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सीतामढ़ी: पुनौरा धाम जानकी मंदिर के लिए भारत के इस हिस्से से मंगवाए जा रहे पत्थर, जानिए खासियतें?

सदियों तक टिकने वाली राजस्थान के खास रेड स्टोन से सीतामढ़ी पुनौरा धाम के जानकी मंदिर का निर्माण होगा. इस पत्थर की खासियत है कि इसपर मौसम का कोई खास असर नहीं पड़ता है.

सीतामढ़ी: पुनौरा धाम जानकी मंदिर के लिए भारत के इस हिस्से से मंगवाए जा रहे पत्थर, जानिए खासियतें?
सीतामढ़ी जानकी मंदिर का प्रवेश द्वार कुछ ऐसा होगा. इनसेट में लाल पत्थर, जिससे होगा निर्माण.
  • सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में मां जानकी मंदिर निर्माण के लिए 882.87 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है.
  • मंदिर निर्माण की नींव अमित शाह 8 अगस्त को रखेंगे, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे.
  • जानकी मंदिर के निर्माण में राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया जाएगा. जानिए खासियतें.
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Sitamarhi Punaura Dham Janaki Temple: अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मस्थली पर भव्य मंदिर निर्माण के बाद अब सीतामढ़ी में मां सीता की जन्मस्थली पुनौरा धाम पर भी भव्य मंदिर निर्माण की योजना है. बिहार सरकार ने पुनौरा धाम में जानकी मंदिर निर्माण के लिए 882.87 करोड़ का बजट निर्धारित किया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 8 अगस्त को पुनौरा धाम में मंदिर निर्माण की नींव रखेंगे, इस दौरान CM नीतीश कुमार भी मौजूद रहेंगे. जानकी मंदिर निर्माण को लेकर आस-पास के लोगों में उत्साह है. मां जानकी का मंदिर भव्य हो, चिरकाल तक दिव्य नजर आए, इसलिए खास तैयारी की गई है.

राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के लाल पत्थरों से बनेगा जानकी मंदिर

जानकी मंदिर की भव्यता-दिव्यता के लिए यहां खास तरह के पत्थरों का प्रयोग किया जाएगा. राम मंदिर की तरह ही जानकी मंदिर के लिए भी राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के लाल पत्थरों का इस्तेमाल होगा. राजस्थान के इस रेड स्टोन की क्या खासियत है, आइए जानते हैं.

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भव्य मंदिरों के निर्माण में होता है इस्तेमाल

जब भी देश में किसी भव्य मंदिर या ऐतिहासिक इमारत का निर्माण होता है, तो एक नाम ज़रूर सामने आता है, वह है राजस्थान का बंसी पहाड़पुर लाल पत्थर. अब यही खास लाल बलुआ पत्थर बिहार के सीतामढ़ी स्थित पुनौराधाम में बन रहे मां जानकी मंदिर की भव्यता को आकार देगा.

पुनौराधाम में जानकी मंदिर का निर्माण बंसी पहाड़पुर के पत्थर से किया जा रहा है, ताकि उसकी एकरूपता, मजबूती, सुंदरता और चमक सालों साल कायम रहे.

क्या है इस लाल पत्थर की खासियत?

राजस्थान के भरतपुर जिले के बंसी पहाड़पुर क्षेत्र से निकाला जाने वाला यह पत्थर “रेड सैंडस्टोन” यानी लाल बलुआ पत्थर के नाम से जाना जाता है. मगर बहुत कम लोगों को को इस पत्‍थर की खासियत की जानकारी होगी. तो आइए हम आज इस पत्‍थर की खासियत के बारे में जानते हैं.

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प्राकृतिक मजबूती और टिकाऊपन

इस पत्थर की पहली विशेषता ये है कि इसे प्रकृति ने लाखों वर्षों में तैयार किया है. यह इतन ठोस होती है कि यह सदियों तक बिना टूटे या क्षतिग्रस्त हुए संरचना को मजबूती देता है. यही वजह है कि यह बड़े-बड़े धार्मिक और ऐतिहासिक निर्माणों के निर्माण के लिए यह पहली पसंद होता है.

महीन बनावट, सुंदर कलाकारी के लिए अनुकूल

प्रकृतिक रूप से पाए जाने वाले इस बलुआ पत्थर की बनावट इतनी महीन और समान है कि उस पर नक्काशी और कलात्मक डिज़ाइन उकेरना बेहद आसान होता है. कारीगर जो कलाकृति उकेरते हैं वह काफी तीखा और मजबूत होता है. यही कारण है कि जिसकी वजह से इस पत्‍थर का सबसे ज्‍यादा प्रयोग किया जाता है.

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महीन से महीन नक्काशी के लिए भी मुफीद

पत्‍थर की समरूपता भी इसे खास बनाती है. जिससे कलाकृति स्‍पष्‍ट और रूप से उकेरी हुई दिखाई देती है. मंदिरों की दीवार पर एक कथा उकेरी जाती है. ऐसे में ऐसे पत्‍थर की जरूरत होती है जो महीन से महीन नक्‍काशी को उकेरने के लिए साफ सुथरी और टिकाउ हो. यह पत्‍थर इस जरूरत को पूरा करता है.

प्राकृतिक रंग, जो समय के साथ निखरता है

राजस्‍थान के भरतपुर जिले के इस बलुआ पत्थर का लाल रंग प्राकृतिक रूप से गहरा लाल होता है. जो सूर्य की चमकदार रोशनी और दिन के समय के और ज्‍यादा चमकदार हो जाता है. जो यह मंदिर या इमारत को एक राजसी और दिव्य रूप प्रदान करता है.

समय के प्रभाव से बेअसर है ये लाल बलुआ पत्‍थर

इस लाल बलुआ पत्‍थर की एक और खास बात ये है कि कि यह गरमी, सर्दी और वर्षा और आसानी से झेल सकता है. जो समय की रफ्तार को धीमा कर देता है. गर्मी और अचानक हुई बरसात में भी यह पत्‍थर टूटता या चटकता नहीं है. ऐसे में यह पत्‍थर हर मौसम में टिकाऊ बना रहता है. आसान भाषा में कहा जाए तो तापमान के प्रभाव से यह न तो सिकुड़ता या न ही फैलता है. जिससे संरचना पर कोई असर नहीं पड़ता है.

पुनौरा धाम जानकी मंदिर का निर्माण कैसा होगा, देखें प्रस्तावित तस्वीरें

भारतीय स्‍थापत्‍य कला से सहज रूप से जुड़ जाता है ये पत्‍थर

इसका लाल गेरुआ रंग भी इसे खास बनाता है. जिससे भारतीय संस्‍कृति का जुड़ाव सहज हो जाता है. इस लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग भारत की प्राचीन विरासत में भी किया गया है. भारतीय स्‍थापत्‍य कला से जुड़ी इमारतों जैसे लाल किला, आगरा का किला, अयोध्या में बने श्रीराम मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल किया गया है. बताते चलें कि बुद्ध सम्‍यक संग्रहालय के निर्माण में भी इसी पत्‍थर का प्रयोग किया जा रहा है.

पुनौराधाम मंदिर के लिए क्यों चुना गया यही पत्थर?

बिहार सरकार की ओर से बनवाए जा रहे 151 फीट ऊंचे मां जानकी मंदिर में एकरूपता, भव्यता और परंपरा का अद्भुत संगम नजर आए, इसलिए राजस्थान के इसी खास लाल पत्थर को चुना गया. परियोजना से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि “हम चाहते थे कि मंदिर की हर दीवार एक जैसी दिखे, उसकी आभा दूर से ही श्रद्धा भाव जगाए और वह सौ साल बाद भी वैसी ही चमकती रहे. इस वजह से बंसी पहाड़पुर का लाल पत्थर का चयन किया गया. जो भारत में सबसे उपयुक्त है.”


सिर्फ पत्थर नहीं, आस्था और शिल्प की पहचान

बताते चलें कि यह पत्थर सिर्फ एक निर्माण सामग्री नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और शिल्प कला की भी पहचान है. इसके माध्यम से न केवल एक मंदिर बनता है, बल्कि उसमें परंपरा, शिल्प और श्रद्धा की आत्मा समाहित होती है.

राजस्थान का यह लाल बलुआ पत्थर अब बिहार के धार्मिक पर्यटन को नई ऊंचाई देने वाला है. पुनौराधाम में बन रहा मां जानकी मंदिर आने वाले समय में सिर्फ एक आस्था केंद्र नहीं, बल्कि भारतीय स्थापत्य कला की भव्य मिसाल बनकर उभरेगा.

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