बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के मशहूर 'मर्चा चावल' को मिला GI टैग

मर्चा चावल में एक अनूठी सुगंध होती है, जो इसे अलग बनाती है, इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र पश्चिमी चंपारण जिले के चनपटिया प्रखंड के कुछ गांव - मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर हैं

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के मशहूर 'मर्चा चावल' को मिला GI टैग

प्रतीकात्मक फोटो.

पटना:

बिहार के प्रसिद्ध 'मर्चा चावल' (काली मिर्च की तरह दिखने वाले) को सरकार ने जीआई टैग दिया है. यह चावल अच्छी खुशबू और स्वाद वाला होता है और सुगन्धित चूड़ा बनाने के लिए प्रसिद्ध है. जीआई रजिस्ट्री चेन्नई की जीआई टैग पत्रिका के अनुसार मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समुहाट गांव, सिंगासनी, जिला- पश्चिम चंपारण (बिहार) द्वारा जीआई टैग के लिए आवेदन दिया गया था, जिसे मंजूरी दे दी गई है.

मर्चा बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थानीय रूप से पाए जाने वाले चावल की एक किस्म है. यह काली मिर्च की तरह दिखाई देता है, इसलिए इसे 'मिर्चा' या 'मर्चा राइस' के नाम से जाना जाता है. इसे स्थानीय स्तर पर मिर्चा, मर्चैया, मारीचै आदि नामों से भी जाना जाता है.

मर्चा धान के पौधे, अनाज और गुच्छे में एक अनूठी सुगंध होती है, जो इसे अलग बनाती है. मर्चा चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र पश्चिमी चंपारण जिले के चनपटिया प्रखंड के कुछ गांव - मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर हैं.

बिहार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने पीटीआई-भाषा से कहा, ''स्वाद और सुगंध के साथ मर्चा चावल उगाने के लिए जिले के केवल छह प्रखंड उपयुक्त हैं.''

मर्चा चावल को जीआई टैग दिए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सर्वजीत ने कहा कि यह एक बड़ी उपलब्धि है, जो इस चावल के उत्पादन को और बढ़ावा देगा. इससे मर्चा चावल की खेती में लगे किसानों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी.

इससे पहले भागलपुर के जर्दालू आम, कतरनी धान, नवादा के मगही पान और मुजफ्फरपुर की शाही लीची को जीआई टैग मिल चुका है. जीआई टैग यह सुनिश्चित करता है कि अधिकृत उपयोगकर्ताओं के रूप में पंजीकृत लोगों के अलावा किसी को भी लोकप्रिय उत्पाद नाम का उपयोग करने की अनुमति नहीं है.

सुगंधित चावल की कई किस्में जैसे चंपारण बासमती (लाल, भूरी और काली), कनकजीरा, कमोद, बहरनी, देवता भोग, केसर, राम जवाईन, तुलसी पसंद, चेनौर, सोना लारी, बादशाहभोग और मर्चा पश्चिम चंपारण और आसपास के क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय थे.

कुछ दशक पहले तक चावल इस जिले की प्रमुख खरीफ फसल थी. इस समय इसका रकबा केवल 45 प्रतिशत है. बाकी रकबे (लगभग 50 प्रतिशत) पर मुख्य रूप से गन्ने की खेती की जा रही है.

इस बीच कुछ जिलों में चावल की पारंपरिक किस्मों की खेती में भारी गिरावट से चिंतित बिहार सरकार ने एक प्रारंभिक सर्वेक्षण करने और चावल की दुर्लभ किस्मों विशेष रूप से मर्चा चावल, गोविंद भोग और सोना चूर की रक्षा के लिए संरक्षण योजना शुरू करने का निर्णय लिया है.

बिहार राज्य जैव विविधता बोर्ड ने भी राज्य में मर्चा चावल, गोविंद भोग और सोना चूर की खेती में भारी गिरावट के कारणों का पता लगाने के लिए एक अध्ययन करने का निर्णय लिया है.

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