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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार का यह कहना कि बीजेपी भी नीतीश कुमार को अगला मुख्यमंत्री घोषित करे और उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव हो, जाहिर करता है कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच जो ऊपर से दिख रहा है, वह शायद अंदर से उतना सामान्य नहीं है. वैसे बीजेपी को भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ने में कोई परहेज नहीं है, लेकिन क्या अंदर से बीजेपी नीतीश कुमार को एक बार फिर अगला मुख्यमंत्री के रूप में पेश करेगी, इस पर थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा.
पीएम मोदी ने सीएम नीतीश कुमार को बताया लाडला मुख्यमंत्री
वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 फरवरी को भागलपुर की रैली में नीतीश कुमार को लाडले मुख्यमंत्री की उपमा दे चुके हैं, लेकिन जेडीयू को एनडीए के मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार के नाम की औपचारिक घोषणा का अभी भी इंतजार है. ऐसे में निशांत कुमार जो अभी राजनीति में आधिकारिक तौर पर नहीं आए हैं, उनका यह कहना कि नीतीश कुमार के नाम की घोषणा होनी चाहिए, अपने आप में काफी कुछ संकेत देता है. हालांकि बिहार में एनडीए के घटक जीतन राम मांझी नीतीश कुमार के नाम पर पहले ही मुहर लगा चुके हैं. कुछ ऐसे ही संकेत चिराग पासवान भी दे चुके हैं, लेकिन बीजेपी नेताओं के बयान कुछ और संकेत दे रहे हैं.
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बीजेपी कोटे से मंत्री प्रेम कुमार कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री जैसे सवाल पर चुनाव के बाद विचार होगा. वहीं बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कह दिया कि चुनाव तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला बीजेपी की संसदीय बोर्ड करेगा. बयान देने के कुछ ही घंटे बाद दिलीप जायसवाल पलट गए और मीडिया पर बयान के तोड़ मरोड़ का आरोप लगा दिया. दरअसल बीजेपी को यह समझ में नहीं आ रहा है कि एकाएक जेडीयू निशांत कुमार को राजनीति में क्यों ला रही है और वो भी नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी के तौर पर पेश करते हुए.
चुनाव से कुछ महीने पहले मंत्रिमंडल विस्तार की जरूरत क्यों पड़ी?
अब बात करते हैं बिहार में हुए मंत्रिमंडल विस्तार की. बीजेपी के इस कदम को कई जानकार इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं. बीजेपी ने अभी तक अपने कोटे के मंत्रियों को नहीं भरा था, लेकिन विधानसभा चुनाव के ठीक 6 महीने पहले इसकी जरूरत क्यों आन पड़ी. जिन लोगों को मंत्री बनाया गया है, उसमें जाति समीकरण को बखूबी ध्यान में रखा गया है. बनाए गए मंत्रियों में भूमिहार, राजपूत और बनिया जाति से तो हैं ही, बीजेपी ने नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियरिंग में भी सेंध लगाते हुए पिछड़े और अति पिछड़े से भी मंत्री बनाया है. बनाए गए मंत्रियों में जहां अगड़ी जातियों से राजू कुमार सिंह राजपूत हैं, जीवेश कुमार भूमिहार हैं तो विजय कुमार मंडल मल्लाह हैं, मोतीलाल प्रसाद तेली हैं, मंटू कुमार कुर्मी हैं और सुनील कुमार कोईरी हैं.
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बिहार में कुर्मी और कोइरी समुदाय नीतीश कुमार का व्यक्तिगत वोट बैंक माना जाता है, क्योंकि कोइरी-कुर्मी को लव-कुश जातियां कहा जाता है और दोनों में कई जगह शादियां भी होती है. मल्लाह जाति से मंत्री बनाकर बीजेपी साफ तौर पर यह संकेत दे रही है कि वह भी नीतीश कुमार के पिछड़ा और अति पिछड़ा का कार्ड खेलने में इस बार पीछे नहीं रहने वाली है.
महाराष्ट्र की रणनीति, बिहार में भी अपनाना चाहती है बीजेपी?
तो क्या बीजेपी महाराष्ट्र की रणनीति, बिहार में भी अपनाना चाहती है, क्योंकि बीजेपी को मालूम है कि पिछली विधानसभा में भी बीजेपी के पास जेडीयू से अधिक सीटें थीं. 243 की विधानसभा में बीजेपी 74 सीटों पर जीती थी, तो जेडीयू सिर्फ 43 पर, लेकिन अब बीजेपी का मानना है कि महाराष्ट्र की तरह यदि बीजेपी बहुत अच्छा करे तो जेडीयू को चुप कराया जा सकता है. इसके पीछे बीजेपी नेताओं का कहना है कि पिछले दिनों हुए उपचुनाव में जिस ढंग से बीजेपी बेलागंज की सीट जीती है, वो एक बहुत बड़ा संकेत है. बेलागंज की सीट बीजेपी ने करीब तीस साल के बाद जीती है. कहने का मतलब है कि महाराष्ट्र के 288 की विधानसभा में यदि बीजेपी 132 जीत सकती है, तो बिहार में क्यों नहीं.
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बीजेपी बिहार में चिराग पासवान को भी एक बड़े फैक्टर के तौर पर देख रही है और उसके साथ मिलकर 243 की विधानसभा में 100 से अधिक का आंकड़ा पार करना चाहती है. ऐसे में जेडीयू और नीतीश कुमार के पास विकल्प कम हो जाएंगे. वैसे जो खबरें आ रही हैं उसके अनुसार जेडीयू और बीजेपी 100 के आसपास सीटों पर लड़ेगी और बाकी बची सीटें चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और अन्य दलों में बंटेगा.
बिहार में कभी भी राजनैतिक खेला संभव
वैसे बता दूं ये बिहार है, यहां राजनीतिक रूप से कुछ भी कहना खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि बिहार में मुख्यत तीन पार्टियां हैं, जिनमें से दो एक साथ आ जाएं तो उनकी सरकार बन जाती है, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि यहां चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी राजनैतिक खेला और अलटी-पलटी होती रहती है. इसलिए जब तक कुछ पक्का ना हो जाए सस्पेंस बना रहेगा.
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