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This Article is From Mar 02, 2020

नीतीश कुमार का कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ फ़्लॉप, समर्थक मायूस, तेजस्‍वी ने ऐसे ली चुटकी...

इस सम्मेलन की विफलता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जिस बिहार में क़रीब 75 हज़ार से अधिक मतदान केंद्र हैं वहां हर मतदान केंद्र से अगर दो लोग भी आते तो एक सम्माजनक संख्या गांधी मैदान में उपस्थित होती.

नीतीश कुमार का कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ फ़्लॉप, समर्थक मायूस, तेजस्‍वी ने ऐसे ली चुटकी...
बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
पटना:

रविवार को पटना के गांधी मैदान में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का कार्यकर्ता सम्मेलन फ़्लॉप रहा. ये सम्मेलन फ़्लॉप इसलिए नहीं था क्योंकि आयोजकों के दावे के अनुसार लोग नहीं आये बल्कि अपने पार्टी के संस्थापक और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के जन्मदिन पर आयोजित इस सभा में आयोजकों ने अपने कार्यकर्ताओं के बैठेने के लिए कुर्सी का भी इंतज़ाम तक नहीं किया था. इस सम्मेलन की विफलता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जिस बिहार में क़रीब 75 हज़ार से अधिक मतदान केंद्र हैं वहां हर मतदान केंद्र से अगर दो लोग भी आते तो एक सम्माजनक संख्या गांधी मैदान में उपस्थित होती. हां, अगर लोग नहीं आए तो उसका ठीकरा तुरंत रविवार के दिन की गर्मी और यातायात पुलिस द्वारा जो पार्किंग की व्यवस्था की गयी थी उसपर फोड़ा गया क्‍योंकि इसकी वजह से लोगों को सात किलोमीटर पैदल चलने का कष्ट उठाना पड़ा. लेकिन सच्‍चाई यही है कि यही व्यवस्था हर रैली में की जाती है. ऐसी व्यवस्था के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गांधी मैदान में 2013 की रैली और ख़ुद नीतीश कुमार, लालू यादव और कांग्रेस की संयुक्त रैली इसी गांधी मैदान में हुई जहां अच्छी संख्या में लोग जुटे और अंत तक रहे.

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लेकिन सवाल हैं कि 15 साल शासन में रहने के बाबजूद सत्तारूढ़ दल के रैली के आयोजकों का ये समझना कि कार्यकर्ता घंटों खड़े होकर सबका भाषण सुनेंगे, ये कैसी सामंतवादी सोच है. उनकी पार्टी के विधायक भी मान रहे थे कि ये अहंकार के अलावा कुछ नहीं. सब जानते हैं कि पूरे देश में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय होने के बाद रैली का स्वभाव और उसमें आने वाले लोगों का मान सम्मान बढ़ गया है, जिसका अब अधिकांश दल अनुसरण भी कर रहे हैं.

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वहीं दूसरी और नीतीश कुमार ने पूरे राज्य से कार्यकर्ताओं और बूथ के लोगों को बुलाया तो ज़रूर लेकिन उनका भविष्य में ख़्याल कैसे रखेंगे ये तो बताया नहीं. कार्यकर्ताओं का मलाल यह था कि वो अगर पार्टी का झंडा ढो रहे हैं तो उनके मान और सम्मान का कैसे ख़्याल रखेंगे, कार्यकर्ता वो बात सुनने आए थे लेकिन नीतीश कुमार उन्हें आंकड़ों की घुट्टी पिलाते रहे. हालांकि उनके भाषण के दौरान भी लोग गांधी मैदान में टिक कर सुनने को तैयार नहीं थे. इसके बाद अपने भाषण के अंत में नीतीश कुमार ने इस आयोजन के कर्ता धर्ता और राज्यसभा में पार्टी के संसदीय दल के नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह को इतना आगाह ज़रूर किया कि अगली बार से मौसम को देखते हुए टेंट का इंतज़ाम रखें.

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नीतीश के इस सम्मेलन पर जितना उनके सहयोगी भाजपा की नज़र थी उतना विपक्षी राजद के नेताओं की भी. भाजपा के नेता इस सम्मेलन की विरलता से इसलिए ख़ुश थे कि एक बार फिर साबित हो गया कि नीतीश कुमार की पार्टी का संगठन इतना कमजोर है कि वो एक लाख लोगों को नहीं जुटा सकता. दूसरा, चुनाव में अब नीतीश कुमार की भाजपा के ऊपर बूथ मैनेजमेंट के लिए निर्भरता रहेगी. भाजपा नेताओं का कहना है कि हमारे लिए डरने की बात उस समय होगी जब नीतीश का संगठन आक्रामक और प्रभावी हो तब आप देखेंगे कि वो अपने काम को वोट में सीधे तब्दील कर लेंगे लेकिन फ़िलहाल जिनके ऊपर पार्टी चलाने का ज़िम्मा है वो नीतीश कुमार को ग़लत सलत फ़ीड्बैक देकर अपना उल्लू सीधा करते हैं जो हमारे लिए लाभदायक है. वहीं विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा कि

हालांकि नीतीश के कट्टर समर्थक विधायकों का रोना है कि पार्टी का जिम्‍मा जिस चौकड़ी को उन्होंने दिया है वो सब कुछ अपने से कर श्रेय लेना चाहते हैं और कभी भी ना नेताओं को और ना कार्यकर्ताओं को सम्मान दिया जाता है. और दिक्कत यह है कि पार्टी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा, ये बात नीतीश कुमार को कौन कहे क्योंकि अधिकांश लोग नीतीश कुमार के स्वजातीय हैं. जिसके कारण नीतीश पार्टी के काम में फ़ज़ीहत होने के बाबजूद कोई ना कोई तर्क ढूंढ कर इनका बचाव करते हैं.

जेडीयू में सबका रोना यही है कि नीतीश टीम वर्क में विश्वास नहीं करते और ना उनके ये पुराने क़रीबी. जिसके कारण 15 वर्षों के दौरान इतना काम करने के बाबजूद सच्‍चाई यही है कि बिहार में त्रिकोणीय मुक़ाबला होता है और नीतीश कुमार के लिए किसी ना किसी सहयोगी दल के साथ गठबंधन में रहकर चुनाव लड़ना और सरकार चलाना एक मजबूरी है. कमजोर पार्टी नेटवर्क होने के कारण नीतीश कुमार को अपने बलबूते ना बहुमत और ना अकेले सत्ता का सुख मिला और आप कह सकते हैं कि उनके राजनीतिक जीवन में दोनों मृगतृष्णा ही बनी रही.

लेकिन रविवार कि रैली का फ़्लॉप होना नीतीश कुमार के लिए एक चेतावनी है और जैसा वो हमेशा कोई गलती होने पर तुरंत सुधार करते हैं, अगर समय रहते उन्होंने इस बार कर भी कर लिया तो ठीक नहीं तो फिर उसका ख़ामियाज़ा भी उन्हें विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ेगा.

VIDEO: नीतीश कुमार के जन्मदिन पर गांधी मैदान में JDU कार्यकर्ताओं का सम्मेलन

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