
सिवान जिले की जीरादेई विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में ऐतिहासिक और वैचारिक दोनों ही रूपों में खास महत्व रखती है. यह सीट सिवान लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि होने के कारण हमेशा चर्चा में रहती है. लेकिन इस सीट की पहचान अब सिर्फ इतिहास तक सीमित नहीं, बल्कि यह वामपंथी राजनीति के नए उभार का प्रतीक बन चुकी है.
1977 में यहां कांग्रेस के राजा राम चौधरी ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां की तस्वीर पूरी तरह बदल गई. इस चुनाव में सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के अमरजीत कुशवाहा ने जेडीयू के कमला सिंह को 25,510 वोटों के बड़े अंतर से मात दी. अमरजीत को कुल 69,442 वोट मिले, जबकि कमला सिंह को 43,932 वोट हासिल हुए. यह जीत सिर्फ एक सीट की नहीं, बल्कि बिहार के ग्रामीण इलाकों में वामपंथी संगठनों की जमीनी पकड़ का प्रदर्शन भी थी.
जीरादेई विधानसभा क्षेत्र मुख्यतः ग्रामीण और श्रमिक तबकों वाला इलाका है. यहां खेतिहर मजदूर, पिछड़े वर्ग और दलित समुदाय की संख्या काफी अधिक है. सीपीआई (एमएल) का संगठन वर्षों से इस इलाके में सक्रिय रहा है, जिसने रोजगार, भूमि अधिकार और किसान आंदोलनों को मुख्य मुद्दा बनाया. यही कारण है कि इस सीट पर वामपंथी पार्टी ने मजबूत जनाधार खड़ा किया.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, 2025 का चुनाव जीरादेई में फिर दिलचस्प रहेगा. एनडीए के लिए यह सीट दोबारा हासिल करना चुनौती है, जबकि वाम दल इस जीत को बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. यहां विकास बनाम विचारधारा की जंग दोहराई जा सकती है.
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