आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी ने प्रेस की आजादी के बहाने नीतीश कुमार को निशाना बनाया है.
- कहा, सरकारी विज्ञापन अखबारों को मुठ्ठी में रखने का जरिया बना
- संपादकों को अखबार मालिकों ने जी हुज़ूर बनाकर छोड़ दिया
- नीतीश आज वही काम कर रहे जो कभी जगन्नाथ मिश्र ने किया था
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पटना:
बिहार में पत्रकारों के लिखने की आज़ादी पर राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने सवाल उठाए हैं . उन्होंने इसके लिए अब अपने राजनीतिक विरोधी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने पर रखा है.
शिवानंद ने एक बयान में कहा है कि भगवान बन गए हैं नीतीश कुमार. उनका दावा है कि किसी को कुछ भी बना सकते हैं. किसी को भी कहीं से कहीं पहुंचा सकते हैं. शराबबंदी के दो साला जलसे के मौके पर नीतीश कुमार का भाषण दंभ और अंहकार से भरा हुआ था. बिहार के अखबारों को तो नीतीश ने अपना चाकर बनाकर रखा है. सभी ने इनके भाषण पर एक से अधिक खबर बनाई है. प्राय: सभी हिंदी अखबारों ने एक पूरा पृष्ठ इनके भाषण के लिए दिया है. सरकारी विज्ञापन अखबारों को मुठ्ठी में रखने का जरिया बना हुआ है. पटना से छपने वाला शायद ही कोई अखबार होगा जिसकी पीठ पर कभी न कभी विज्ञापन बंदी का चाबुक नहीं चला होगा.
यह भी पढ़ें : नीतीश कुमार को क्यों कहना पड़ा- गुस्सा हैं तो बर्बाद कर दीजिए, पर विरोध मत कीजिए
शिवानंद के अनुसार अखबारों में क्या छपेगा और क्या नहीं, यह रिपोर्टर या संपादक नहीं तय करता है. यह मैनेजमेंट में बैठे हुए लोग तय करते हैं. जब से अखबारों में स्थाई नियुक्ति की जगह पर कन्ट्रैक्ट बहाली की व्यवस्था शुरू हुई है, संपादकों को तो मालिकों ने जी हुज़ूर बनाकर छोड़ दिया है. इंदिरा जी को अखबारों पर नकेल कसने के लिए इमर्जेंसी लगानी पड़ी थी. नीतीश ने बगैर इमर्जेंसी लगाए वह कर दिया है.
तिवारी ने कहा कि मुझे याद है 1982 में जगन्नाथ मिश्र जी मुख्यमंत्री थे. अखबारों से वे तंग थे. सरकारी कारनामों की कोई न कोई खबर रोज अखबारों में छपा करती थी. इसलिए इन पर काबू रखने के लिए 82 के जुलाई महीने में प्रेस बिल के नाम से एक काला कानून बिहार विधानसभा से उन्होंने पास कराया था. बगैर बहस के, आनन-फानन में वह बिल पास हुआ था. लेकिन उस काले कानून का ऐतिहासिक विरोध हुआ. पत्रकारों से ही यह विरोध शुरू होकर हर क्षेत्र में फैल गया था. उस कानून के विरोध में हम लोगों ने भी प्रदर्शन किया था. प्रेस को गुलाम बनाने वाले उस कानून के विरोध में होने वाले उस प्रदर्शन में नीतीश कुमार भी शामिल थे. नीतीश तब विधायक भी नहीं थे. हड़ताली मोड़ पर पुलिस द्वारा हम पर भारी लाठी चार्ज हुआ. कई लोग गिरफ्तार हुए थे. उनमें नीतीश भी थे. लगभग डेढ़ महीना हमलोग फुलवारी जेल में थे. मुझे याद है हमारा दशहरा जेल में ही बीता था.
यह भी पढ़ें : नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ आरजेडी का आरोप-पत्र, जानिए- क्या है इसमें...
आरजेडी नेता ने कहा कि आज नीतीश मुख्यमंत्री हैं. प्रेस की आजादी के संघर्ष में अपनी जेल यात्रा को वे भूल चुके हैं. उस जमाने में मुख्यमंत्री के रूप में जगन्नाथ जी को आजाद प्रेस डराता था. इस जमाने में आजाद प्रेस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को डरा रहा है. इमर्जेंसी और प्रेस बिल के विरुद्ध संघर्ष करने वाला, जेल जाने वाला नीतीश कुमार आज पूरी बेशर्मी से वही काम कर रहा है जो एक जमाने में जगन्नाथ जी ने किया था, वह भी अवैध ढंग से, सरकारी ताकत के अवैध इस्तेमाल के द्वारा.
VIDEO : साम्प्रदायिकता को लेकर नीतीश का बीजेपी को इशारा
शिवानंद ने कह कि मुझे अखबार मालिकों की कायरता पर अचंभा होता है. यहीं एक अख़बार ने, जब पानी नाक से ऊपर होने लगा तो अपनी ताकत का अहसास नीतीश कुमार को कराया था. तीसरे दिन तो नीतीश की हवा निकल गई थी, घुटना टेक दिया था. ठीक है कि आज अखबार निकालना व्यवसाय है, लेकिन इस व्यवसाय की एक प्रतिष्ठा है. कम से कम इस व्यवसायिक प्रतिष्ठा का मान रखने की अपेक्षा करना गलत तो नहीं है?
शिवानंद ने एक बयान में कहा है कि भगवान बन गए हैं नीतीश कुमार. उनका दावा है कि किसी को कुछ भी बना सकते हैं. किसी को भी कहीं से कहीं पहुंचा सकते हैं. शराबबंदी के दो साला जलसे के मौके पर नीतीश कुमार का भाषण दंभ और अंहकार से भरा हुआ था. बिहार के अखबारों को तो नीतीश ने अपना चाकर बनाकर रखा है. सभी ने इनके भाषण पर एक से अधिक खबर बनाई है. प्राय: सभी हिंदी अखबारों ने एक पूरा पृष्ठ इनके भाषण के लिए दिया है. सरकारी विज्ञापन अखबारों को मुठ्ठी में रखने का जरिया बना हुआ है. पटना से छपने वाला शायद ही कोई अखबार होगा जिसकी पीठ पर कभी न कभी विज्ञापन बंदी का चाबुक नहीं चला होगा.
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शिवानंद के अनुसार अखबारों में क्या छपेगा और क्या नहीं, यह रिपोर्टर या संपादक नहीं तय करता है. यह मैनेजमेंट में बैठे हुए लोग तय करते हैं. जब से अखबारों में स्थाई नियुक्ति की जगह पर कन्ट्रैक्ट बहाली की व्यवस्था शुरू हुई है, संपादकों को तो मालिकों ने जी हुज़ूर बनाकर छोड़ दिया है. इंदिरा जी को अखबारों पर नकेल कसने के लिए इमर्जेंसी लगानी पड़ी थी. नीतीश ने बगैर इमर्जेंसी लगाए वह कर दिया है.
तिवारी ने कहा कि मुझे याद है 1982 में जगन्नाथ मिश्र जी मुख्यमंत्री थे. अखबारों से वे तंग थे. सरकारी कारनामों की कोई न कोई खबर रोज अखबारों में छपा करती थी. इसलिए इन पर काबू रखने के लिए 82 के जुलाई महीने में प्रेस बिल के नाम से एक काला कानून बिहार विधानसभा से उन्होंने पास कराया था. बगैर बहस के, आनन-फानन में वह बिल पास हुआ था. लेकिन उस काले कानून का ऐतिहासिक विरोध हुआ. पत्रकारों से ही यह विरोध शुरू होकर हर क्षेत्र में फैल गया था. उस कानून के विरोध में हम लोगों ने भी प्रदर्शन किया था. प्रेस को गुलाम बनाने वाले उस कानून के विरोध में होने वाले उस प्रदर्शन में नीतीश कुमार भी शामिल थे. नीतीश तब विधायक भी नहीं थे. हड़ताली मोड़ पर पुलिस द्वारा हम पर भारी लाठी चार्ज हुआ. कई लोग गिरफ्तार हुए थे. उनमें नीतीश भी थे. लगभग डेढ़ महीना हमलोग फुलवारी जेल में थे. मुझे याद है हमारा दशहरा जेल में ही बीता था.
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आरजेडी नेता ने कहा कि आज नीतीश मुख्यमंत्री हैं. प्रेस की आजादी के संघर्ष में अपनी जेल यात्रा को वे भूल चुके हैं. उस जमाने में मुख्यमंत्री के रूप में जगन्नाथ जी को आजाद प्रेस डराता था. इस जमाने में आजाद प्रेस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को डरा रहा है. इमर्जेंसी और प्रेस बिल के विरुद्ध संघर्ष करने वाला, जेल जाने वाला नीतीश कुमार आज पूरी बेशर्मी से वही काम कर रहा है जो एक जमाने में जगन्नाथ जी ने किया था, वह भी अवैध ढंग से, सरकारी ताकत के अवैध इस्तेमाल के द्वारा.
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शिवानंद ने कह कि मुझे अखबार मालिकों की कायरता पर अचंभा होता है. यहीं एक अख़बार ने, जब पानी नाक से ऊपर होने लगा तो अपनी ताकत का अहसास नीतीश कुमार को कराया था. तीसरे दिन तो नीतीश की हवा निकल गई थी, घुटना टेक दिया था. ठीक है कि आज अखबार निकालना व्यवसाय है, लेकिन इस व्यवसाय की एक प्रतिष्ठा है. कम से कम इस व्यवसायिक प्रतिष्ठा का मान रखने की अपेक्षा करना गलत तो नहीं है?
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