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सांपों ने 50 से ज्यादा बार डसा, फिर भी निडर, समाजसेवा की मिसाल बनीं 'स्नेक लेडी' जानकी दीदी

जानकी दीदी सिर्फ सांप ही नहीं पकड़तीं, बल्कि महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी कराने में भी माहिर हैं. मोहल्ले और आसपास के गांवों से महिलाएं प्रसव के लिए उनके पास आती हैं.

सांपों ने 50 से ज्यादा बार डसा, फिर भी निडर, समाजसेवा की मिसाल बनीं 'स्नेक लेडी' जानकी दीदी
  • वाल्मीकिनगर के बिसही गांव की जानकी देवी सांप पकड़ने और सुरक्षित रेस्क्यू में असाधारण निपुणता रखती हैं
  • सात वर्ष की उम्र से सांप पकड़ना शुरू कर उन्होंने हजारों जहरीले सांपों को सुरक्षित वन विभाग तक पहुंचाया है
  • वह सांप पकड़ने के अलावा महिलाओं की सुरक्षित नॉर्मल डिलीवरी कराने में भी माहिर हैं और कोई फीस नहीं लेतीं
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बगहा (पश्चिमी चम्पारण):

इंडो-नेपाल बॉर्डर के पास वाल्मीकिनगर इलाके के बिसही गांव में एक नाम ऐसा है, जिसे सुनते ही लोग भरोसे से भर जाते हैं- जानकी देवी, जिन्हें पूरा इलाका प्यार से 'स्नेक लेडी' कहता है. अनपढ़ होते हुए भी असाधारण हुनर की धनी जानकी दीदी की पहचान किसी डिग्री से नहीं, बल्कि उस साहस से है, जो जहरीले से जहरीले सांपों को भी पलक झपकते ही काबू में कर लेती है.

कोबरा, किंग कोबरा, अजगर या कोई और जहरीला सांप, जानकी दीदी देखते ही पहचान लेती हैं कि वह सुरक्षित रेस्क्यू के काबिल है और फिर बिजली की रफ्तार से उसे पकड़ लेती हैं. अब तक उन्होंने हजारों सांपों का रेस्क्यू किया है और उन्हें या तो वन विभाग तक पहुंचाया या जंगल में छोड़ दिया. कई बार सांप जानकी दीदी को देखकर खुद ही ठिठक जाते हैं.

7 साल की उम्र से शुरू हुआ सफर

जानकी दीदी ने महज 7 साल की उम्र में सांप पकड़ना शुरू किया. उनके परिवार के पुरुष भी इस काम में माहिर हैं. कोविड काल में एक बेटे की मौत ने उन्हें तोड़ा जरूर, लेकिन उनका समाज सेवा का जज्बा कभी कमजोर नहीं हुआ.

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सांपों ने 50 से ज्यादा बार डसा फिर भी निडर

जानकी दीदी का दावा है कि उन्हें अब तक 50 से ज्यादा बार सांप ने डसा है, लेकिन गंभीर असर कभी नहीं पड़ा. वह कहती हैं कि कुछ मामलों में हल्का असर होता है, जैसे मंगलवार और रविवार को, जिससे थोड़ी देर के लिए नशा-सा छा जाता है. इनके इस अनुभव ने लोगों के बीच उनकी ‘अलौकिक' छवि बना दी है.

डिस्कवरी चैनल का जॉब ऑफर

जानकी दीदी की कला की चर्चा इतनी दूर तक पहुंची कि करीब 15 साल पहले डिस्कवरी चैनल ने उन्हें नौकरी का ऑफर दिया, लेकिन पारिवारिक कारणों और स्थानीय जिम्मेदारियों के चलते उन्होंने यह अवसर ठुकरा दिया. उस समय वन विभाग में प्रशिक्षित स्नेक कैचर मौजूद नहीं थे, इसलिए अधिकारी अक्सर जानकी दीदी को ही बुलाते थे.

वन विभाग की रोक, फिर भी सेवा जारी

हाल ही में वन विभाग के अधिकारियों ने जानकी दीदी को सांप पकड़ने से मना कर दिया. इसके बाद वह आधिकारिक रूप से रेस्क्यू नहीं कर पा रही हैं, लेकिन उनका जज्बा कम नहीं हुआ. जानकी दीदी आज भी खेतों में मजदूरी कर जीवन चला रही हैं और गांव-गांव जाकर लोगों को जंगल और जीवों के संरक्षण के लिए जागरूक कर रही हैं.

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पेड़ों पर बिजली की तरह चढ़ना

जानकी दीदी की फुर्ती आज भी लोगों को हैरान कर देती है. वह पलक झपकते ही बड़े पेड़ों पर भी चढ़ जाती हैं, और कई बार सांपों को पकड़कर सुरक्षित जगह छोड़ देती हैं. गांव वाले कहते हैं कि जानकी दीदी जैसा बन पाना सबके बस का नहीं है.

सांप ही नहीं, सुरक्षित डिलीवरी में भी माहिर

जानकी दीदी सिर्फ सांप ही नहीं पकड़तीं, बल्कि महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी कराने में भी माहिर हैं. मोहल्ले और आसपास के गांवों से महिलाएं प्रसव के लिए उनके पास आती हैं. बच्चा उल्टा हो या कोई जटिल स्थिति जानकी दीदी सहजता से सुरक्षित डिलीवरी करा देती हैं.

सांप का खतरा और डॉक्टर की राय

हालांकि जानकी दीदी के अनुभव बेहद अद्भुत हैं, लेकिन डॉक्टर पद्म भानु का कहना है कि अगर कोई सांप जहरीला हो और काट ले, तो व्यक्ति जिंदा नहीं बच पाता. उनका यह भी मानना है कि केवल बिना जहर वाले सांप का काटना ही असल में सुरक्षित हो सकता है. ऐसे में जानकी दीदी का साहस और अनुभव सामान्य से परे है, जिसे लगभग अलौकिक कहा जा सकता है.

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दूर-दराज से बुलावा

पड़ोसी गांवों से लोग सांप पकड़वाने और डिलीवरी के लिए जानकी दीदी को बुलाने आते हैं. कई बार वह साइकिल से खुद लोगों के घर पहुंच जाती हैं. हाल ही में एक घर से निकले ब्लैक कोबरा को उन्होंने सुरक्षित पकड़कर जंगल में छोड़ दिया.

पैसे से दूर, सेवा के करीब

सबसे बड़ी बात, जानकी दीदी अपने हुनर के बदले कोई फीस नहीं लेतीं. न सांप पकड़ने के लिए, न डिलीवरी के लिए. उनका कहना है कि यह हुनर उन्हें समाज सेवा के लिए मिला है. यही वजह है कि बगहा से लेकर वाल्मीकिनगर तक उनकी लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.

खतरे से आंख मिलाकर समाज की सेवा करना, यही जानकी दीदी की पहचान है. जहरीले सांपों से दोस्ती, इंसानी जिंदगी बचाने का जज्बा और जंगल के प्रति संवेदनशीलता, यह सब मिलकर उन्हें बिहार की उन चुनिंदा महिलाओं में खड़ा करता है, जिनकी कहानी प्रेरणा बन जाती है.

(बगहा से बिंदेश्वर कुमार की रिपोर्ट...)

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