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जीरादेई विधानसभा सीट से बड़ा अपडेट: जेडीयू ने वामपंथी किले में मारी सेंध, भीष्म प्रताप सिंह की 2,626 वोटों से जीत

सिवान जिले की जीरादेई सीट पर 2020 में सीपीआई(एमएल) उम्मीदवार अमरजीत कुशवाहा ने जेडीयू के कमला सिंह को 25,000 से अधिक वोटों से हराया था. यह सीट अब वाम राजनीति का मजबूत गढ़ मानी जाती है.

जीरादेई विधानसभा सीट से बड़ा अपडेट: जेडीयू ने वामपंथी किले में मारी सेंध, भीष्म प्रताप सिंह की 2,626 वोटों से जीत
सिवान:

सिवान जिले की चर्चित जीरादेई विधानसभा सीट का नतीजा सामने आ गया है. लंबे और रोमांचक मुकाबले के बाद जेडीयू प्रत्याशी भीष्म प्रताप सिंह ने जीत दर्ज की है. उन्हें कुल 66,227 वोट मिले, जबकि सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के अमरजीत कुशवाहा को कड़ी टक्कर के बावजूद 2,626 वोटों से हार का सामना करना पड़ा.

जीरादेई सीट बिहार की उन चुनिंदा सीटों में शामिल है, जहां इतिहास, विचारधारा और जमीन पर लड़ाई तीनों एक बराबर चलते हैं. यह वही इलाका है जहां भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था. इस वजह से यह सीट हमेशा सुर्खियों में रहती है. लेकिन हाल के वर्षों में इसकी पहचान सिर्फ ऐतिहासिक नहीं रही, बल्कि यह वामपंथी उभार का अहम केंद्र बन चुकी है.

इस चुनाव में मुकाबला बेहद नजदीकी रहा. सुबह से ही वोटों की गिनती रोमांचक मोड़ लेती रही. दोपहर 12 बजे तक जेडीयू और सीपीआई(एमएल) के बीच सिर्फ 400 वोटों का अंतर था. लेकिन अंतिम चरण की गिनती में भीष्म प्रताप सिंह ने बढ़त को मजबूत किया और आखिरकार जीत अपने नाम की.

2020 के चुनाव में इस सीट पर सीपीआई(एमएल) ने धमाकेदार प्रदर्शन किया था. अमरजीत कुशवाहा ने तब जेडीयू के कमला सिंह को 25,510 वोटों के बड़े अंतर से हराया था. उन्हें 69,442 वोट, जबकि कमला सिंह को 43,932 वोट मिले थे. यह जीत पूरी तरह विचारधारात्मक थी, जिसने ग्रामीण इलाकों में वाम संगठनों की गहरी पैठ को दिखाया था.

जीरादेई का सामाजिक ढांचा भी इस मुकाबले को दिलचस्प बनाता है. इलाका ग्रामीण, श्रमिक और खेतिहर तबकों से भरा है. दलित, पिछड़े और मजदूर समुदाय की बड़ी आबादी यहां रहती है. वर्षों से सीपीआई(एमएल) रोजगार, भूमि अधिकार और किसान आंदोलनों को लेकर लगातार सक्रिय रहा है, जिसकी वजह से उनका जनाधार मजबूत रहा.

लेकिन इस बार का नतीजा बताता है कि एनडीए ने यहां फिर से अपनी जमीन मजबूत की है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विकास कार्य, स्थानीय नेटवर्क और वाम दलों में अंदरूनी चुनौतियों ने इस मुकाबले को पलट दिया. आने वाले दिनों में जीरादेई एक बार फिर विकास बनाम विचारधारा की राजनीति का केंद्र रह सकता है.

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