
- बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के पहले चरण में 7.24 करोड़ मतदाताओं से गणना फार्म प्राप्त हुए हैं.
- चुनाव आयोग ने बताया कि 36 लाख मतदाता स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं या उनका पता उपलब्ध नहीं है.
- सात लाख मतदाताओं के नाम कई जगहों पर दर्ज होने के कारण सूची में संशोधन की आवश्यकता है.
चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची को दुरुस्त करने के लिए चलाए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) अभियान के बारे में गलत सूचना फैलाने के लिए "कुछ लोगों" की कड़ी आलोचना की है. चुनाव आयोग ने कहा कि हाल ही में जारी सूची स्पष्ट रूप से एक मसौदा सूची थी, जैसा सार्वजनिक रूप से कहा गया था. हालांकि कुछ लोग ऐसी धारणा बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि मसौदा सूची ही अंतिम सूची थी. साथ ही आयोग ने कहा कि 7.24 करोड़ या 91.69 प्रतिशत मतदाताओं से गणना फार्म प्राप्त हो गए हैं.
चुनाव आयोग ने किसी का नाम लिए बिना एक बयान में कहा, "चुनाव आयोग यह नहीं समझ पा रहा है कि जब किसी नाम को गलत तरीके से शामिल करने या गलत तरीके से बाहर करने के लिए 1 अगस्त से 1 सितंबर तक का पूरा एक महीने का समय उपलब्ध है, तो अब इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है."
चुनाव आयोग ने बूथ लेवल एजेंटों का जिक्र करते हुए कहा, "अपने 1.6 लाख बीएलए को 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावे और आपत्तियां जमा करने के लिए क्यों नहीं कहा गया?" साथ ही कहा, "कुछ लोग यह धारणा क्यों बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि मसौदा सूची ही अंतिम सूची है, जबकि SIR के आदेशों के अनुसार यह अंतिम सूची नहीं है."
91.69% मतदाताओं से मिले गणना फार्म
निर्वाचन आयोग ने रविवार को कहा कि बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) के एक महीने तक चले पहले चरण के समापन के बाद 7.24 करोड़ या 91.69 प्रतिशत मतदाताओं से गणना फार्म प्राप्त हो गए हैं. आयोग ने बताया कि 36 लाख लोग या तो अपने पिछले पते से स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं या फिर उनका कोई पता ही नहीं है. इसने कहा कि बिहार के सात लाख मतदाताओं का कई जगहों पर नाम दर्ज है. सूत्रों के मुताबिक, चुनाव आयोग ने पूछा है कि एसआईआर के मुदृे पर इतना हंगामा क्यों मचा है.
गणना प्रपत्र वितरित करने और वापस प्राप्त करने से संबंधित एसआईआर का पहला चरण शुक्रवार (25 जुलाई) को समाप्त हो गया. निर्वाचन आयोग ने कहा कि बूथ स्तर के अधिकारियों (बीएलओ) को ये मतदाता नहीं मिले और न ही उन्हें गणना फॉर्म वापस मिले, क्योंकि या तो वे अन्य राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता बन गए हैं, या फिर वहां मौजूद नहीं थे, या उन्होंने 25 जुलाई तक फॉर्म जमा नहीं किए थे.
फॉर्म की जांच के बाद पता चलेगी वास्तविक स्थिति: EC
उन्होंने बताया कि दूसरा कारण यह था कि वे किसी न किसी कारण से स्वयं को मतदाता के रूप में पंजीकृत कराने के इच्छुक नहीं थे. आयोग ने कहा कि इन मतदाताओं की वास्तविक स्थिति एक अगस्त तक इन फॉर्म की जांच के बाद पता चलेगी.
साथ ही कहा, ‘‘हालांकि, वास्तविक मतदाताओं को एक अगस्त से एक सितंबर तक दावे और आपत्ति की अवधि के दौरान मतदाता सूची में वापस जोड़ा जा सकता है. मतदाता सूची में कई स्थानों पर नामांकित मतदाताओं का नाम केवल एक ही दर्ज किया जाएगा.''
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