उपेंद्र कुशवाहा ने छोड़ा एनडीए का साथ.
- उपेंद्र कुशवाहा ने छोड़ा NDA का साथ
- केंद्रीय मंत्रिमंडल और लोकसभा की सदस्यता से भी दिया इस्तीफा
- उन्होंने पीएम मोदी को एक खत भी लिखा है
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पटना:
उपेन्द्र कुशवाहा ने आख़िरकार केंद्रीय मंत्रिमंडल और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. उनके इस्तीफे के साथ ही पिछले कुछ महीनों से उनके बारे में लगाये जा रहे सभी अटकलों पर अब विराम लगा जायेगा. लोकसभा सत्र के एक दिन पहले ख़ासकर चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम का इंतज़ार किए बिना इस्तीफ़ा देकर कुशवाहा ने निश्चित रूप से इस बात का संकेत दिया है कि लोकसभा चुनाव और उसके बाद बिहार के विधानसभा चुनावों में वो अब एनडीए के साथ नहीं बल्कि नीतीश कुमार को सता से बेदखल करने के अपने लक्ष्य पर काम करते दिखेंगे. कुशवाहा ने इस संबंध को पीएम मोदी को एक पत्र भी लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि मैं जबरदस्त आशा और उम्मीदों के साथ आपके नेतृत्व में एनडीए का साथ पकड़ा था. 2014 को लोकसभा चुनाव में आपने बिहार के लोगों से जो भी वादे किए थे, उसी को देखते हुए मैंनै अपना समर्थन बीजेपी को दिया था.
केंद्रीय मंत्री और आरएलएसपी नेता उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए से दिया इस्तीफा
फिलहाल, तेजस्वी यादव जो महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, उनके अगुवाई में राजनीति करने के लिए तैयार हैं. कुशवाहा का ये राजनीतिक दांव कितना सटीक बैठता है, वो लोकसभा चुनाव का परिणाम और विधानसभा चुनाव के नतीजों से ही पता चलेगा. फिलहाल उनके जाने का नफा-नुक़सान का आकलन जारी है. जहां, भाजपा और जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का मानना हैं कि उन्हें इस बात का भरोसा कुशवाहा के रूख और तेवर से लग गया था कि वो अब लालू और तेजस्वी यादव के साथ राजनीति करना चाहते हैं.
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दरअसल, जबसे नीतीश कुमार भाजपा के साथ जुलाई 2017 में आये, तबसे ही कुशवाहा खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे थे. उन्हें या तो विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद ही लग रहा था कि भाजपा उन्हें कुशवाहा समाज का नेता नहीं मानती. विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा का मानना था कि कुशवाहा समाज का 70 प्रतिशत वोट नीतीश कुमार के नाम पर महागठबंधन को मिला. वहीं, NDA को उन्हीं सीटों पर इस समाज का वोट मिला जहां इस जाति के उम्मीदवार थे.
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लेकिन नीतीश कुमार वाले एनडीए में आने के बाद भाजपा इस बात को लेकर आश्वस्त हो चली है कि उपेन्द्र कुशवाहा भले लालू के साथ चले जाए, लेकिन इस समाज का अधिकांश वोट उन्हीं के साथ रहेगा. हालांकि, वो मानते हैं कि महागठबंधन को भी कुशवाहा जाति के लोगों का वोट निश्चित रूप से मिलेगा. लेकिन समाज में यादव विरोधी होने के कारण शायद उपेन्द्र कुशवाहा पूरा वोट जैसे लालू यादव जाति का या रामविलास पासवान पासवान जाति का या नीतीश कुमार अपने कुर्मी जाति के अलावा अधिकांश अति पिछड़ी जातियों का वोट ट्रांसफर कराते हैं, वैसा कुशवाहा ये करा पायेंगे इस पर संदेह है.
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वहीं, महागठबंधन के नेता मानते हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा के साथ आने से निश्चित रूप से उनका गठबंधन और मज़बूत हुआ है. कुशवाहा ना केवल अपने नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ आक्रामक रूप के कारण तेजस्वी यादव के साथ काफी कारगर साबित होंगे, बल्कि अब कुशवाहा वोटरों में बिखराव का फायदा आखिकार एनडीए से ज्यादा आगामी लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के उमीदवारों को होगा.
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फिलहाल, तेजस्वी यादव जो महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, उनके अगुवाई में राजनीति करने के लिए तैयार हैं. कुशवाहा का ये राजनीतिक दांव कितना सटीक बैठता है, वो लोकसभा चुनाव का परिणाम और विधानसभा चुनाव के नतीजों से ही पता चलेगा. फिलहाल उनके जाने का नफा-नुक़सान का आकलन जारी है. जहां, भाजपा और जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का मानना हैं कि उन्हें इस बात का भरोसा कुशवाहा के रूख और तेवर से लग गया था कि वो अब लालू और तेजस्वी यादव के साथ राजनीति करना चाहते हैं.
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दरअसल, जबसे नीतीश कुमार भाजपा के साथ जुलाई 2017 में आये, तबसे ही कुशवाहा खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे थे. उन्हें या तो विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद ही लग रहा था कि भाजपा उन्हें कुशवाहा समाज का नेता नहीं मानती. विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा का मानना था कि कुशवाहा समाज का 70 प्रतिशत वोट नीतीश कुमार के नाम पर महागठबंधन को मिला. वहीं, NDA को उन्हीं सीटों पर इस समाज का वोट मिला जहां इस जाति के उम्मीदवार थे.
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लेकिन नीतीश कुमार वाले एनडीए में आने के बाद भाजपा इस बात को लेकर आश्वस्त हो चली है कि उपेन्द्र कुशवाहा भले लालू के साथ चले जाए, लेकिन इस समाज का अधिकांश वोट उन्हीं के साथ रहेगा. हालांकि, वो मानते हैं कि महागठबंधन को भी कुशवाहा जाति के लोगों का वोट निश्चित रूप से मिलेगा. लेकिन समाज में यादव विरोधी होने के कारण शायद उपेन्द्र कुशवाहा पूरा वोट जैसे लालू यादव जाति का या रामविलास पासवान पासवान जाति का या नीतीश कुमार अपने कुर्मी जाति के अलावा अधिकांश अति पिछड़ी जातियों का वोट ट्रांसफर कराते हैं, वैसा कुशवाहा ये करा पायेंगे इस पर संदेह है.
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वहीं, महागठबंधन के नेता मानते हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा के साथ आने से निश्चित रूप से उनका गठबंधन और मज़बूत हुआ है. कुशवाहा ना केवल अपने नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ आक्रामक रूप के कारण तेजस्वी यादव के साथ काफी कारगर साबित होंगे, बल्कि अब कुशवाहा वोटरों में बिखराव का फायदा आखिकार एनडीए से ज्यादा आगामी लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के उमीदवारों को होगा.
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