिया है. प्रशांत किशोर को एक बेहतरीन रणनीतिकार माना जाता है, लेकिन यह चुनाव उनके लिए एक अग्निपरीक्षा है. यह तो वक्त ही बताएगा कि वे कितना सफल होते हैं, लेकिन उनकी चर्चा हर जगह है. चिराग पासवान के भी अपने समर्थक हैं. लोग उनके बारे में भी बात करते हैं, लेकिन कई लोगों का मानना है कि वे अभी मुख्यमंत्री की रेस में नहीं हैं.
NDA का समीकरण और BJP की चुनौती
NDA गठबंधन की बात करें तो बीजेपी और जदयू का गठबंधन मजबूत तो है, लेकिन बीजेपी के सामने एक बड़ी चुनौती है. बिहार में बीजेपी के पास नीतीश कुमार जैसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है, और वे नीतीश कुमार को छोड़ भी नहीं सकते. यही वजह है कि लोग कहते हैं कि बीजेपी बिहार में इंजन बनने की जगह डिब्बा बनी हुई है. बीजेपी को डर है कि अगर उन्होंने नीतीश कुमार को नाराज किया, तो कहीं वे फिर से लालू यादव के साथ न चले जाएं.
कुल मिलाकर, पटना के लोग अभी भी तेजस्वी, चिराग, प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार के बारे में बात करते हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक यह तय नहीं किया है कि वोट किसे देना है. जनता अभी शांत है और सभी को देख रही है. असली राजनीति तब शुरू होगी, जब टिकटों का बंटवारा होगा. जैसा कि गांधी मैदान में सुबह टहलने वाले एक शख्स ने कहा, 'क्या पता इस बार विधानसभा त्रिशंकु हो जाए और कोई किंगमेकर बने, कोई किंग.' यह चुनाव वाकई दिलचस्प होने वाला है.
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