बात दो दशक पहले की है. बिहार के नवादा जिले के हिसुआ विधानसभा सभा सीट पर फरवरी 2005 के चुनाव में बिहार के पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता आदित्य सिंह निर्वाचित हुए थे. जबकि सीपीएम के गणेश शंकर विधार्थी दूसरे नंबर पर रहे थे. लेकिन फरवरी 2005 के चुनाव के बाद लेफ्ट पार्टियां और आदित्य सिंह अतीत की कहानी बन गए.चूंकि अक्टूबर 2005 के चुनाव में आदित्य सिंह खुद रनरअप रहे थे. जबकि बीजेपी के अनिल सिंह निर्वाचित हुए थे. इसके बाद से आदित्य सिंह और लेफ्ट पार्टियों के बीच रनरअप-विनर का सियासी खेल खत्म हो गया.
इस बार नीतू कुमारी मैदान में
देखें तो, 2010 से हिसुआ विधानसभा क्षेत्र के चुनाव मैदान में एक तरफ आदित्य सिंह की पुत्रवधू नीतू कुमारी मैदान में हैं जबकि दूसरी तरफ बीजेपी के पूर्व विधायक अनिल सिंह सामने हैं. अक्टूबर 2005, 2010 और 2015 में अनिल सिंह निर्वाचित हुए जबकि अक्टूबर 2005 में आदित्य सिंह, 2010 में एलजेपी के अनिल मेहता और 2015 में जदयू के कौशल यादव रनरअप रहे थे. हालांकि 2015 में सीपीआईएम से नरेशचंद्र शर्मा मैदान में थे, लेकिन वह चौथे स्थान पर रहे थे. तीसरे स्थान पर सपा से नीतू कुमारी रही थी. 2020 के चुनाव में आदित्य सिंह की पुत्रवधू कांग्रेस से निर्वाचित हो गई. जबकि बीजेपी के अनिल सिंह दूसरे स्थान पर रहे. हिसुआ में नीतू सिंह और अनिल सिंह के उदय के बाद लेफ्ट पार्टियां हाशिए पर चली गई.
लेफ्ट पार्टियों का मजबूत गढ़ रहा था हिसुआ
हिसुआ विधानसभा क्षेत्र का अक्टूबर 2005 से पहले का अतीत देखें तो लेफ्ट पार्टियों का मजबूत गढ़ रहा है. हालांकि कभी जीत नही दर्ज करा पाई, लेकिन आठ दफा दूसरे स्थान पर रही है. 1967, 1969 में कांग्रेस शत्रुघ्न शरण सिंह जीते थे, जबकि सीपीआई के लाल नारायण सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे. फिर 1980 से 1995 तक के चार चुनाव में आदित्य सिंह निर्दलीय और कांग्रेस से निर्वाचित हुए, जबकि सीपीआई के लाल नारायण सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे. आदित्य सिंह 2000 में निर्दलीय और फरवरी 2005 में कांग्रेस से निर्वाचित हुए. तब सीपीएम के गणेश शंकर विद्यार्थी दूसरे स्थान पर रहे थे.
हिसुआ में कौन मारेगा बाजी
अक्टूबर 2005 में आदित्य सिंह की हार हो गई थी. उसके बाद हत्या के मामले में आदित्य सिंह सजायफ्ता हो गए थे. लिहाजा, आदित्य सिंह की पुत्रवधू नीतू मैदान में आ गईं. दूसरी तरफ, बीजेपी के पूर्व विधायक अनिल सिंह. नीतू और अनिल के बीच सियासी सह मात का खेल चलता रहा. दो दफा आदित्य-नीतू ने अनिल सिंह को पराजित किया. जबकि अनिल सिंह ने एक दफा आदित्य सिंह को जबकि दो दफा नीतू कुमारी को पराजित किया. फरवरी 2005 में आदित्य सिंह ने और 2020 में आदित्य सिंह की पुत्रवधू नीतू ने अनिल सिंह को पराजित किया. दूसरी तरफ, अनिल सिंह ने अक्टूबर 2005 में आदित्य सिंह को, जबकि 2010 और 2015 में नीतू कुमारी को पराजित किया.
दूसरी तरफ, नीतू और अनिल की लड़ाई में लेफ्ट पार्टियां हाशिए पर चली गईं. अब गठबंधन धर्म के चलते लेफ्ट यह सीट भी नही लेती. गौरतलब हो कि नीतू देवी के ससुर आदित्य सिंह 1980 से लगातार छह दफा जीत दर्ज की है, जबकि एक दफा नीतू कुमारी. दूसरी तरफ, अनिल सिंह तीन दफा जीत दर्ज कर चुके हैं, नीतू कुमारी को जीत दोहराने की चुनौती है. उन्हें अपने सियासी विरासत को बचाने की चुनौती है. जबकि अनिल सिंह को जीत का चौका लगाने की. चूंकि अनिल तीन बार क्षेत्र का नेतृत्व कर चुके हैं. फैसला जनता को करनी है. देखना दिलचस्प होगा कि जनता फैसला किसे सुनाती है़.
श्रीकृष्ण सिंह की जन्मस्थली रहा है हिसुआ
बिहार के नवादा जिले के हिसुआ विधानसभा का ऐतिहासिक महत्व इस चुनावी समर को और खास बनाता है. हिसुआ का इलाका बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह की जन्मस्थली रही है. नरहट प्रखंड का खनवां गांव, जो उनका ननिहाल था, जहां श्रीबाबू का जन्म हुआ थाॉ. ऐसे में हिसुआ की राजनीति केवल स्थानीय नहीं बल्कि राज्य स्तरीय विमर्श का हिस्सा रहा है.
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