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कृष्ण के पुत्र का कुष्ठ रोग और जरासंध की पूजा, मगध की मूर्तियों में छिपी है 2000 साल पुरानी सूर्य कथा

मगध सूर्य पूजा का प्राचीन केंद्र रहा है जहां 2000 साल पुरानी मूर्तियां और स्तंभ इस परंपरा की निरंतरता को दर्शाते हैं. शुंगकाल से लेकर 12वीं सदी तक सूर्य की आराधना के साक्ष्य बताते हैं कि मगध में यह परंपरा आस्था, इतिहास और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है.

कृष्ण के पुत्र का कुष्ठ रोग और जरासंध की पूजा, मगध की मूर्तियों में छिपी है 2000 साल पुरानी सूर्य कथा
  • सूर्य पूजा का प्रमाण 2000 साल पुरानी कुषाणकालीन सूर्य प्रतिमा और शुंगकालीन प्रस्तर स्तंभ से मिलता है
  • शुंगकाल से 12वीं सदी तक मगध में सूर्य पूजा निरंतर होती रही, इसके अनेक मूर्तियां और शिलालेख मिले हैं
  • मगध में सूर्य पूजा की परंपरा मंदिरों के माध्यम से भी प्राचीन काल से जीवित है, जैसे देव में सूर्य मंदिर
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नवादा:

मगध में सूर्य पूजा प्राचीन काल से होती रही है. मगध सूर्य पूजा की अराधना का प्रमुख केन्द्र रहा है. यह बातें सिर्फ कथा कहानियों तक सीमित नही है. इसका ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण रहा है. नवादा के नारद संग्रहालय में संग्रहित सूर्य की कुषाणकालीन प्रतिमा इसका बड़ा प्रमाण है. यह प्रतिमा तपोवन में मिली थी. यह प्रतिमा 2000 साल पुरानी है. इससे यह प्रमाणित होता है कि मगध में 2000 साल पहले से सूर्य की पूजा होती रही है.

बोधगया में शुंगकालीन प्रस्तर स्तंभ

मगध में यह अकेला प्रमाण नही है. मगध में सूर्य पूजा का इससे भी पुराना प्रमाण मिला है. बोधगया में शुंगकालीन प्रस्तर स्तंभ है, जिसमें सूर्य की प्रतिमा उकेरी है. भारतीय पुरातत्व सर्वे ऑउ इंडिया के पुरातत्वविद और मूर्ति विशेषज्ञ डाॅ. जलज कुमार तिवारी के मुताबिक, बोधगया के प्रस्तर (पाषाण) स्तंभ में सूर्य की प्रतिमा उकेरी हुई है. यह नारद संग्रहालय में मौजूद कुषाणकालीन सूर्य की मूर्ति से भी प्राचीन है. हालांकि बोधगया म्यूजियम में संरक्षित शुंगकालीन शिलालेख मूर्ति के स्वरूप में नही है. यह एक पाषाण स्तंभ के रूप में है. लेकिन नारद संग्रहालय में मूर्ति के स्वरूप में है. नारद संग्रहालय के कुषाणकालीन प्रतिमा से प्राचीन प्रतिमा बिहार में अबतक नही मिली है.

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शुंगकाल से 12वीं सदी तक निरतंर मिली है सूर्य की मूर्तियां

मगध क्षेत्र में शुंगकाल से 12वीं सदीं तक सूर्य की मूर्तियां निरंतर मिलती रही है. इससे यह साबित होता है कि सूर्य की पूजा लगातार होती रही है. नवादा नारदः संग्रहालय के संग्रहालय अध्यक्ष रहे डाॅ. शिव कुमार मिश्र के मुताबिक, शुंगकाल से लेकर 12वीं शदी तक चरणबद्ध तरीके से सूर्य पूजा के साक्ष्य मिलते रहे हैं. शुंगकाल के बाद नवादा की कुषाणकालीन प्रतिमा उसी कड़ी का हिस्सा है. नारद संग्रहालय में तपोवन से मिली कुषाणकालीन मूर्ति के अलावा अतौआ में मिली सातवीं सदी की सूर्य की प्रतिमा संरक्षित है. बेरमी और छतिहर से बरामद 12 सदी की सूर्य की मूर्ति नारद संग्रहालय में संरक्षित है. इसके अलावा रूद्र भास्कर की प्राचीन प्रतिमा भी नारद संग्रहालय में संरक्षित है.

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अवध में श्रीराम, बज्र में श्रीकृष्ण की तरह मगध में होती है सूर्य की पूजा

मगध में सूर्य पूजा की परंपरा प्राचीन रही है. इसका प्रमाण सिर्फ म्यूजियम तक सीमित नही है. मगध के इलाका में प्रमुख सूर्य की मंदिरें इसका दूसरा बड़ा प्रमाण है. देखें तो, जिस तरह अवध में श्रीराम की पूजा होती है. ब्रज में श्रीकृष्ण की और बंग में देवी की अराधना होती है. उसी तरह मगध में सूर्य की उपासना होती है. लिहाजा, सूर्य की अधिकांश मूर्तियां और मंदिरें मगध के इलाके मेें मिलती है. पुरातत्वविद बताते हैं कि मगध के इलाका में बड़गांव, देव, ओंगारर्क, उलार, हड़िया जैसे कई प्रमुख सूर्यमंदिर है. राज्य के दूसरे हिस्से में इतनी तादाद में सूर्य की मंदिर नही है.

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जरासंध ने किया था सूर्य पूजा का विस्तार

मगध के लोग वैदिक परंपरा के माननेवाले लोग रहे हैं. इसलिए सूर्य की पूजा की जाती रही है. मगध सम्राट जरासंध ने सूर्योपासना का विस्तार किया था. ऐसी मान्यता है कि उनके परिजन को कुष्ठ रोग हो गया था. तब उन्होंने इसके निदान के लिए सकलदीपी ब्राह्मण को बुलाया गया था. सकलदीपी ब्राह्मण ने सूर्योपासना के लिए कहा था. तभी से यह परंपरा चली आ रही है. दूसरी एक यह भी आस्था है कि श्रीकृष्ण के पुत्र सांब ने कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण कराया था. देखें तो, ये मूर्तियां भी ज्यादातर मगध के इलाका में है.

मगध में सूर्य और विष्णु की होती है एक साथ पूजा

इतिहासकार प्रो. डाॅ. आनंदवर्द्धन के मुताबिक, सूर्य और विष्णु अलग हैं. लेकिन मगध में सूर्य और विष्णु की एक साथ पूजा होती है. इसलिए सूर्यनारायण कहा जाता है. विष्णु को नारायण कहा जाता है. मगध में सूर्य के साथ नारायण जुड़ा मिलता है. डाॅ आनंदवर्द्धन का मत है कि तालाब विष्णु की शय्या है. इसलिए तालाब और सूर्य का समन्वय मिलता है. इसलिए मगध के इलाका में तालाब के पास अधिकांश सूर्य की प्रतिमाएं मिलती है.

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