- NDTV पर चुनावी पंडितों ने बताया पहले चरण की बंपर वोटिंग का फायदा किसको होगा? दूसरे चरण में क्या होने वाला है?
- क्या PK होंगे सबसे बड़े फैक्टर या महिलाएं बनेंगी गेमचेंजर या SIR बिगाड़ेगा सभी गणित? अब ट्रेंड क्या बन रहा है?
- NDTV के एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल ने 'मुकाबला- बिहार विधानसभा चुनाव 2025' में इन सभी विषयों की पड़ताल की.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में पिछले बार की तुलना में करीब 9 फीसद अधिक वोट डाले गए. ये सत्ता के पक्ष में गए या विपक्ष में? महिलाओं के वोट प्रतिशत में इजाफा देखा गया इसका क्या असर पड़ेगा? अब दूसरे चरण का चुनाव 11 नवंबर को होना है. तो क्या बिहार चुनाव में SIR का भी असर देखने को मिल रहा है? SIR को लेकर आंकड़े क्या कहते हैं, क्या इसका फायदा एनडीए को मिलेगा? और क्या प्रशांत किशोर की पार्टी बिहार के चुनाव पर असर छोड़ेंगी? जन सुराज, एनडीए और महागठबंधन को कितना नुकसान पहुंचा सकती है? एनडीटीवी के एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल ने विशेष कार्यक्रम 'मुकाबला- बिहार विधानसभा चुनाव 2025' इन्हीं सभी विषयों की पड़ताल की.

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पहले चरण की बंपर वोटिंग का फायदा किसको होगा?
पहले चरण के दौरान 18 जिलों में हुए मतदान में वोटिंग प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले करीब 9 फीसद बढ़ गया. इस पर वरिष्ठ पत्रकार सतीश के सिंह कहते हैं कि इसके 5 बड़े कारण दिखते हैं, जिसकी वजह से मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ.
1. कोरानाः 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कोरोना के ठीक बाद मतदान हुआ था.
2. मोबिलाइजेशनः वहां तीन मुख्य पार्टी हैं. अब पीके भी आ गए हैं. तो मोबिलाइजेशन बहुत है.
3. पहचान सत्यापित करने के लिए वोट देने पहुंचे लोगः लोगों को इस बार शंका थी कि 'मेरा वोट है भी कि नहीं'. तो अपनी पहचान स्थापित, वोट सत्यापित करने के लिए भी लोग वोट देने आए.
4. महिलाएंः महिलाओं को जो 10 हजार रुपये दिए गए हैं, उसका फर्क तो पड़ेगा ही.
5. युवाः युवाओं का फर्क भी पड़ेगा. लोग सभी को वोट देने आए हैं. यह कहना मुश्किल है कि प्रवासी सिर्फ एनडीए या महागठबंधन या जन सुराज के लिए वोट देने पहुंचे हैं.

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बढ़ी वोटिंग से फायदे की बात पर वरिष्ठ पत्रकार अजीत के झा कहते हैं, "परंपरागत रूप से देखें तो अगर वोटर बढ़ता है तो चैलेंजर यानी विपक्ष को फायदा होता है पर इस चुनाव में जितना बिहार में मैं घूमा, मुझे लगता है कि इसमें एंटी इनकम्बेंसी यानी सत्ता विरोधी वोट हैं ही नहीं. हां युवाओं का वोट बदलाव के लिए है लेकिन साथ ही महिलाओं का वोट नीतीश कुमार के लिए. इसलिए वोट जो बढ़ा है, वो दोनों तरफ से बढ़ा है. युवाओं का वोट हो सकता है दो-तीन भाग में बंट जाए. खास कर तेजस्वी और प्रशांत किशोर के लिए. SIR में वोटर्स के नाम कटे और अगर पिछले चुनाव के बराबर भी वोट पड़े तो गणित के अनुसार मतदान का प्रतिशत तो बढ़ेगा ही."
क्यों बढ़े वोटिंग प्रतिशत, इस पर एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर अखिलेश शर्मा कहते हैं, "शुरुआती आकलन है कि महिलाओं ने पिछली बार के मुकाबले पुरुषों की तुलना में 8 फीसद अधिक वोट दिया है. नीतीश कुमार की लोकप्रियता और उनकी योजनाओं के चलते ऐसा हुआ है."

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किन सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा?
चलिए जानते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में राज्य के जिन 12 जिलों में वोट डाले गए उसमें कहां कहां वोट प्रतिशत बढ़ा और कितनी बढ़त देखी गई. तो पहले चरण के दौरान राज्य में ऐसा कोई भी जिला नहीं है, जहां मतदान न बढ़ा हो. जहां सबसे अधिक 71.81% मतदान मुजफ्फरपुर जिले में हुआ. वहीं 2020 की तुलना में सबसे अधिक वोट प्रतिशत 12.8 फीसद समस्तीपुर में बढ़ा.

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वोटिंग में मुजफ्फरपुर अव्वल, वोट प्रतिशत सबसे अधिक समस्तीपुर में बढ़ा
राज्य के सात जिलों गोपालगंज, लखीसराय, मुजफ्फरपुर, वैशाली, सहरसा, मुंगेर और समस्तीपुर जिलों में 2020 की तुलना में 10 फीसद से अधिक वोट डाले गए. वहीं चार जिलों बेगूसराय, खगड़िया, सारण और मधेपुरा में मतदान का प्रतिशत पिछली बार की तुलना में 9 से 10 फीसद से बीच बढ़ा. राजधानी पटना जिले में सभी विधानसभा क्षेत्रों में कुल मतदान प्रतिशत 59 फीसद रहा. यहां भी 2020 के मुकाबले 7.9% वोट बढ़े हैं. पहले चरण में सभी जिलों में मतदान प्रतिशत कम से कम 6 फीसद जरूर बढ़ा है.

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क्या महिलाओं का वोट नीतीश कुमार को अधिक गया है?
इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक शुभ्रास्था कहती हैं, "वोट सिर्फ निरंतरता पर केवल नहीं दिया जाता है. क्या काम किया गया है उसके आधार पर भी दिया जाता है. नीतीश कुमार ने कई योजनाएं लॉन्च कीं, जिसमें पहली बार के लाभकर्ताओं की बात भी रही. उसके साथ ही 10 हजार रुपये का जो डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर हुआ है उसे भी जोड़ कर देखा जा रहा है. जेडीयू की महिला प्रकोष्ठ की कार्यकर्ताओं ने कैंपेन किया है उसमें यह भी संदेश देने की कोशिश की गई है कि यह संभवतः नीतीश कुमार का अंतिम चुनाव है और यह महिलाओं की तरफ से नीतीश कुमार को क्या दिया जा सकता है. उस रूप में इस कैंपेन की व्याख्या की गई है."
वहीं वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं,"यह चुनाव तेजस्वी के साथ शुरू हुआ था. अब नीतीश कुमार तक पहुंच गया है. महिलाओं का वोट 8 फीसद बढ़ा है. 10 हजार रुपये और जो ट्रेनें छठ के बाद वापस नहीं आईं वो भी वोट बढ़ा है."

दूसरे चरण के मतदान में क्या होने वाला है?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण में 11 नवंबर को 122 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इन 122 सीटों में से 2020 के चुनाव में बीजेपी ने एक तिहाई से अधिक सीटें जीती थीं. तब बीजेपी को 42 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. वहीं आरजेडी 33 सीटें जीत कर दूसरे पायदान पर जबकि 20 सीटों के साथ जेडीयू तीसरे तो कांग्रेस 11 के साथ चौथे स्थान पर थी.

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जमीन पर वाकई चल क्या रहा है? क्या प्रशांत किशोर बड़े फैक्टर होंगे...
सी-वोटर के डायरेक्टर यशवंत देशमुख कहते हैं, "चुनाव के बाद क्या होने वाला है ये तो दूसरे चरण की वोटिंग के बाद एग्जिट पोल में बताएंगे लेकिन ट्रैकर के मुताबिक एक साल में ट्रेंड लाइन क्या थीं उनमें बहुत स्पष्ट संकेत थे. प्रशांत किशोर एक्स फैक्टर थे, हमने एक साल में उनकी 3 फीसद से 23 प्रतिशत तक उनकी प्रसिद्धि का सफर देखा. साथ में ये भी देखा कि वोट में कितना बदल रहा है तो नई पार्टी है हमें चुनाव के नतीजों तक का इंतजार करना ही पड़ेगा. हालांकि दोनों चरणों के चुनाव होने के बाद भी एक आइडिया मिलेगा लेकिन नई पार्टी होने के कारण उसका सटीक अनुमान नहीं हो सकता."
देशमुख कहते हैं, "हमने तीन महीने के अंदर हमने नीतीश कुमार का जो सोया हुआ रुझान था, उसे नापने में हिचक रहे थे क्योंकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था. बार बार चर्चा हो रही थी कि जेडीयू की सीटें 30-35 के आसपास छिटक जाएंगी. हमको आंकड़ों कहीं भी नीतीश कुमार से नाराजगी नहीं दिखाई दी. उब जरूर दिखी. हालांकि 10 हजारी योजना की जब बात हुई तो लगा कि सिस्टम रीबूट हो गया."

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नीतीश की योजनाएं अन्य राज्यों से अलग कैसे?
यशवंत देशमुख बताते हैं कि नीतीश कुमार की महिलाओं पर आधारित योजनाएं अन्य राज्यों की महिला आधारित योजनाओं से अलग कैसे हैं.
वो कहते हैं, "मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह चौहान की योजना, या एकनाथ शिंदे की योजना हो या हेमंत सोरेन के महतारी सम्मान योजना की तरह नहीं था, क्योंकि ये सभी योजनाएं एक बार मिलने वाले लाभ की तरह थे. इस योजना ने बिहार की 46-47 फीसद महिलाओं को रीबूट कर दिया."
हालांकि नीतीश कुमार की 10 हजारी योजना पर विपक्ष ने आरोप भी लगाया कि ये वोट खरीदने की कोशिश है.

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"प्रशांत किशोर बिहार के चुनाव में एक्स फैक्टर नहीं हैं"
इस पर वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला ने कहा, "रूड़ी जी ने तो चुनाव का नैरेटिव ही बदल दिया. अगर जाति के नाम पर वोट पड़ रहा है तो वहां के चुनाव को लेकर लगाए जा रहे सभी अनुमान बदल सकते हैं. दूसरे चरण के चुनाव के बाद ही बढ़े गए वोटों की संख्या का सटीक आंकड़ा आएगा. दूसरे चरण में जहां चुनाव होने हैं वहां 53% पुरुष और 47% महिलाएं हैं. अगर महिलाओं के वोट बढ़ते भी हैं तो ओवरऑल पहले चरण से कम ही होगा. प्रशांत किशोर को जितना मैं जानता हूं वो इस चुनाव में फैक्टर नहीं हैं. वोट किसके काटेंगे. जैसे ओवैसी ने सीमांचल में आरजेडी को हरा दिया उसी तरह हो सकता है कि प्रशांत किशोर पांडे के नाम से प्रचार हो गया तो वो एनडीए को ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे. जहां तक महिलाओं की बात है तो नीतीश कुमार ने साइकिल बांटें, शराबबंदी की और अब 10 हजार रुपये दिए तो उनका एक जैसा रिकॉर्ड है कि वो महिलाओं के पक्ष में योजनाएं लाते रहे हैं. लेकिन 2015 में महिलाओं का सबसे अधिक वोट पड़ा था, पर जीत आरजेडी और नीतीश कुमार के गठबंधन को मिली थी.

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पहले चरण के बाद ट्रेंड क्या बन रहा है?
वोट वाइब्स के संस्थापक अमिताभ तिवारी 2020 की तुलना में 2025 में वोटर्स की संख्या घटी है ये एक गलत धारणा है. बेशक वोटर्स की संख्या 2024 की तुलना में घटी है पर 2020 की तुलना में इसमें छह लाख का इजाफा हुआ है. 7 करोड़ 36 लाख से 4 करोड़ 42 लाख हुई. यानी जो वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है वो वास्तविक वृद्धि है. इस बार लगभग 35 लाख वोट ज्यादा पड़े हैं. महिलाओं का वोटर टर्नआउट बढ़ता है वो जेडीयू के लिए फायदेमंद है. इसको एनडीए के लिए फायदे का मानना सही नहीं होगा. जिन सीटों पर महिलाओं का टर्नआउट ज्यादा रहता है उन सीटों पर जेडीयू का स्ट्राइक रेट अच्छा रहता है.

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बिहार में महिलाओं ने वोटिंग में पुरुषों को पीछे छोड़ा
बिहार में कुल वोटर्स 7.42 करोड़ हैं. इनमें पुरुष मतदाता 3.9 करोड़ तो महिला मतदाता 3.5 करोड़ हैं. पिछले करीब 20 सालों से महिलाएं बिहार के चुनाव में बढ़ चढ़ कर मतदान कर रही हैं. 2010 में महिलाओं (54%) ने पुरुषों (51%) को 3 फीसद के अंतर से पीछे छोड़ा था तो 2015 में यह फासला 7 फीसद तक पहुंच गया. हालांकि पिछली बार, 2020 में, यह अंतर 5 फीसद रहा.

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लड़कियों के बीच सुरक्षा बड़ा मुद्दा
राजनीतिक विश्लेषक मनीषा प्रियम का मानना है कि महिला आधारित योजनाओं पर राज्य और केंद्र दोनों सरकारों ने दिल खोल कर खर्च किए. 7500 करोड़ प्रधानमंत्री ने रिलीज किया, नीतीश कुमार ने 2500 करोड़ खर्च किया. पहले नीतीश कुमार क्षेत्र में रहते थे लेकिन अब बटन दबा कर ये योजनाएं लागू की गईं. तो एक तरह से ये बिना महिलाओं के बीच गए ही ये संपर्क किया गया. नीतीश कुमार को महिलाओं के वोट पर भरोसा है. पर महिलाओं में एक युवा वर्ग भी है जिन्हें बिहार में लड़की कह कर बुलाया जाता है. इन युवा वर्ग में 10 हजार रुपये की चर्चा नहीं है. उनके बीच सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है.

आनंद मोहन को जेल से छोड़े जाने पर सवाल
मनीषा प्रियम बाहुबली आनंद मोहन को जेल से छोड़े जाने पर सवाल भी उठाती हैं. वो कहती हैं, "इस चुनाव की पूर्व संध्या में आनंद मोहन नामक बाहुबली को जेल से छोड़ दिया गया. तो ये कहें कि महिला वोट पड़चम चढ़ गया तो ऐसा नहीं है. मनिहारन महिलाएं जो चूड़ी पहनाती हैं और सुहाग से रचती हैं. लंबी चर्चा के दौरान निचले वर्ग की महिलाओं से जब बात हुई तो उन्होंने कहा कि हम इन 10 हजार रुपये का क्या करेंगे, हमारे पति परदेस जा कर कमा रहे हैं. बच्चे स्कूल जा चुके उनकी नौकरी की सुरक्षा की जाए."

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महिलाओं के बीच नीतीश कुमार को कितना समर्थन है?
इस सवाल पर चुनाव विश्लेषक जय मृग कहते हैं, "आरजेडी जिन सीटों पर जीतती है उसके बाहर महिलाओं में नीतीश कुमार के लिए पूर्ण समर्थन देखा गया है. वो स्पष्ट तरीके से नजर आया. पहले चरण में अगर जितने वोट पड़े उनको देखें तो कुल 17.3% वोट ज्यादा पड़े हैं. अगर ये आंकड़ा लें कि पुरुषों के मुकाबले 8 फीसद ज्यादा महिलाओं ने वोट दिए हैं तो हमें जो जानकारी मिली है उसमें ये स्पष्ट सुना गया है कि नॉन आरजेडी वोटर्स में महिलाओं की लामबंदी हुई है."

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प्रशांत किशोर क्या वाकई कमाल करेंगे?
साल 2024 में विधानसभा की चार सीटों बेलागंज, इमामगंज, रामगढ़, और तरारी पर उपचुनाव हुए थे. प्रशांत किशोर की पार्टी ने सभी चार सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे लेकिन इन सभी सीटों पर उनके प्रत्याशी हार जरूर गए पर कुछ सीटों पर वोट बटोरने में कामयाब रहे. इनमें सबसे पहले बेलागंज का नाम आता है जहां पीके की पार्टी के प्रत्याशी तीसरे पायदान पर आए लेकिन उन्हें 17,285 वोट मिले. इमामगंज में भी तीसरे पायदान पर रहे पर यहां उन्हें 37 हजार से अधिक वोट पड़े. रामगढ़ और तरारी में साढ़े छह हजार के करीब पड़े.

बिहार चुनाव में केवल N और P फैक्टर
वरिष्ठ पत्रकार सतीश के सिंह कहते हैं, पीके का प्रभाव बिहार में नहीं होगा ये गले से उतरने वाली बात नहीं है. बिल्कुल होगा. अगर पटना की दो सीटों पर बीजेपी का गणित बिगड़ता है तो उसके लिए सीधे-सीधे पीके की पार्टी जिम्मेदार होगी. ये सीटें होंगी कुम्हरार और दीघा. इस चुनाव में दो ही फैक्टर हैं- N और P. यानी नीतीश और प्रशांत. पीके के वोटों से इस बार के चुनाव में सरकार का उलट-पुलट होना है. 14 के बाद बिहार में पटाखे जो फूटने हैं उसमें पीके का क्या किरदार रहता है. उसपर मेरी नजर है.

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बिहार चुनावः वोट शेयर vs संभावित सीटें
बिहार के चुनाव के पुराने आंकड़ों के अनुसार, अगर वोट शेयर 0 से 7 फीसद रहा तो संभावित सीटें 0 से 5 होती हैं. 7 से 14 फीसद वोट शेयर पर संभावित सीटों की संख्या 5 से 20 तक पहुंच सकती हैं. वहीं 14 से 17 फीसद वोट शेयर पर संभावित सीटें 21 से 40 तक हो सकती हैं. वहीं अगर 18 फीसद से अधिक वोट शेयर पाने वाली पार्टियां निर्णायक भूमिका में आ जाती हैं. यानी 18 फीसद से कम वोट पाने वाली पार्टियां बिहार में केवल समीकरणों में बदलाव का काम करती रही हैं.
अगर प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज के वोट शेयर एनडीए की तुलना में महागठबंधन से आएं, तो इन आंकड़ों से देखें कि इसका अधिकतम फायदा बीजेपी-जेडीयू की एनडीए को कैसे होगा. देखें ग्राफिक्स...
वहीं अगर जनसुराज के अधिकतम वोट शेयर एनडीए से आए तो इसका फायदा महागठबंधन को किस तरह बढ़ता जाएगा, नीचे के इस ग्राफिक्स में देखें...

उपचुनाव के आंकड़े के मुताबिक पीके किसे फायदा पहुंचाएंगे?
अमिताभ तिवारी कहते हैं, "प्रशांत किशोर ज्यादा से ज्यादा नुकसान अन्य पार्टियों को पहुंचाएंगे क्योंकि बिहार के हर चुनाव में उनकी संख्या करीब 20 से 25 रहती है और प्रशांत किशोर उन लोगों के सीएम चेहरा बन कर भी उभरे हैं जो अन्य दलों को वोट दिया करते हैं. क्योंकि ये लोग एनडीए या महागठबंधन के खिलाफ वोट करते रहे हैं. बिहार में 2024 के उपचुनाव की जिन चार सीटों पर प्रशांत किशोर की पार्टी उतरी उनमें से तीन पर पहले महागठबंधन के विधायक थे, लेकिन प्रशांत किशोर की पार्टी ने वहां समीकरण बिगाड़ दिया और एनडीए ने चारों सीटें जीत ली. महागठबंधन का आंकड़ा शून्य हो गया. बेलागंज और इमामगंज में उन्हें जाति आधारित वोट पड़े."

क्या SIR का चुनाव नतीजों पर असर होगा?
जय मृग कहते हैं, "सीमांचल में 6 फीसद वोटर्स घटे हैं. पर जहां बीजेपी मजबूत है, जैसे- मगध, वहां भी 3.73 फीसद की कमी आई है. SIR से जिन सीटों के नतीजों पर फर्क पड़ सकता है, उनकी संख्या 100 के करीब हो सकती हैं. क्योंकि इन सीटों पर पिछले चुनाव में जीत का अंतर, SIR में घटे वोटर्स की संख्या के आसपास हैं. उसमें से भी उन सीटों पर फोकस करें जहां एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधे टक्कर है, तो ऐसी करीब 80 सीटें हैं. उनमें से एनडीए के पास 46 सीटें हैं. जबकि 34 महागठबंधन के पास है. यानी SIR से केवल महागठबंधन को ही नुकसान होगा ये कहना अतिश्योक्ति (बढ़ा चढ़ा कर कहने वाली बात) है."
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